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सुख-दुख

पातालकोट : एक छुपी हुई दुनिया

यात्रा वृतांत : एक ऐसी जमीन जहाँ सूरज की किरण भी ठीक से नहीं पहुँचती, एक ऐसी जमीन जो पहाड़ी से 1700 फ़ीट नीचे बसी है, एक जमीं जिसे छुपी दुनिया कहते हैं। ‘पातालकोट’ के तिलिस्म और रहस्य के किस्सों में वो गजब का आकर्षण था जो मुझे वहां खींच ले गया। हमने मित्रों के साथ इस घाटी में उतरने, यहाँ रहने वाले आदिवासियों के जीवन से रूबरू होने और और इस रहस्यमयी दुनिया में जाने का निर्णय ले लिए था।

पातालकोट छिंदवाड़ा जिले के तामिया ब्लॉक में स्थित है। यह धरती के गर्भ में समायी एक घाटी है जिसका क्षेत्रफल लगभग 89 वर्ग किलोमीटर है। यह समुद्र सतह से 3250 फुट ऊँचाई पर तथा भूतल से 1000 से 1700 फुट गहराई में फैला हुआ है।

छिंदवाड़ा सतपुड़ा रेलवे के अंतर्गत आता है तथा यहाँ से बिलासपुर-नागपुर और हावड़ा-नागपुर रेलवे लाइन होकर गुजरती है। नागपुर यहाँ का निकटम हवाई अड्डा है साथ ही छिंदवाड़ा में भी एक छोटी सी हवाई पट्टी है। हमनें सतपुड़ा की तलहटी पर बसी इस धरा का करीब से नज़ारा लेने के लिए एक फोर व्हीलर का चयन किया। हम लोग सर्वप्रथम वर्धा से नागपुर पहुंचे तथा देर रात को एक टाटा सूमो बुक कर छिंदवाड़ा को रवाना हुए।

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रात के लगभग ढाई बजे छिंदवाड़ा में उतरना कुछ अजीब सा अनुभव था, क्योंकि प्रथम दृष्टि में यह एक असुरक्षित सा स्थान प्रतीत हो रहा था। हम लोगों ने कुछ दूर चौराहे पर खड़ी एक पुलिस की जीप से वहां ठहरने के संदर्भ में परामर्श माँगा। उन्होंने बेहद सहयोगी रवैया अपनाते हुए हमें वहां से लगभग 300 मीटर आगे ‘होटल आश्रय’ में रुकने की सलाह दी और वहां तक छोड़ने का भी प्रस्ताव हम लोगों के समक्ष रखा।

होटल में जाते ही हम सब गहरी नींद में सो गए। अगले दिन हम लोगों को उठने में लगभग 7 से 8 बज गए, फिर एक वाहन बुक कर हम सब पातालकोट की ओर निकल गए जिसकी दूरी शहर से लगभग 75 किलोमीटर है। रस्ते भर हम पातालकोट के संदर्भ में चालक महोदय से बात करते रहे। उन्होंने जो सबसे दिलचस्प बात बोली वह यह थी कि ”वैसे यहाँ कोई आता नहीं है और जो आते हैं वो भी पता नहीं यहाँ क्या देखने आते हैं। मुझे तो यहाँ कुछ भी खास नहीं लगता है, ना बिजली है ना पानी ।” बात करते-करते हम लगभग 2 घंटे में पातालकोट पहुँच गए।

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वाहन जहाँ रुका उसके सामने ऐसा प्रतीत हो रहा था कि हम पृथ्वी के अंतिम बिंदु पर खड़े हैं। सामने कई सोउ फ़ीट कि गहरी खाई थी जिसका अंत ऊपर से नज़र नहीं आ रहा था । हमारे चालक महोदय ने सख्त हिदायत दी कि सूरज डूबने से पहले ऊपर आ जाइएगा।

पातालकोट में उतरने के लिए दूर-दूर तक फैली सीढ़ियों की व्यवस्था है, जहाँ पैदल ही जाना पड़ता है। यहाँ प्रकाश की उचित व्यवस्था नहीं है। पातालकोट के अंतर्गत गैलडुब्बा, कारेआम, रातेड़, घटलिंगा-गुढ़ीछत्री, घाना कोड़िया, चिमटीपुर, जड़-मांदल, घर्राकछार, खमारपुर, शेरपंचगेल, सुखाभंड-हरमुहुभंजलाम और मालती-डोमिनी गाँव आते हैं।

यहाँ भारिया और गौंड आदिवासी समुदाय के लोग निवास करते हैं जो पूरी तरह से प्रकृति पर आधारित जीवन व्यतीत करते हैं। लोग बताते हैं कि ये भूमि को माँ मानते हैं इसलिए पहले ये लोग कृषि में हल का भी प्रयोग नहीं करते थे सिर्फ खुरपी से खेती किया करते थे परन्तु अब ये हल का प्रयोग करने लगे हैं।

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हम लोग जितना नीचे उतर रहे थे उतना अधिक रहस्य और रोमांच हमें और नीचे की ओर आकर्षित करता जाता। घाटी में आपको गिरते पानी से बने कई झरने व उनसे बनते इंद्रधुनष दिखाई पड़ते हैं। हम लोगों की सबसे बड़ी चिंता सूर्यास्त से पहले ऊपर लौटना था जिसमें हम लोगों की नीचे जाने में लगी शक्ति की 2 गुनी शक्ति लगने वाली थी। अतः हम लोगों के लिए सभी गांवों को देख पाना असम्भव था। हम लोग जितना भी देख और समझ पाए उसे उस सीमित समय में जाना- समझा।

हम सब की नासमझी ने एक बहुत बड़ा मौका गँवा दिया था। दरअसल हम लोगों ने जो समय यहाँ आने का चुना था उसके एक सप्ताह बाद यहाँ एक बड़ा रोमांचकारी आयोजन शुरू होने वाला था जिसमें पैराग्लाइडिंग, जॉर्बिंग बॉल, रॉक क्लाइबिंग जैसे उनके खेलों का आयोजन होना था। हम लोगों के पास जितना समय था उसमें इस आयोजन में शिरकत कर पाना मुमकिन नहीं था।

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यहाँ ठण्ड में जाना बेहतर होता है। वर्षा ऋतू में यहाँ आपको जलप्रपात व सुंदर प्राकृतिक दृश्य तो दिखाई देंगे परन्तु इस मौसम में यहाँ की यात्रा खतरनाक मानी जाती है।

आप भी यदि रहस्य और प्रकृति को करीब से देखने और समझने में रूचि रखते हैं, शहर के प्रदूषण और विभिन्न मशीनों की कानफाड़ू आवाज़ों से तंग आ चुके हैं तो दूधी नदी के आंचल में फैला पातालकोट आपके सुकून की एक मंजिल हो सकता है।

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सक्षम द्विवेदी
मोबाईल – 7380662596
पता – २० नया कटरा, इलाहबाद

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