Yashwant Singh : एलीफैंटा द्वीप पर जो गुफाएं हैं, उसमें दीवारों पर चारों तरफ बुद्ध की मूर्तियां हैं. किसी में बुद्ध के पैर कटे हैं, किसी में मुंह टूटा है, किसी में हाथ गायब हैं. शांति के प्रतीक बुद्ध के साथ ये हिंसा कब और किसने की होगी. वीडियो बनाते हुए ये सवाल दिल दिमाग में चलता रहा. क्या वाकई हिंसा, डेस्ट्रक्शन ही मुख्य धारा है और शांति करुणा अहिंसा आदि चीजें रिएक्शन में पैदा हुईं, साइड इफेक्ट के चलते उपजी हुई बाते हैं? क्या प्रकृति की मोबोलिटि के लिए वायलेंस अनिवार्य है? शांति और अहिंसा से क्या प्रकृति को खुद के लिए खतरा पैदा होता है? या फिर ऐसा कि प्रकृति हर दौर के अपने नायक चुनती है और जब बुद्ध का दौर खत्म हुआ तो उनसे बड़ा कोई नायक पैदा नहीं हुआ लेकिन नित नए नए आयाम छूती गई? उदास मन और कई प्रश्नो को लेकर लौटा. आप भी देखिए और थोड़ा मुझे समझाइए.
हालांकि यह सब लिखते हुए कल ओशो को पढ़ते वक्त दिमाग में अंटकी एक फकीर की कहानी याद आ रही है. राजा को जब असली फकीर मिला तो उसकी कुटिया में घुसा और बोला- चल मेरे साथ वरना इस तलवार से तेरा सिर धड़ से अलग कर दूंगा. फकीर बोला- बिलकुल न जाउंगा, तेरे कहने से तो जाने से रहा. हां, तू सर काट, तेरे साथ मैं भी देखूंगा कि ये सिर धड़ से कैसे अलग हो रहा है. कहानी का आशय ये था कि जो द्रष्टा हो जाता है, जो निर्विचार हो जाता है, जो निर्वाण को प्राप्त हो जाता है, उसके लिए देह के कोई मायने नहीं रह जाते. वह देह में होते हुए भी देह से अलग होता है इसलिए उसकी देह के साथ जो करो, उसे कोई फरक नहीं पड़ता. तो, जिन लोगों ने बुद्ध की मूर्तियों को खंडित किया, उनके मन में अंतिम बात देह को खत्म करना ही था,लेकिन बुद्ध कोई देह तो नहीं. वो तो एक अवस्था है जिसमें देह दिमाग मूर्ति हिंसा के कोई मायने नहीं रह जाते.
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मुंबई में गेटवे आफ इंडिया से बोट मिलती है एलीफैंटा आइलैंड जाने के लिए. करीब घंटे भर में यह बोट ले जाती है. द्वीप पर जाने के बाद लगता है जैसे आप किसी दूसरी दुनिया में आ गए. यहां जो गुफाएं हैं उसमें बुद्ध की टूटी फूटी मूर्तियां हैं. द्वीप के शिखर पर दो विशालकाय तोप हैं.
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आज नया जिया
समुद्र में दौड़ा
द्वीप पर लोटा
आज नया देखा
तोप पर सेल्फी
बन्दर को पेप्सी
आज नया सोचा
बुद्ध से तोड़फोड़
युद्ध से गठजोड़
आज नया गाया
बीयर के साथ में
अजनबी से प्यार में
आज नया दिया
समुद्र को सबका प्यार
पक्षियों को सारा संसार।
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