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सुख-दुख

जांच के नाम पर पत्रकार पुष्प शर्मा को प्रताड़ित कर रही है दिल्ली पुलिस

Sanjaya Kumar Singh : मंत्री जी, अब चुप रहने का विकल्प नहीं है। इसका अर्थ बदल गया है। दिलचस्प हो रहा है आयुष मंत्रालय से जुड़ा विवाद। आयुष मंत्रालय के संबंध में एक सूचना आई थी कि मंत्रालय नीतिगत रूप से मुसलमानों की नियुक्ति नहीं करता है। यह सूचना पहली नजर में ही गलत लगती है और यकीन करने लायक नहीं है। मेरा मानना है कि अगर ऐसी कोई नीति होगी भी तो स्वीकार नहीं की जाएगी और आरटीआई के जवाब में आसानी से आ जाए यह तो संभव नहीं है। फिर भी कोई ऐसी सूचना प्रकाशित करे तो इसके कई कारण हो सकते हैं और यहां मैं उनके विस्तार में नहीं जाकर यही कहूंगा कि मैं इंतजार कर रहा था कि यह मामला इस लायक हो जाए कि इसमें दिलचस्पी बने। आज सुबह के अखबारों में खबर है कि संबंधित पत्रकार पुष्प शर्मा को पुलिस ने कल शाम अपने अंदाज में उसके घर से ‘उठा’ लिया और फिर रात साढे दस बजे यह कहकर छोड़ा गया कि आज सुबह 10 बजे थाने में पहुंच कर सारी बात बताएं, सबूत दें आदि।

<p>Sanjaya Kumar Singh : मंत्री जी, अब चुप रहने का विकल्प नहीं है। इसका अर्थ बदल गया है। दिलचस्प हो रहा है आयुष मंत्रालय से जुड़ा विवाद। आयुष मंत्रालय के संबंध में एक सूचना आई थी कि मंत्रालय नीतिगत रूप से मुसलमानों की नियुक्ति नहीं करता है। यह सूचना पहली नजर में ही गलत लगती है और यकीन करने लायक नहीं है। मेरा मानना है कि अगर ऐसी कोई नीति होगी भी तो स्वीकार नहीं की जाएगी और आरटीआई के जवाब में आसानी से आ जाए यह तो संभव नहीं है। फिर भी कोई ऐसी सूचना प्रकाशित करे तो इसके कई कारण हो सकते हैं और यहां मैं उनके विस्तार में नहीं जाकर यही कहूंगा कि मैं इंतजार कर रहा था कि यह मामला इस लायक हो जाए कि इसमें दिलचस्पी बने। आज सुबह के अखबारों में खबर है कि संबंधित पत्रकार पुष्प शर्मा को पुलिस ने कल शाम अपने अंदाज में उसके घर से ‘उठा’ लिया और फिर रात साढे दस बजे यह कहकर छोड़ा गया कि आज सुबह 10 बजे थाने में पहुंच कर सारी बात बताएं, सबूत दें आदि।</p>

Sanjaya Kumar Singh : मंत्री जी, अब चुप रहने का विकल्प नहीं है। इसका अर्थ बदल गया है। दिलचस्प हो रहा है आयुष मंत्रालय से जुड़ा विवाद। आयुष मंत्रालय के संबंध में एक सूचना आई थी कि मंत्रालय नीतिगत रूप से मुसलमानों की नियुक्ति नहीं करता है। यह सूचना पहली नजर में ही गलत लगती है और यकीन करने लायक नहीं है। मेरा मानना है कि अगर ऐसी कोई नीति होगी भी तो स्वीकार नहीं की जाएगी और आरटीआई के जवाब में आसानी से आ जाए यह तो संभव नहीं है। फिर भी कोई ऐसी सूचना प्रकाशित करे तो इसके कई कारण हो सकते हैं और यहां मैं उनके विस्तार में नहीं जाकर यही कहूंगा कि मैं इंतजार कर रहा था कि यह मामला इस लायक हो जाए कि इसमें दिलचस्पी बने। आज सुबह के अखबारों में खबर है कि संबंधित पत्रकार पुष्प शर्मा को पुलिस ने कल शाम अपने अंदाज में उसके घर से ‘उठा’ लिया और फिर रात साढे दस बजे यह कहकर छोड़ा गया कि आज सुबह 10 बजे थाने में पहुंच कर सारी बात बताएं, सबूत दें आदि।

कुल मिलाकर केंद्र में नई सरकार बनने के बाद (मुझे लग रहा है कि दिल्ली में) सोशल मीडिया पर फैलने वाले कथित अफवाहों की पहली बार जांच हो रही है। हालांकि, जांच के नाम पर यह पुलिस प्रताड़ना ही है पर पुलिस को इतना अधिकार मिला मान लिया जाए तो मामला यह लगता है कि संबंधित रिपोर्टर ने आरटीआई के तहत कई सवाल पूछे थे और उसमें एक यह भी था कि योग के प्रशिक्षण के लिए कितने मुसलिम आवेदकों को विदेश भेजा गया। आयुष मंत्रालय की एक विज्ञप्ति के अनुसार चौथा सवाल इस प्रकार था, “How many Muslim candidates were invited, selected or sent abroad as Yoga trainer/teacher during World Yoga Day 2015”. विज्ञप्ति के अनुसार कुल सात सवाल थे। मैं यहां ज्यादा विस्तार में नहीं जाकर सिर्फ उसी मुद्दे की चर्चा करूंगा जिसपर विवाद है और यह यह भी विवाद खत्म करने के लिए मंत्रालय मूल मुद्दे पर चुप रहकर लीपापोती क्यों कर रहा है?

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मंत्रालय का कहना है कि इस आरटीआई को उसने तीन एजेंसियों को अग्रसारित कर दिया था और यह आरटीआई कानून की धारा 6(3) के तहत महज अग्रसारण (फॉर्वार्डिंग) है और इसलिए सवालों का कोई जवाब नहीं है। विज्ञप्ति में आरोप लगाया गया है कि 08.10.2015 के इस अग्रसारण पत्र का उपयोग मीडिया ने इस मामले में किया है पर एक फर्जी, बगैर अस्तित्व वाले अनुलग्नक (ANNEXURE – I) एक के साथ। मंत्रालय साफ तौर पर कह रहा है कि इसे जारी ही नहीं किया गया था। इसी स्पष्टीकरण में आगे कहा गया है कि कथित अनुलग्नक में जो जानकारी दी गई है वह ना सिर्फ गढ़ी हुई बल्कि वास्तविकता से दूर, गलत भी है। इसमें दावा किया गया है कि योग विशेषज्ञों / उत्साहियों को निमंत्रण उनके धर्म का संदर्भ लिए बगैर भेजा गया था। मेरा सवाल इसी से जुड़ा है, मैं मंत्रालय की सारी बातें मान रहा हूं। और यह भी कि जिस सूची का उपयोग किया गया वह फर्जी है। और साथ ही यह भी कि आरटीआई का जवाब नहीं दिया गया है। क्यों?

क्या यह जरूरी नहीं है कि आरटीआई का जवाब दिया जाए और देरी का कारण बताया जाए। मेरा मानना है कि सरकार ने अगर कुल 26 लोगों को अभी साल भर पहले विदेश भेजे थे तो उनका नाम बताने में असुविधा नहीं होनी चाहिए। और अगर सरकार ऐसा कर देती है तो मामला अपने आप खत्म हो जाएगा। पुलिस को भी जांच में सुविधा होगी। लेकिन अभी तक जो स्थिति है उससे लग रहा है कि आरोप यह है कि मंत्रालय में मुस्लिमों की नियुक्ति ही नहीं होती है। सबसे पहले इस खबर को प्रकाशित करने वाले “मिल्ली गजट” की खबर पर प्रतिक्रिया करते हुए कई पाठकों ने भी मंत्रालय के कर्मचारियों-अधिकारियों की सूची का लिंक दिया है जिसमें मुस्लिम नाम हैं। मैंने भी जब इस मामले की जांच करनी चाही तो सबसे पहले यही देखा और फिर मुझे समझ में नहीं आया कि मामला क्या है तो मूल खबर पढ़ी।

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अभी तो मुद्दा यह है कि आयुष (या योग) मंत्रालय के हवाले से जो कहा गया है वह गलत है या सही (मैं सच झूठ की बात नहीं कर रहा) और वह इस प्रकार है, “The ministry said, a total of 711 Muslim yoga trainers had applied for the short-term assignment abroad but none was even called for an interview while 26 trainers (all Hindus) were sent abroad on this assignment. The reply also revealed that 3841 Muslim candidates applied till October 2015 for the post of Yoga trainer/teacher with the Ministry but none was selected. The RTI reply of the Ayush Ministry bluntly revealed the reason for the rejection of all applications by Muslim Yoga teachers as follow: “As per government policy – No Muslim candidate was invited, selected or sent abroad.” The reply also makes it clear that even for assignment within India no Muslim was selected, although a total of 3841 Muslims had applied for the yoga teacher jobs.”

मंत्रालय के लिए यह कहना आसान तो है कि अनुलग्नक फर्जी है। पर अनुलग्नक जैसा है और जिन स्थितियों में प्रकाशित हुआ है उससे फर्जी लगता नहीं है। वैसे भी, यह बड़ा मुश्किल है कि किसे सच माना जाए। ऐसे में मंत्रालय का भी कुछ दायित्व है और वह इससे मुक्त नहीं हो सकता है। इसका खंडन तो इस प्रकार होगा कि योगा प्रशिक्षक के लिए किसी मुस्लिम के आवेदन नहीं आए या XXX आए और XX को प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजा गया या भेजा ही नहीं गया। इसमें XX हिन्दू, XX मुस्लिम और XX अन्य धर्मों के लोग थे। दूसरा मुद्दा है कि अक्तूबर 2015 तक 3841 मुस्लिम उम्मीदवारों ने योग प्रशिक्षक / शिक्षक के रूप में आवेदन किया था। पर किसी का चुनाव नहीं किया गया। पुराने जमाने में सरकारी जवाब हो सकता था कि यह आरोप गलत है आरटीआई और पारदर्शिता के जमाने में यह कहना बनता है कि नहीं एक भी आवेदन नहीं आया या 3841 नहीं, XXXX आवेदन आए थे और फलां-फलां को रखा गया है। पुराने समय में सरकार के पास चुप रहने का विकल्प था। अब नहीं है और चुप रहने के मायने बदल गए हैं।

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www.milligazette.com/news/13831-we-dont-recruit-indian-muslims-modi-govts-ayush-ministry

http://pib.nic.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=137855

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वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से. संपर्क : Facebook.com/sanjaya.kumarsingh


मूल खबर….

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