Pramod Ranjan : आप अपने विरोधियों के लिए किस प्रकार की गालियों का इस्तेमाल करते हैं? ‘हंस’ के संपादक राजेंद्र यादव व अनेक स्त्रीवादी इस मसले को उठाते रहे हैं कि अधिकांश गालियां स्त्री यौनांग से संबंधित हैं। पुरूष एक-दूसरे को गाली देते हैं, लेकिन वे वास्तव में स्त्री को अपमानित करते हैं। लेकिन जो इनसे बची हुई गालियां हैं, वे क्या हैं? ‘चूतिया’, ‘हरामी’, ‘हरामखोर’..आदि। क्या आप जानते हैं कि ये भारत की दलित, ओबीसी जातियों के नाम हैं या उन नामों से बनाये गये शब्द हैं। इनमें से अनेक मुसलमानों की जातियां हैं।
आप कितनी आसानी से कह देते हैं – ‘चोरी-चमारी’ मत करो। यह कहते हुए आप ‘चोरी’ को एक जाति विशेष से जोड देते हैं। ‘चूतिया’ जाति मुख्य रूप से आसाम की है। हलालखोर/ हरामखोर बिहार की जाति है। यहां देखिए असम की ओबीसी सेंट्रल लिस्ट में ‘चूतिया जाति’ का नाम : http://ncbc.nic.in/Writereaddata/cl/assam.pdf
अहो! कितनी दमदार ‘संस्कृति’ है आपकी और कितना प्यारा होगा इस संस्कृति पर आधारित आपका ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’?
फारवर्ड प्रेस मैग्जीन के संपादक प्रमोद रंजन के फेसबुक वॉल से.
Comments on “अगर इन गालियों का इस्तेमाल करते हैं तो आप दलित-ओबीसी विरोधी हैं!”
जिसे आप ‘चूतिया’ समझ रहे हैं, वो वास्तव में शूतिया है।