लोग जब कम मतदान का अर्थ समझ और समझा रहे हैं तब कई खबरों से भाजपा की पतली हालत का पता चलता है, समझिये कैसे?
संजय कुमार सिंह
आम चुनाव दो महीने चलने का मतलब है, दो महीने हवा बनाये रखना। पिछले पांच या दस साल के काम या भविष्य के लिए किये गये वादे अथवा गारंटी से भाजपा अगर चुनाव जीत रही है तो भी जरूरी है कि जुमले पूरे हों, दो महीने या सातो चरण के दौरान हवा बनी रहे। किसी भी चरण से पहले, किसी कारण हवा खराब हो गई तो नुकसान हो सकता है और यह खतरा हर बार है। आज के अखबारों से जो दिख रहा है उससे भाजपा के लिए क्या मतलब निकलता है उसे समझने से पहले कुछ तथ्य याद कर लेना जरूरी है। एक देश एक चुनाव का फायदा है कि एक बार लोकसभा जीत लो दूसरी बार राज्य सभा की व्यवस्था हो गई तो बल्ले-बल्ले हो सकती है। सब चंगा सी में कुछ दिन के लिए माहौल बनाना आसान है वह मंदिर, प्राण प्रतिष्ठा उसमें आने वालों और नहीं आने वालों के नाम से भी हो सकता है। आग लगाने वालों को कपड़े से पहचानने वाला आग लगने के बाद आग लगाने वालों की पार्टी या जाति-धर्म बता कर फायदा कमा सकता है या नुकसान कर सकता है।
एक देश एक चुनाव की कथित तैयारियों के बाद देश के सबसे लंबे चुनाव कार्यक्रम की घोषणा और वर्षों से भिन्न तरीकों से गर्माये गये हिन्दू मुस्लिम और मंदिर मस्जिद के बाद मंदिर का मामला ठंडा पड़ जाने से हुई निराशा के अनैच्छिक ही सही, सार्वजनिक प्रदर्शन से हुए नुकसान की भरपाई का कोई तरीका अभी मिला ही नहीं था कि पहले चरण में कम मतदान के बाद भाजपा और उसके समर्थकों के लिए स्थिति संभालना मुश्किल होता जा रहा है। उदाहरण के लिए कल (20 अप्रैल को) टाइम्स ऑफ इंडिया में लीड का शीर्षक था, लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 64% टर्नआउट था (मतदान हुआ) जो 2019 में 66% था। योगेन्द्र यादव ने लिखा है, 2019 में पहले चरण के 102 चुनाव क्षेत्रों में मतदान 70 प्रतिशत (ठीक-ठीक कहें तो 69.9%) था न कि 66%। 2024 के पहले चरण की तुलना 2019 के सभी चरणों से करना गलत सूचना देना नहीं है तो बेमतलब है।
इस तथ्य के आलोक में आज इंडियन एक्सप्रेस की लीड का फ्लैग शीर्षक है, 2024 के चुनावों के सात चरणों में सबसे बड़े में मतदान 2019 के मुकाबले चार प्रतिशत प्वाइंट कम हुआ। चुनाव आयोग ज्यादा वोटर को बाहर लाने के तरीके तलाश रहा है। जो कारण बताये जा रहे हैं उनमें गर्मी, शादियों का मौसम, उत्साह की कमी आदि हैं। अलग-अलग लोग चर्चा में अलग कारण बता रहे हैं। यह तथ्य भी कि जब भी मतदान कम हुआ है, सरकार बदली है। फिर भी मुझे लगता है कि इस बार का चुनाव अलग है। राजनेताओं और प्रचारकों की बातों में अंतर है और मीडिया जब प्रचारक बन जाये तो अनुमान लगाना ज्यादा मुश्किल होता है। फिर भी मेरा मानना है कि वोट वही नहीं देगा जिसे इस बात से फर्क नहीं पड़ता हो कि कौन जीतेगा। यानी पिछली बार जिन लोगों के वोट से जो जीते थे वो इस बार जीतें या हारें वोट नहीं देने वाले को फर्क नहीं पड़ता है।
जो भी हो, भाजपा की हालत खराब होने का संकेत देने वाली और भी खबरें हैं। उदाहरण के लिए एलन मस्क ने भारत आने का अपना कार्यक्रम अचानक टाल दिया है और यह घोषणा बमुश्किल एक दिन पहले की है। इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर सेकेंड लीड है। अव्वल तो मस्क का कार्यक्रम चुनाव के बीच में बनना ही नहीं चाहिये था पर बना और टल गया तो उसका मतलब समझना मुश्किल नहीं है। इसी तरह, आज ही इंडियन एक्सप्रेस में फोल्ड के ऊपर तीसरी बड़ी खबर है, (भाजपा सांसद) बृज भूषण के खिलाफ विरोध की चेहरा विनेश फोगट को पेरिस ओलंपिक्स में सफलता। निश्चित रूप से यह संयोग है और पार्टी सांसद का सुरक्षा कवच बनने के प्रयोग का जवाब हो सकता है और लक्षण तो है ही। यही नहीं, नांदेड़ में अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा और इंडियन एक्सप्रेस ने शीर्षक लगाया है – प्रधानमंत्री ने कहा, किसी को वोट दीजिये पर वोट दीजिये ….. यह देश के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री के ऐसा कहने से प्रेरित होने वाले किसे वोट देंगे इसे समझना मुश्किल नहीं है। भले उन्होंने कहा ही है कि किसी को वोट दीजिये पर दीजिये।
इंडियन एक्सप्रेस के पहले पन्ने की खबरों का आज का पांचवां शीर्षक है, (शशि) थरूर के गढ़ में राजीव (चंद्रशेखर) ने पिच बदला और मोदी की थीम मिलाई। कहा, हमारा चुनाव 26 को है। इस चुनाव में हम इतिहास बनाना चाहते हैं, बदलाव लाना है, आगे बढ़ना है। चार जून को जब हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे तो तिरुवनंतपुरम को 400 पार के (मोदी के लक्ष्य) का भाग होना चाहिये। ऊपर आपने नादेंड़ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण की खबर का शीर्षक पढ़ा। इसी भाषण की खबर अमर उजाला में लीड है जो इस प्रकार है, “लगता है कांग्रेस 84 का बदला सिखों से अब भी ले रही : मोदी”। उपशीर्षक है, नांदेड़ में पीएम बोले – अपने भ्रष्टाचार को बचाने के लिए साथ आये दलों को जनता ने नकारा। इस खबर को लीड बनाने और इसे शीर्षक बनाने से आप समझ सकते हैं कि मोदी जी लीड बनाना कितना जरूरी है और इस फेर में देश में क्या-क्या हो रहा है। वह छूट जाये तो छूटे।
यही नहीं, आज एक खबर यह भी है कि मुरादाबाद के भाजपा के उम्मीदवार, सर्वेश सिंह का शुक्रवार को मतदान के बाद कल दिल्ली के एम्स में निधन हो गया। यह खबर अमर उजाला में पहले पन्ने पर डबल कॉलम में है। अमर उजाला में आज एक और खास बात है। यह राहुल गांधी की फोटो के साथ उनकी खबर तीन कॉलम में छपी खबर है जिसका शीर्षक है, “संविधान खत्म करने का प्रयास कर रही भाजपा : राहुल।” उपशीर्षक है, भागलपुर में तेजस्वी यादव के साथ साझा रैली। ऐसा नहीं है कि इंडियन एक्सप्रेस और अमर उजाला में पहले पन्ने पर इतनी ही खबरें हैं। सच यह है कि खबरें और भी हैं लेकिन जो भाजपा या कांग्रेस का सीधा प्रचार करती है। मैं आज वैसी ही खबरें चुनकर आपको बताने की कोशिश कर रहा हूं। इस बीच संदेशखाली की जांच जारी है, इंडिया गठबंधन के नेता और कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई है। द हिन्दू की खबर के अनुसार, राहुल गांधी ने अखिलेश यादव के साथ पहली संयुक्त रैली में कहा है (या यह शीर्षक है), भाजपा सरकार किसानों, युवाओं के साथ अन्याय कर रही है। अब आप इसकी तुलना अमर उजला के शीर्षक से कीजिये।
आप समझ जाएंगे कि अमर उजाला क्या बता रहा है और क्यों बता रहा होगा जबकि दूसरे अखबारों के शीर्षक बहुत स्पष्ट हैं। अमर उजाला के तो हैं ही। अभी तक आपने सरकार के समर्थन और विरोध वाली खबरें पढ़ीं। नवोदय टाइम्स ने मोदी और राहुल- अखिलेश की खबर को बराबर महत्व दिया है। पहली खबर का शीर्षक है, “एनडीए, विकसित भारत के पक्ष में मतदान : मोदी। दूसरी खबर का शीर्षक है, “भाजपा की फिल्म पहले दिन, पहले शो में फ्लॉप : अखिलेश”। हिन्दुस्तान टाइम्स की आज की लीड भी नवोदय टाइम्स की ही तरह है। पहले चरण के मतदान के एक दिन बाद, मोदी और राहुल ने गर्मी बढ़ाई। इसके साथ सिंगल कालम में राजनाथ सिंह की खबर है। इसके अनुसार उन्होंने कहा है, पहले चरण के अनुमान से चलूं तो 400 का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। कहने की जरूरत नहीं है भाजपा को 400 सीटें मिल रही होंती तो विपक्ष की हालत ऐसी नहीं होती कि उसे पहले पन्ने पर जगह मिलती। पिछले 10 साल में अखबारों ने विपक्ष को जो महत्व दिया है उसके आधार पर अब साफ दिख रहा है कि विपक्ष को महत्व मिल रहा है और कहने की जरूरत नहीं है कि यह यूं ही नहीं होगा।
हिन्दुस्तान टाइम्स ने आज पहले पन्ने पर लीड के साथ दो कॉलम में एक और खबर छापी है। इसका शीर्षक है, चुनावी बांड पर वित्त मंत्री की टिप्पणी पर विपक्ष ने पलटवार किया। आज की ऐसी और इन खबरों के बीच टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड का शीर्षक है, मुख्यमंत्री के शुगर लेवल को लेकर एलजी और आप में कड़वा विवाद। इंट्रो है, पार्टी ने इंसुलिन नहीं देने को साजिश कहा। आप जानते हैं कि चुनाव से पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री को गिरफ्तार करने का मकसद आम आदमी पार्टी को तोड़ना और उसकी सरकार गिराना हो सकता है। दूसरे राज्यों में दूसरी पार्टियों के साथ ऐसा किया जा चुका है। ऐसे में आम आदमी पार्टी का नहीं टूटना, मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी का मुद्दा पहले पन्ने पर बना रहना, जेल में मुख्यमंत्री के खाने पर ईडी का आरोप और शुगर लेवल ज्यादा होने के बावजूद इंसुलिन नहीं दिया जाना, अदालत की अनुमति नहीं मिलना या उसमें देरी बताती है कि पूरी व्यवस्था सरकार या सत्तारूढ़ पार्टी के साथ है और आम आदमी पार्टी भाजपा को कड़ी टक्कर दे रही है। केजरीवाल के खाने पर ईडी का गैर पेशेवर आरोप इस मामले में आग में घी का काम कर गया।
हालत ऐसी है कि आज द हिन्दू में भी यह खबर चार कॉलम में है। शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होगा, “जेल की रिपोर्ट कहती है केजरीवाल को इंसुलिन की जरूरत नहीं है, आप ने इसे धीमी मौत कहा”। यहां मुद्दा यह है कि शुगर ज्यादा है तो इंसुलिन देना ही चाहिये और फैसला तो डॉक्टर को करना है जेल की रिपोर्ट कैसी है? जो भी हो, ईडी के आरोप के बारे में क्या कहा जाये और यह सब मीडिया ट्रायल तथा हेडलाइन मैनेजमेंट का भाग नहीं है? इन सबसे ऊपर – सबके बावजूद एक मुख्यमंत्री की असामान्य गिरफ्तारी और असमान्य हालात में जमानत नहीं मिलना सामान्य तो नहीं ही लग रहा है। जनता को जो लग रहा है उसके अनुसार वोट होगा और नतीजा 4 जून को पता चलेगा। मैं अटकलबाजी की बजाय इंतजार करना पंस करूंगा। भले अपने वोट के लिए मैंने राय बना ली है।
भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तारी से छवि बनाने-बिगाड़ने का जो काम हुआ होगा वह मुख्यमंत्री का इस्तीफा नहीं होने से बदल गया होगा और इस आरोप को मजबूती मिल रही है कि भाजपा अपनी स्थिति का लाभ उठाकर आम आदमी पार्टी को बर्बाद करना चाहती है। इसका असर दिल्ली की सात लोकसभा सीटों के चुनाव नतीजों पर पड़ सकता है और एक भी कम होने का मतलब है चार सौ पार पर चोट और विपक्षी या विरोधी जब रोज कह रहे हैं कि 400 पार कितना मुश्किल है तो टाइम्स ऑफ इंडिया की आज की इस लीड से भाजपा को कितना नुकसान हो सकता है, समझना मुश्किल नहीं है। कम से कम यह संदेश तो जा ही रहा है कि विरोधियों को परेशान करने के लिए सत्ता का दुरुपयोग हो रहा है। मणिपुर से भाजपा और नरेन्द्र मोदी की परेशानी सर्वविदित है। यहां की हालात का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि दो सीटों पर मतदान दो दिन होना है।
ऐसे में द हिन्दू की आज की लीड मणिपुर पर है। शीर्षक है, चुनाव आयोग ने मणिपुर के 11 मतदान केंद्रों में कल पुनर्मतदान के आदेश दिये। उपशीर्षक है, ये बूथ इनर मणिपुर लोकसभा क्षेत्र के पांच विधानसभा क्षेत्रों में स्थित हैं। मतदान अधिकारियों ने शुक्रवार को हुए मतदान के संबंध में भीड़ की हिन्सा, गोलियां चलाने और ईवीएम नष्ट करने की रिपोर्ट दी है। द टेलीग्राफ के मुख्य शीर्षक की हिन्दी कुछ इस तरह होगी, “यूपी के ठाकुर प्रभाव वाले क्षेत्रों में अशांति: वाई फैक्टर”। इससे पहले फ्लैग शीर्षक है, आदित्यनाथको किनारे किये जाने की नाराजगी दिखाई दे रहीहै। दूसरी खबर भाजपा के दक्षिण कश्मीर के चुनाव से बाहर आ जाने की है। तीसरी खबर तमिलनाडु में मोदी की गारंटी बनाम डीएमके मॉडल पर है।
द टेलीग्राफ के मुख्य शीर्षक की हिन्दी कुछ इस तरह होगी, “यूपी के ठाकुर प्रभाव वाले क्षेत्रों में अशांति: वाई फैक्टर”। इससे पहले फ्लैग शीर्षक है, आदित्यनाथको किनारे किये जाने की नाराजगी दिखाई दे रहीहै। दूसरी खबर भाजपा के दक्षिण कश्मीर के चुनाव से बाहर आ जाने की है। तीसरी खबर तमिलनाडु में मोदी की गारंटी बनाम डीएमके मॉडल पर है।