निखिल वागले ने प्राइम टाइम डिबेट के दौरान सनातन संस्था के अभय वर्तक को लाइव शो से निकाल बाहर किया

मुंबई : वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले महाराष्ट्र01 न्यूज़ चैनल पर प्राइम टाइम की एंकरिंग कर रहे थे. डिबेट का विषय विवादित और संवेदनशील था. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान विवादित बयान दिया था- “धर्मसत्ता राजसत्ता से बड़ी होती है।’ इस बयान से लोगों ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. मुख्यमंत्री के इस बयान को सीधा संघ नीति से जोड़ा गया. निखिल वागले ने प्राइम टाइम में इसी विषय पर डिबेट रखा.

उम्रदराजी की छूट अगर नीलाभ को मिली तो वागीश सिंह को क्यों नहीं?

Amitesh Kumar : हिंदी का लेखक रचना में सवाल पूछता है, क्रांति करता है, प्रतिरोध करता है..वगैरह वगैरह..रचना के बाहर इस तरह की हर पहल की उम्मीद वह दूसरे से करता है. लेखक यदि एक जटिल कीमिया वाला जीव है तो उसका एक विस्तृत और प्रश्नवाचक आत्म भी होगा. होता होगा, लेकिन हिंदी के लेखक की नहीं इसलिये वह अपनी पर चुप्पी लगा जाता है. लेकिन सवाल फिर भी मौजूद रहते हैं.

‘समाचार प्लस’ पर डिबेट में पते की बात कम, भाषण ज्यादा करते हैं पत्रकार अमिताभ अग्निहोत्री

मैं किसी भी पत्रकार के बारे में लिखने से बचता हूँ लेकिन कई पत्रकारों की हरकतों की वजह से आज यह पोस्ट लिखनी पड़ रही है. वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ अग्निहोत्री ‘समाचार प्लस’ पर जब डिबेट में बैठते हैं तो खुद ही बोलते रहते हैं, गेस्ट को बोलने का मौका ही नहीं देते हैं. सवाल पूछने की जगह भाषण देते हैं. 

मजीठिया वेज बोर्ड पर हरिवंश अभी भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं!

नीचे राज्यसभा टीवी पर मजीठिया वेज बोर्ड पर हुई बहस का लिंक दिया जा रहा है। बहस में हरिवंश (संपादक, प्रभात खबर) और सुप्रीम कोर्ट में वकील कोलिन गोंसाल्विस भी शामिल हैं। जब हरिवंश से एंकर गिरीश निकम ने पूछा कि आपके अखबार में लागू हुआ तो बोले क‌ि अभी हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इतंजार कर रहे हैं। इस पर गोंसाल्विस ने कहा क‌ि एक साल पहले फैसला आ चुका है। बहस में जागरण, इंडियन एक्सप्रेस और भास्कर पर सीधे नाम लेक‌र आरोप लगाए गए हैं।

मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर राज्यसभा टीवी पर बहस : हरिवंश संपादक हैं या मालिक ?

दिल्ली : राज्यसभा टीवी पर मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश लागू करने, न करने को लेकर एक ‘मालिकाना’ किस्म की बहस प्रायोजित की गई। बहस में प्रभात खबर के संपादक एवं राज्यसभा सदस्य हरिवंश, डीयूजे के एसके पांडे, कोलिन गोंजाल्विस, अजय उपाध्याय ने भाग लिया। ‘मजीठिया मंच’ फेसबुक पेज से साभार प्राप्त बहस-सामग्री यहां वक्ताओं के कथन और उस पर मजीठिया मंच के प्रति-कथन के साथ प्रस्तुत है….

A lecture on ‘Role of Media in Intellectual Growth of the Nation’ was organised by Journalism University

Bhopal, January 30: Every nation has its own nature and behaviour. And development could b achieved only when the policies are made according to the nature otherwise there will be deformation. The first intellectual development of the human beings occur at the home and then in the society. Today, media has to play a great role in the intellectual growth of the human beings. Therefore, media should first understand the cultural India then transfer the knowledge to the people.

प्यार नहीं, आपकी पॉलिटिक्स कुछ और है बॉस… प्यार है तो धर्मांतरण की जरूरत क्यों?

हाल ही में आया इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला न्याय व तर्क के हर पहलू पर फिट बैठता है. कितनी बेहतरीन बात कही न्यायालय ने… अगर धर्म में आस्था ही नहीं, तो धर्म परिवर्तन क्यों? सही बात है, इसे तो धर्मगुरु भी मानेंगे कि धर्म को एक दांव की तरह तो नहीं इस्तमाल किया जा सकता न कि शादी करनी हो या तालाक लेना हो तो धर्म का दांव खेल दिया. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जिन मामलों की सुनवाई करते हुए फैसला दिया, आईये उन पर गौर करते हैं. दरअसल एक ही विषय पर पांच अलग-अलग याचिकाएं न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की गईं. इन सभी में हिन्दू लड़कियों ने मुसलमान लड़कों से शादी करने के खातिर इस्लाम कुबूल किया फिर निकाह किया व न्यायालय के समक्ष अपनी शादी को वैधता देने और सुरक्षा की मांग की. सभी याचिकाकर्ताओं ने मजिस्ट्रेट के समक्ष जो बयान दिए थे उनकी विषय वस्तु कमोबेश एक ही थी.

डीडी के मठाधीशों, आने वाली पीढ़ियों की जड़ों में मट्ठा मत डालो

सोशल मीडिया से ही सुना-पढ़ा है कि गोवा फिल्म फेस्टीवल में डीडी नेशनल का बैंड बजवा चुकी महिला एंकराइन को लेकर संस्थान में ही कई गुट हो गये हैं। प्रसार भारती के सीईओ जवाहर सिरकार इस सवाल के जवाब को लेकर व्याकुल हैं, कि इतने महत्वपूर्ण कार्यक्रम की कवरेज के लिए इन भद्र और अनुभवहीन महिला एंकर को गोवा भेजा ही क्यों गया? इस सवाल की पड़ताल के लिए प्रसार भारती ने अतिरिक्त महानिदेशक स्तर के आला-अफसर को दिल्ली से मुंबई भेजा है। साथ ही प्रसार भारती ने इस सब कलेश को ‘सिस्टम फेल्योर’ मान लिया है।

नवीन कुमार ने संस्कृत का मरण उत्सव मनाया है तो मैं संस्कृत का जीवनोत्सव मनाउंगा

(पहली किस्त) : न्यूज़ 24 में मेरे बेहद अनन्य नवीन कुमार ने अपने फेसबुक वॉल पर संस्कृत भाषा का बड़ा भारी मरण उत्सव मनाया है। मैंने उसे कहीं दूसरी जगह पढ़ा और देखा क्योंकि अब वो मुझे मेरे फेसबुक पर दिखाई नहीं देते। रोज दफ्तर में मिलते हैं, चर्चा होती है, कुछ हल्की-फुल्की बहस भी। नवीन कुमार में ओज है, तेजस्विता है, ऐसी प्रचंड लपलपाती आग हमेशा चेहरे पर दिखाई देती है कि मानो अभी जलाकर सब कुछ भस्म कर देगी। खैर, उनका मन बालसुलभ कोमलता से भरा है, वो गरजते हैं तो मैंने उन्हें लरजते भी देखा है, निजी चर्चा में उनकी भावना को मैंने समझा है।

सलाम मांझी! सलाम कंवल भारती!

दलित-पिछड़ों यानी मूलनिवासी की वकालत को द्विज पचा नहीं पा रहे हैं। सामाजिक मंच पर वंचित हाषिये पर तो हैं ही, अब राजनीतिक और साहित्यिक मंच पर भी खुल कर विरोध में द्विज आ रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के आर्यों के विदेशी होने के बयान से उच्च जाति वर्ग पार्टी और विचार धारा से ऊपर जाकर बौखलाहट और तीखा विरोध के साथ सामने आया तो वहीं लखनउ में कथाक्रम की संगोष्ठी ‘लेखक आलोचक, पाठक सहमति, असहमति के आधार और आयाम’, में लेखक कंवल भारती के यह कहने पर कि ‘साहित्य और इतिहास दलित विरोधी है। ब्राह्मण दृष्टि असहमति स्वीकार नहीं करती।

संस्कृत भाषा जीवित है, उसे कोई मार नहीं सकता

भाई, संस्कृत भाषा मर नहीं सकती। अब यह मत सोचिए कि मैं ब्राह्मण हूं क्या? नहीं भाई मैं ब्राह्मण नहीं हूं। लेकिन ब्राह्मण होता तो भी यही लिखता जो अभी लिख रहा हूं। और भाई ब्राह्मणों ने किसी भाषा की हत्या नहीं की। किसी भी जाति विशेष पर हमें कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। अब आइए संस्कृत के अस्तित्व की बात पर। करोड़ो लोग प्रतिदिन  भगवत् गीता का पाठ करते हैं। दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। महामृत्युंजय जाप करते हैं। रोज, बिना किसी नागा के। अन्य पुस्तकों का सस्वर पाठ करते हैं पूजा के वक्त। और वे जो पाठ करते हैं, उसका अर्थ भी जानते हैं। भगवान शिव की दिव्य स्तुति-

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं।।

Secular राजदीप सरदेसाई को Communal मनोहर पर्रिकर पर प्यार आ गया!

Dilip C Mandal : सेकुलर और कम्युनल में क्या रखा है? राजदीप सरदेसाई कट्टर Secular गौड़ सारस्वत ब्राह्मण (GSB) हैं और मनोहर पर्रिकर कट्टर Communal गौड़ सारस्वत ब्राह्मण (GSB). और फिर प्राइड यानी गर्व का क्या है? हो जाता है. राजदीप को पर्रिकर और प्रभु पर गर्व हो जाता है. सारस्वत को सारस्वत पर गर्व हो जाता है. सेकुलर को कम्युनल पर दुलार आ जाता है. वैसे, अलग से लिखने की क्या जरूरत है कि दोनों टैलेंटेड हैं. वह तो स्वयंसिद्ध है. राजदीप भी कोई कम टैलेंटेड नहीं हैं.

अभिसार आज आशुतोष की क्‍लास ले रहे थे…

Kumar Sauvir : पालतू कूकुर और सड़कछाप कूकुर की फितरतों में बड़ा फर्क होता है। ताजा-ताजा पालतु हुआ कूकुर बहुत भौकता है और ताजा-ताजा सड़कछाप हुआ कूकुर बहुत झींकता हैं, मिमियाता है और बगलेंं भी खूब झांकता है। यह हकीकत दिखाया एबीपी-न्‍यूज के एक कार्यक्रम में। मौका है दिल्‍ली के चुनावों को लेकर। एक दौर हुआ करता था जब वरिष्‍ठ पत्रकार रहे आशुतोष ने एक कार्यक्रम में कांग्रेस के एक सांसद की इस तरह क्‍लास ली थी कि वह खुद ही कार्यक्र से भाग गया। ऐसे कई मौके आ गये हैं आशुतोष के कार्यक्रमों में जब उन्‍होंने बड़े-बड़े नेताओं की जमकर क्‍लास ली।

पीएम, सीएम, डीएम और लोकल थानेदार को बचा लेना, बाकी किसी के भी खिलाफ लिख देना

आज से 35 साल पहले जब आज के ही दिन मैने अखबार की नौकरी शुरू की तो अपने इमीडिएट बॉस ने सलाह दी कि बच्चा पीएम, सीएम, डीएम और लोकल थानेदार को बचा लेना। बाकी किसी के भी भुस भरो। पर वह जमाना 1979 का था आज का होता तो कहा जाता कि लोकल कारपोरेटर, क्षेत्र के एमएलए और एमपी के खिलाफ भी बचा कर तो लिखना ही साथ में चिटफंडिए, प्रापर्टी दलाल और मंत्री पुत्र रेपिस्ट को भी बचा लेना। इसके अलावा डीएलसी, टीएलसी, आईटीसी और परचून बेचने वाले डिपार्टमेंटल स्टोर्स तथा पनवाड़ी को भी छोड़ देना साथ में पड़ोस के स्कूल को भी और टैक्सी-टैंपू यूनियनों के खिलाफ भी कुछ न लिखना। हां छापो न गुडी-गुडी टाइप की न्यूज। पास के साईं मंदिर में परसाद बटा और मां के दरबार के भजन। पत्रकारिता ने कितनी तरक्की कर ली है, साथ ही समाज ने भी। सारा का सारा समाज गुडी हो गया।  

xxx

न्यूज चैनल ‘जिओ टीवी’ के डिबेट में नशा करके आए मौलवी साहब (देखें वीडियो)

पाकिस्‍तान के एक मौलवी ने खूब दारू पीने के बाद न्‍यूज चैनल की डिबेट में शिरकत की. अपने इस कृत्‍य से मौलवी साहब ने पाकिस्‍तान और विश्‍वभर में रहने वाले मुसलमानों को शर्मिंदा किया है. इस्‍लाम में शराब पीने को हराम यानि गलत माना गया है. यही कारण है कि मौलवी साहब के शराब पीकर न्यूज चैनल डिबेट पर आने को इतना तूल दिया जा रहा है. पाकिस्‍तानी के एक बड़े न्‍यूज चैनल जिओ टीवी पर नशेबाज मौलवी ने अपनी हरकत से अपने देश की नाक कटा दी. मौलवी नशा करने के बाद न्‍यूज चैनल डिबेट पर ऑन एयर चले गए. नशे में उन्‍होंने इमरान खान को काफी खरी-खोटी सुनाई.

हिंदी का संपादक एक रोता हुआ जीव है, जिसके जीवन का लक्ष्य अपनी नौकरी बचाना है

भारत यूरोप नहीं है, अमेरिका भी नहीं है. यहां अखबार अभी भी बढ़ रहे हैं, और यह सिलसिला रुक जाए, इसका फिलहाल कोई कारण नहीं है. इंटरनेट पर हिंदी आई ही है और अगर सब कुछ ठीक रहा तो भारत में इंटरनेट हर मुट्ठी तक नहीं भी तो ज्यादातर मुट्ठियों तक पहुंच ही जाएगा और साथ में हिंदी भी इसकी सवारी करेगी. टीवी भी भारत में बढ़ता मीडियम है. और फिर यह टेक्नोलॉजी का बाजार है. यहां कारज धीरे होत है टाइप कुछ नहीं होता. अगर सारे कोऑर्डिनेट्स सही हैं, तो एक का सौ और सौ का लाख होने में समय नहीं लगता. कुल मिलाकर प्रिंट, टीवी और वेब पर न्यूज मीडियम की हालत ठीक है. बढ़ता बाजार है. मांग बनी हुई है. समस्या बाजार में नहीं है.