रतन थियम को फिर से NSD का चैयरमैन नहीं होना चाहिए!

Ravindra Tripathy : रतन थियम को फिर से NSD का चैयरमैन नहीं होना चाहिए। मेरी ये राय है कि रतन थियम को फिर से nsd का चैयरमैन नहीं होना चाहिेए। उनका कार्यकाल 18 अगस्त को खत्म हो रहा है और वे फिर से इस पद को पाने के लिए बेकरार हैं। लेकिन क्या वे इस तथ्य से इनकार कर सकते हैं `भारत रंग महोत्सव’ जैसे आयोजन को ध्वस्त कर theatre olympic जैसे विदेशी ब्रांड को उभारना चाहते हैं? ये एक तरह से भारत नाम के इस देश के साथ विश्वासघात है।

National School of Drama : 26 रंगकर्मियों पर हर साल जनता का 80 करोड़ क्यों खर्चा जाए?

रानावि अपने 26 छात्रों पर जितना पैसा खर्च करता है उसका एक हिस्सा भी वे सारी जिंदगी नहीं कमा पाते… भारत रंग महोत्सव 2017 : यह किसका ‘भारंगम’ है?  राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का भारत रंग महोत्सव (भारंगम) अब जवान हो चुका है। जब 1999 मे तब के विजनरी निर्देशक राम गोपाल बजाज ने भारंगम की शुरुआत की तो इसका चौतरफा विरोध इस आधार पर हुआ कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का काम महोत्सव करना नहीं है। पिछले 19 सालों मे काफी कुछ बदला है। अमाल अल्लाना और अनुराधा कपूर की टीम ने तो इसका नाम तक बदल डाला और इसे थिएटर उत्सव कहा जाने लगा। राम गोपाल बजाज के बाद देवेंद्र राज अंकुर के समय तक तो यह भारत रंग महोत्सव बना रहा पर धीरे- धीरे इसे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय महोत्सव में बदल दिया गया।

उम्रदराजी की छूट अगर नीलाभ को मिली तो वागीश सिंह को क्यों नहीं?

Amitesh Kumar : हिंदी का लेखक रचना में सवाल पूछता है, क्रांति करता है, प्रतिरोध करता है..वगैरह वगैरह..रचना के बाहर इस तरह की हर पहल की उम्मीद वह दूसरे से करता है. लेखक यदि एक जटिल कीमिया वाला जीव है तो उसका एक विस्तृत और प्रश्नवाचक आत्म भी होगा. होता होगा, लेकिन हिंदी के लेखक की नहीं इसलिये वह अपनी पर चुप्पी लगा जाता है. लेकिन सवाल फिर भी मौजूद रहते हैं.