Amitesh Kumar : हिंदी का लेखक रचना में सवाल पूछता है, क्रांति करता है, प्रतिरोध करता है..वगैरह वगैरह..रचना के बाहर इस तरह की हर पहल की उम्मीद वह दूसरे से करता है. लेखक यदि एक जटिल कीमिया वाला जीव है तो उसका एक विस्तृत और प्रश्नवाचक आत्म भी होगा. होता होगा, लेकिन हिंदी के लेखक की नहीं इसलिये वह अपनी पर चुप्पी लगा जाता है. लेकिन सवाल फिर भी मौजूद रहते हैं.
नीलाभ जी को रंग प्रसंग का संपादक बनने की बधाई. वैसे इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि अजित राय को एक बकियौता अंक का संपादन मिलने से वे क्षुब्ध थे. वैसे क्षुब्ध तो वो रानावि प्रशासन के रुख से भी थे जिसने, बकौल उनके, उनके संपादन में निकलने वाले दूसरे अंक की तैयारी के समय दिखाया था. और वह अंक भी क्या था! उसमें संपादक ने नाट्य आलेख के बारे में जो बचकाने सवाल पूछे थे उनकी चर्चा का ये समय नहीं है. ये बधाई का वक्त है. क्या हुआ कि नामवर सिंह के पैनल में रहते हुए भी वे संपादक बन गये, क्या हुआ कि उनकी उम्र सत्तावन से खासी अधिक है. लोगों को हैरत होती है तो होती रहे. उन्हें बधाई.
बधाई की बारी आती है अब राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की जिसने ये साबित किया कि युवा पीढ़ी में कोई भी रंग प्रसंग का संपादक बनने के योग्य नहीं है. लेकिन उम्रदराजी की छूट अगर नीलाभ को मिली तो वागीश सिंह को क्यों नहीं? क्योंकि उनके संपादन में निकलने वाले दो रंग प्रसंग के अंक में एक दृष्टि थी, एक योजना थी. तभी तो अभिनय वाला अंक दुबारा छपा.
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