Manish Dubey-
‘मैं नहीं चाहता की आपका त्यौहार बरबाद हो आप मेरे हाथ में पैसे रखो और लड़का एक घण्टे में आपके पास होगा. हम आपको कल फ़ोन करेंगे.’
अल्लाहु अकबर

कानपुर के थाना रायपुरवा अंतर्गत दसवीं के छात्र कुशाग्र कनोडिया की अपहरण के बाद हत्या कर दी गई. हत्या की वजह बनी 30 लाख की रकम, जो फिरौती के तौर पर छात्र के परिजनों से मांगी गई थी.

यह फिरौती की रकम बाकायदा एक चिट्ठी लिखकर मांगी गई थी, जिसकी भाषा बेहद शालीन अपनाई गई. चिट्ठी में फिरौती के लिए अपहरण की बात साफ मानी गई. लेकिन एक और बात इस चिट्ठी में बड़ी अहम थी, जिसे media ने शुरू में उठाया लेकिन वक़्त बीतते गोलमोल कर दिया गया. वो बात है, धमकी के बाद ‘अल्लाहु अकबर’ का स्लोगन.
बड़ी देर बाद हरकत में आयी कानपुर पुलिस ने मामले में हत्या के तीन आरोपी निकाले. प्रभात शुक्ला, रचिता और आर्यन. माने तीनों हिन्दू. कर्रे वाले हिन्दू. सवाल फिर वही, हिन्दू की फिरौती में ‘अल्लाहु अकबर’ का क्या वास्ता?
हालांकि इससे पहले भी इस तरह की घटनायें हुईं, मसलन ‘मुस्लिम वेष में आगजनी- पथराव कर किसी जिले राज्य का माहौल खराब करना, इलेक्शन प्रभावित करना इत्यादि ख़बरों की फैक्ट चेकिंग में खुलासे हुए की अमुख घटना में जालीदार टोपी वाला विकास था.
लेकिन इस मामले को समझें तो ‘किसी अपराध को अंजाम देने के बाद मुस्लिम बिरादरी पर लगा ये पहला इल्जाम है जो डायरेक्ट यही पूछता है, कि क्या हाल के वर्षों में मुस्लिम बिरादरी को किसी भी नकारात्मकता के लिए सॉफ्ट टारगेट बनाया जा चुका है?
और अगर लोग यह भ्रान्ति पाल रहे हैं तो कहने की जरूरत भी नहीं कि, ऐसा माहौल खड़ा किसने किया? क्योंकि कानपुर की इस घटना में आरोपियों ने ये बात कबूल की है, कि उन्होंने पुलिस जांच को प्रभावित करने के लिए मजहबी स्लोगन का इस्तेमाल किया.