मोदी सरकार ने दो साल पूरे कर लिए हैं। इसे लेकर सरकारी स्तर पर जिस
कदर हंगामा और हवाबाजी की जा रही है उसे देख तो ऐसा लगता है कि पता
नहीं क्या हो गया? प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में विज्ञापनों की
बाढ़ आ गई है। चैनलों पर मोदी सरकार पर हो रही बहस में अधिकांश वक्ता
यह साबित करने में जुटे हैं कि देश में ऐसी सरकार आज तक आई ही नहीं..।
चारों ओर जयजयकार हो रही है..मोदी की। इसे कहते हैं किस्मत। यदि किसी
की किस्मत में यश लिखा हाो ताो कोई क्या कर सकता है। मोदी जी की किस्मत
में यश है…वे कुछ करें न करें लेकिन जयजयकार होती रहेगी..और वही हो
रहा है। दो साल में आखिर क्या हुआ…मीडिया को बताना चाहिए। लेकिन
मीडिया ऐसा कर नहीं रहा। क्यों? इस पचड़े में पड़ने से बचते हुए आगे
बढ़ते हैं और जमीनी हकीकत पर एक नजर डालते हैं। मोदी ने पांच वादे किए
थे…महंगाई कम करुंगा, रोजगार के अवसर बढेंगे, कालाधन वापस आएगा, डालर के
मुकाबले रुपया मजबूत होगा और विकास को रफ्तार मिलेगी।
हुआ क्या? महंगाई..। मई 2014 में चना, अरहर, मूंग और मसूर की दाल क्रमश:
47 रुपए, 72 रुपए, 71 रुपए व 68 रुपए थी। मई 2016 में इनकी कीमत क्रमश: 83
रुपए,170 रुपए,160 रुपए और 100 रुपए किलो है। चीनी 28 रुपए थी जो आज
38 रुपए है। मई 2014 में डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत 59.26 थी जो आज
11 प्रतिशत गिर कर 66.44 हो गई है। देश का निर्यात 18 प्रतिशत नीचे गया
है। रुपया, सेंसेक्स और रोजगार की गिरावट को रोकने में सरकार बुरी तरह
विफल रही है। नौकरी का हाल क्या है..जरा यह भी समझ लीजिए। देश के प्रमुख
आठ कोर सेक्टरों में बीते बरस सबसे कम रोजगार पैदा हुआ । 2015 में सिर्फ
1.35 लाख युवाओं को रोजगार मिला। जबकि 2011 में 9 लाख और 2013 में 4.19
लाख युवाओ को नौकरी मिली थी।
देश भर में रजिस्टर्ड बेरोजगारों की संख्या 2 करोड 71 लाख 90 हजार है।
तो वैसे बेरोजगार जो रोजगार दफ्तर तक कभी पहुंच ही नहीं पाये उनकी
संख्या 5 करोड 40 लाख है। देश भर में सरकारी नौकरी करने वाले महज 1
करोड 70 लाख है । हर महीने दस लाख नौजवान नौकरी के बाजार में कूद रहा
है, लेकिन उसके लिए नौकरी है नहीं, क्योंकि एक तरफ सरकारी नौकरियां कम तो
दूसरी तरफ निजी क्षेत्र में नौकरियों में सौ फीसदी तक की कमी आ चुकी है।
1996 -97 में सरकारी नौकरी 1 करोड़ 95 लाख लोगों को सरकारी नौकरियां
मिली थीं जो अब घट कर 1 करोड़ 70 लाख रह गई हैं। मोदी सरकार के पहले
साल 2014-15 में 1072 कंपनियों ने सिर्फ 12,760 नौकिरयां दीं जबकि
2013-14 में 188,371 नौकरियां निकली थीं। डिजीटल इंडिया, मेक इन इंडिया,
स्टार्टअप इंडिया…. ये सब एक आकर्षक नारा मात्र बन कर रह गए हैं।
किसानों की बात करें। सरकार का वादा था कि वह किसानों को उनकी लागत का
50 फीसदी मुनाफा दिलाएगी लेकिन अब सरकार पलटी लेते हुए कह रही है कि यह
संभव नहीं है। मोदी सरकार द्वारा पेश बजटों में खेती पर खर्च कम हुआ
है। यूपीए 2 में हुए घोटालों में लिप्त एक भी नेता के खिलाफ कार्रवाई
नहीं हुई है। शिक्षा और रक्षा बजट में कटौती हुई है। एफडीआई नहीं के
बराबर आई है। कुल मिला कर काम कम और प्रचार ज्यादा। मेरी नजर में तो ये
अच्छे दिन नहीं हैं लेकिन अच्छे दिन की उम्मीद बरकरार है।
संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
sandyy.thakur32@gmail.com
Comments on “प्रचार के रथ पर सवार मोदी सरकार…. अच्छे दिन आ गए… किसके…किसी को नहीं पता”
जिन्होंने अच्छे दिन का सपना दिखाया, उनके अच्छे दिन तो आ गए, लेकिन जिन आँखों को ये सपना दिखाया गया उनके लिए अच्छे दिन आज भी सपना ही है, यही सच है लेकिन कड़वा और कसैला है