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भारत में ऐसा चल जाता है, बाहर नहीं चला, मोदी का इंटरव्यू छापने से अखबार ने किया इनकार

(अपने फेसबुक वॉल पर आज ‘जनसत्ता’ के संपादक ओम थानवी ने पीएम और मीडिया की विदेश यात्रा की निगहबानी के बहाने शब्दों से सरोकार तक कई पक्षों को बारीकी से छुआ.) 

फ्रांस के मशहूर दैनिक ‘ल मौंद’ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक इंटरव्यू छापने से इनकार कर दिया। हुआ यों कि प्रधानमंत्री कार्यालय चाहता था फ्रांस के इस प्रतिष्ठित अखबार में मोदी का इंटरव्यू छप जाय। इसके लिए कोशिश हुई और ‘ल मौंद’ को कहा गया कि अपने प्रश्न मेल कर दें, जिनके जवाब प्रधानमंत्री की तरफ से भेज दिए जाएंगे।

(अपने फेसबुक वॉल पर आज ‘जनसत्ता’ के संपादक ओम थानवी ने पीएम और मीडिया की विदेश यात्रा की निगहबानी के बहाने शब्दों से सरोकार तक कई पक्षों को बारीकी से छुआ.) 

फ्रांस के मशहूर दैनिक ‘ल मौंद’ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक इंटरव्यू छापने से इनकार कर दिया। हुआ यों कि प्रधानमंत्री कार्यालय चाहता था फ्रांस के इस प्रतिष्ठित अखबार में मोदी का इंटरव्यू छप जाय। इसके लिए कोशिश हुई और ‘ल मौंद’ को कहा गया कि अपने प्रश्न मेल कर दें, जिनके जवाब प्रधानमंत्री की तरफ से भेज दिए जाएंगे।

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अखबार को यह प्रस्ताव जंचा नहीं और इंटरव्यू छापने से हाथ झाड़ते हुए उसने इस बात का ऐलान भी कर दिया। अखबार के दक्षिण एशिया संपादक ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी।

दरअसल ‘ल मौंद’ के संपादक चाहते थे कि इंटरव्यू बाकायदा इंटरव्यू की तरह हो। यानी साक्षात साक्षात्कार। अंदाजा लगाया गया है कि प्रधानमंत्री से इस तरह की खुली बातचीत में कुछ ऐसे सवाल-जवाब हो जाने का खतरा था (हमेशा रहता है!) जिनसे बाद में परेशानी पैदा हो। खासकर अल्पसंख्यकों के मामले में, जिन्हें लेकर भारत में कई हादसे हो चुके हैं और मोदी जी की पार्टी बचाव की मुद्रा में है।

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विदेश में मोदी-राज में घर-वापसी, लव-जेहाद, गिरजों पर हमलों आदि हादसों की बहुत चर्चा है। अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा भी उस पर बोल चुके हैं। फ्रांसिसी पत्रकारों का भरोसा नहीं; वे नेताओं के निजी मामलों पर भी बात कर लेते हैं!

प्रधानमंत्री के साथ दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो वाले गए हैं, पर टीवी चैनलों ने अपनी टीमें पहले से बाहर भेज दी हैं। उनका भावविभोर रूप देखते बनता है। हद यह कि मस्केबाजी में कतिपय चैनल दूरदर्शन से इस कदर होड़ ले रहे हैं कि देखकर मितली आ जाय। इस कवरेज के पीछे पैसा अभी भले चैनल मालिकों का लगा हो, कवरेज का परिमाण देख शक होता है देर-सबेर इसे वे लोग सूद सहित वसूलेंगे। वरना, साख ऐसे कौन गंवाता है?

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पेरिस से “रिपोर्टिंग” कर रहे पत्रकार मित्र वहां की मुख्य नदी को सीन, यहाँ तक कि सायन बोल रहे हैं। उन्हें बता दूँ कि वह सेन नदी है। सही उच्चारण सॅन है, पर अपने मुख-सुख के मुताबिक सेन चलेगा। यह मुफ्त परामर्श है; जो ले उसका भी भला, जो न ले उसका भी!

ओम थानवी के एफबी वॉल से

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0 Comments

  1. इंसान

    April 11, 2015 at 2:34 am

    ओम थानवी को मैं नहीं जानता। इस कुलेख को पढ़ मैं उसे पत्रकारिता का बलात्कारी और राष्ट्र-विरोधी तत्वों के हाथों कठपुतली बने देखता हूँ।

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