मोदी सरकार के लिए छवि निर्माण और ‘ब्रांडिंग’ में हिन्दी अखबारों की भूमिका… मीटू अभियान के तहत लगाए जाने वाले आरोपों पर कई दिनों तक चुप रहने वाले हिन्दी अखबारों ने विदेश मंत्री एमजे अकबर के स्वदेश लौटने पर उनके बचाव और उनकी कार्रवाइयों को प्रमुखता से छापना शुरू कर दिया है। कल अदालत जाने की अखबार की घोषणा को लीड बनाने वाले हिन्दी के अखबारों ने आज फिर इस खबर को लीड बनाया है।
शीर्षक अलग हैं और उनकी वीरता बखान करने वाली ये खबरें दूसरे दिन भी लीड हैं जबकि सरकार के खिलाफ खबर को ये अखबार पूरी तरह पी जाते हैं और अंदर के पन्नों पर भी जगह नहीं देते हैं। लेकिन एक कनिष्ठ केंद्रीय मंत्री की खबरें जिस प्रमुखता से छापी जा रही है वह देखने लायक है।
‘नवभारत टाइम्स’ के पहले पेज पर आज तीन विज्ञापन हैं और खबरें गिनती की हैं पर अकबर की खबर लीड है। शीर्षक है, “दामन की जंग कठघरे तक ले गए अकबर”। ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ में शुरू के तीन पेज पर विज्ञापन है। चौथे पर खबरें हैं लेकिन खबरों का पहला पेज असल में पांचवां है। “अकबर ने मानहानि का केस किया” – हिन्दुस्तान में भी पहले पन्ने पर है। हालांकि, यह आधे पेज के विज्ञापन के ऊपर छोटे डबल कॉलम में है।
‘अमर उजाला’ ने इसे लीड बनाया है। शीर्षक है, “अकबर ने किया मानहानि का केस”। वैसे, ‘अमर उजाला’ ने इस लीड खबर के साथ यह भी बताया है कि, “11 महिला पत्रकारों ने केंद्रीय राज्यमंत्री पर लगाए हैं यौन उत्पीड़न के आरोप”।
‘अमर उजाला’ की खबर के साथ प्रिया रमानी की प्रतिक्रिया भी है जिसमें उन्होंने कहा है, “निराशा हुई कि केंद्रीय मंत्री ने आरोपों को राजनीतिक साजिश बताकर खारिज कर दिया। उन्होंने मुकदमा दायर कर अपनी मंशा जाहिर कर दी। वे डरा धमकाकर चुप कराना चाहते हैं। मैं मानहानि का मुकदमा लड़ने को तैयार हूं। सच और सिर्फ सच ही मेरा बचाव है।”
‘अमर उजाला’ ने अपनी लीड खबर के साथ बॉक्स में केंद्रीय स्वास्थ मंत्री जेपी नड्डा का बयान भी छापा है। “अकबर ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया : नड्डा” – शीर्षक से प्रकाशित दो कॉलम चार लाइन की इस खबर में कहा गया है, “इस बारे में (आगे) मैं कुछ नहीं कहूंगा। जहां तक मोदी सरकार में महिला सशक्तिकरण का सवाल है तो कैबिनेट में विदेश और रक्षा मंत्री महिलाएं हैं।”
‘अमर उजाला’ ने इस खबर के साथ कांग्रेस का सवाल भी छापा है, “प्रधानमंत्री बताएं कि वे पीड़ितों के साथ हैं कि नहीं”।
‘दैनिक जागरण’ में आज विज्ञापन के कारण खबरों का पहला पेज दो है। पहले पर खबरें तो हैं लेकिन विज्ञापन भी काफी हैं। अकबर की खबर ‘जागरण’ ने दूसरे वाले पहले पेज पर लगाई है। शीर्षक है, “मीटू मामले में अकबर ने महिला पत्रकार पर किया मानहानि का केस”। जागरण ने खबर के साथ अकबर और प्रिया रमानी की फोटो छापी है और दो कॉलम में पांच लाइन का एक बॉक्स है जिसका शीर्षक है, “बीस साल पहले अकबर के साथ प्रिया ने किया था काम”।
इससे पहले अखबार ने चार कॉलम में उपशीर्षक लगाया है, “केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री ने कहा, आरोप दुर्भावनापूर्ण और जानबूझकर लगाए गए”। ‘दैनिक भास्कर’ और ‘राजस्थान पत्रिका’ का रुख आम तौर पर ऐसी खबरों के साथ ठीक रहता है। इसलिए, मैं इनकी चर्चा नहीं करता हूं। अगर कुछ उल्लेखनीय हुआ, तो जरूर करूंगा।
उदाहरण के लिए, आज पत्रिका का शीर्षक और सभी अखबारों से अलग है। आपको बता दूं कि मीटू के निशाने पर जबतक फिल्मी दुनिया रही हिन्दी अखबारों में इसकी खबरें ठीक ही थीं। जैसे ही अंग्रेजी की महिला पत्रकार आगे आईं और केंद्रीय मंत्री का नाम आया हिन्दी अखबार इससे अलग हो गए (अनुवाद कम मुसीबत नहीं है) और इसकी चर्चा ही नहीं की। कई दिनों तक। लेकिन अकबर का बयान आते ही झंडे की तरह लहरा दिया। इस लिहाज से ‘राजस्थान पत्रिका’ की आज की खबर संपूर्णता लिए हुए है। यही बात शीर्षक में भी है। राजस्थान पत्रिका में फ्लैग हेडिंग है, “अभियान तेज, आरोपियों ने अदालत का डर दिखाया तो महिलाओं ने कहा लड़ेंगे”। मुख्य शीर्षक है, “अकबर, आलोक (नाथ) अदालत में, उधर स्त्रियों ने बुलंद रखी अपनी आवाज”।
आइए, अब उन पहलुओं की भी चर्चा कर लें जो अखबारों में नहीं हैं या स्पष्ट कारणों से जिनकी चर्चा नहीं होगी। असल में अखबारों में विचार की जगह खत्म हो गई और टेलीविजन पर हिन्दू मुस्लिम को ज्यादा टीआरपी मिलती है। मीटू अभियान शुरू हुआ तो अकबर विदेश में थे। सरकार के खिलाफ न छापने की आजादी में उन्होंने आरोप नहीं छापे। शायद उन्हें भी यकीन हो कि अकबर इस्तीफा देंगे तो एक बार में फाइनल हो जाएगा। या दूसरे मामलों की तरह यह भी दब जाएगा। पर अकबर ने ऐसा नहीं किया तो अखबार वाले फंस गए और बेशर्मी दिखाते हुए उनका खंडन प्रमुखता से छापने लगे।
अपने बचाव में अकबर ने आरोपों की टाइमिंग पर सवाल उठाया और बोले – चुनाव से पहले छवि बिगाड़ने की कोशिश। तथ्य यह है कि चुनाव मई में हैं। सरकार चुनाव की तैयारी चुनाव आयोग की प्रेस कांफ्रेंस के दिन करती है। अकबर साब सात महीने से भी ज्यादा पहले से परेशान हैं। दूसरे, अकबर साब राज्य सभा में हैं। 2016 में चुने गए हैं। 2022 तक कोई टेंशन नहीं है। क्या वे अपने मीटू से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि को जोड़कर देख रहे हैं।
आम पाठकों और मतदाताओं को न मालूम हो, पत्रकारों को तो स्नूपगेट याद है। एक आर्किटेक्ट मानसी सोनी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उसका परिचय कराने वाले आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा के साथ नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने क्या नहीं किया? इस आलोक में मेरा पहले दिन से मानना रहा है कि अकबर का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है और मैंने लिखा भी है पर अकबर इसे चुनाव और छवि खराब करने से जोड़कर क्यों देख रहे हैं। क्या उनकी भी इशारा यही है कि मीटू से मानसी सोनी का मामला भी नए सिरे से चर्चा में आएगा। हालांकि, इस्तीफा हो गया होता तो बात इतनी नहीं बढ़ती। पर दूध का जला छाछ भी फूंक कर ही पीता है। देखते रहिए, पढ़ते रहिए।
वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट. संपर्क : [email protected]