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रवीश के पास जन पक्षधरता की एक भंगिमा है, अतरिक्त कुछ नहीं!

Shashi Bhooshan Dwivedi : मुझे रवीश कुमार अच्छे लगते हैं क्योंकि वे अपनी बात कहते हैं और लड़ते भी दिखते हैं कम से कम टीवी पत्रकारिता में. मगर यार उन्हें महान विचारक और शहीद भी मत बनाओ. रवीश भी उतने ही क्रांतिकारी हैं जितना उनका मालिक इसकी इजाजत देता है. हम सब का हाल यही है, हाँकने को कुछ भी हांकें.

<p>Shashi Bhooshan Dwivedi : मुझे रवीश कुमार अच्छे लगते हैं क्योंकि वे अपनी बात कहते हैं और लड़ते भी दिखते हैं कम से कम टीवी पत्रकारिता में. मगर यार उन्हें महान विचारक और शहीद भी मत बनाओ. रवीश भी उतने ही क्रांतिकारी हैं जितना उनका मालिक इसकी इजाजत देता है. हम सब का हाल यही है, हाँकने को कुछ भी हांकें.</p>

Shashi Bhooshan Dwivedi : मुझे रवीश कुमार अच्छे लगते हैं क्योंकि वे अपनी बात कहते हैं और लड़ते भी दिखते हैं कम से कम टीवी पत्रकारिता में. मगर यार उन्हें महान विचारक और शहीद भी मत बनाओ. रवीश भी उतने ही क्रांतिकारी हैं जितना उनका मालिक इसकी इजाजत देता है. हम सब का हाल यही है, हाँकने को कुछ भी हांकें.

मुश्किल यह है कि हम अतियों के युग में जी रहे हैं. कुछ लफंगे भक्त बने हुए हैं जो कुछ भी सुनने को तैयार नहीं, दूसरी तरफ जो भी अपना काम कर रहा है वह शहीद बना दिया जा रहा है. रवीश ने जो किया वह किसी भी पत्रकार को करना चाहिए, लेकिन कई बार वे आवेग और तात्कालिकता में फंस जाते हैं और अतिक्रमण कर जाते हैं. बाकी महानताएं तात्कालिक प्रतिक्रियाओं से तय नहीं होतीं बॉस. उसके लिए वक्त चाहिए होता है…

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पत्रकार, साहित्यकार और आलोचक शशि भूषण द्विवेदी के फेसबुक वॉल से. इस स्टेटस पर आए कुछ प्रमुख कमेंट इस प्रकार हैं….

Srijan Shilpi : रवीश के निजी राजनीतिक झुकाव और विरोध उनकी एंकरिंग में स्पष्ट नज़र आ जाते हैं और इसलिए कुछ लोगों को वह कभी-कभी अखर जाते हैं। वह कहीं-न-कहीं उस पत्रकारीय निष्पक्षता की अपेक्षा पर पूरी तरह से खरा नहीं उतर पाते, जिसकी उम्मीद बहुत-से लोग उनसे करने लगे हैं। पर यह उम्मीद भी तो लोग रवीश से ही करते हैं, बाकियों से तो नहीं! चूँकि एनडीटीवी के मंच से मिली प्रोफेशनल पहचान के सहारे वह सोशल मीडिया पर भी सेलिब्रिटी बन चुके हैं तो इसकी कुछ कीमत भी तो उन्हें उठानी पड़ेगी। रवीश को इसे दिल पर नहीं लेना चाहिए। अच्छा किया कि सोशल मीडिया से उन्होंने खुद को कुछ वक्त के लिए अलग कर लिया है। हमने तो यही सब सोचकर अपनी प्रोफेशनल पहचान को सोशल मीडिया की पहचान के साथ मिक्स नहीं किया है, बल्कि दोनों को अलग रखा है। यहाँ अपने मन की बात करता हूँ, और पेशे में पूरी निष्पक्षता बरतता हूँ।

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नीलाभ इलाहाबादी : मिस्टर सृजन शिल्पी, पहली बात यह है कि पत्रकारीय निष्पक्षता जैसी कोई चिड़िया नहीं होती, न किसी तरह का लेखन ही निष्पक्ष होता है. जो इस भ्रम को जितनी कुशलता से बनाये रख सकता है, वह उतनी ही इसकी डौंडी पीटता है. मैं बीबीसी में चार साल काम कर चुका हूं और इस बात को भली-भांति जानता हूं.दूसरी बात, शशि ने सही कहा है कि रवीश उतने ही क्रान्तिकारी हैं जितना कि उनका मालिक इसकी इजाज़त देता है. हर सफल चैनल जो कथित रूप से निष्पक्ष दिखना चाहता है, एक न एक ऐसा आदमी अपने अस्तबल में रखता है.

Sawai Singh Shekhawat जी आदमी सीमाओं में ही महान होता है! निस्सीम महान दिखने की कोशिश एक खामखयाली है, इससे अधिक कुछ नहीं!

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Shashi Bhooshan Dwivedi मुझे पता है कि मेरे बहुत से मित्र मेरी इस पोस्ट से नाराज होंगे… फिर भी. यह कहना जरूरी है कि जो सच में शहादत दे रहे हैं उनकी तरफ भी देखो. बहुत हुआ प्रतीकों का खेल.

Hareprakash Upadhyay तुमने बिलकुल सटीक लिखा है। सहमत हूँ। रवीश के पास जन पक्षधरता की एक भंगिमा है। अतरिक्त कुछ नहीं।

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Iqbal Ahmed महान विचारक, शहीद, क्रांतिकारी बहुत बड़े बड़े शब्द है लेकिन अपनी नौकरी ईमानदारी से निभाने के कारण मिलती गालियाँ किस खाते में डाली जाये? सुधीर चौधरी की X रेटेड सुरक्षा या रजत शर्मा की बड़े होते कद को सही कंपनी में निवेश का शानदार रिटर्न समझा जाये।

Ravi Prakash Suraj रविश पत्रकार होने के अलावा साधारण इंसान ही तो हैं , भावनाएं और आवेग स्वाभाविक हैं , बाकी आज की हिंदी टी.वी. पत्रकारिता में इनके समानांतर शायद ही कोई दिखता है l

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Mamta Saini आज पहली बार दो इंसान मिले पत्रकारिता बिरादरी के एक आप और एक स्वतंत्र मिश्रा जी जो रवीश के बारे में कुछ कहे। वरना सबको साँप सूँघ रहा रवीश के नाम से।कमी हर इंसान में हो सकती है पर जो रवीश के साथ हो रहा है हम उसकी घोर निंदा करते है। हमें गर्व है रवीश कुमार जी पर। बाकी जो है सो है।

Narendra Pratap Singh यह बात शशि भूषण जी बहुत अच्छी कही और शायद ठीक भी।आप उतने ही क्रांतकारी हैं या हो सकते हैं जितनी आपकी संस्था आपको इज़ाज़त दे।बडे बड़े लोग जो निष्पक्षता का हल्ला मचाते हैं अधिकतर इसी तरह के हैं।रविश अपनी सीमाओ में रहते हुवे अच्छी पत्रकारिता निभा रहे हैं।

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Rakesh Rk सीमाओं में वे अच्छा काम कर रहे हैं और सत्ता पक्ष को वैचारिक रगड़ देने का काम भी करते रहे हैं जो पत्रकार के लिए जरूरी है| बाकी अनवरत बोलने की बौछार में वे हमेशा सही शब्द या वाक्य या विचार ही मुँह से निकालते हों यह जरूरी नहीं| हरेक की अपनी व्यक्तिगत सीमाएं भी हैं (बुद्धिजीविता की) और रवीश भी अपवाद नहीं| बहुत से मामले ऐसे होते हैं जब उनसे ज्यादा जानने वालों को लगता है वे गलत बोल गये या उनकी जानकारी कम है इस क्षेत्र में| सामने कोई बैठा हो, किसी पार्टी का हो, उन्हें ताने देने से बचना चाहिए और थोड़ा सुनने का धैर्य रखना चाहिये| थोड़ा युवा विनोद दुआ से उधार लें तो अच्छा संतुलन आ जाए|

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