Shashi Bhooshan Dwivedi : करीब तीन सौ की लाइन थी। मैं और ‘हिंदुस्तान’ के ही अतुल कुमार भी लाइन में लगे थे, सुबह नौ – साढ़े नौ से ही। मैंने सुबह अरुण कुमार जेमिनी को भी फोन किया। वे भी आने वाले थे। जाने क्यों नहीं आए। अतुल ने बताया कि वे तो तीन दिन से ही लाइन में लग रहे हैं और जब तक गेट तक पहुँचते हैं या तो कैश खत्म हो जाता है या शटर डाउन। आज भी यही हुआ। साढ़े चार बजे तक हम दोनों गेट तक पहुँच गए और बैंक बंद।
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रवीश के पास जन पक्षधरता की एक भंगिमा है, अतरिक्त कुछ नहीं!
Shashi Bhooshan Dwivedi : मुझे रवीश कुमार अच्छे लगते हैं क्योंकि वे अपनी बात कहते हैं और लड़ते भी दिखते हैं कम से कम टीवी पत्रकारिता में. मगर यार उन्हें महान विचारक और शहीद भी मत बनाओ. रवीश भी उतने ही क्रांतिकारी हैं जितना उनका मालिक इसकी इजाजत देता है. हम सब का हाल यही है, हाँकने को कुछ भी हांकें.
हमें इस बलात्कार से अपने इस बुजुर्ग लेखक को बचाना चाहिए!
Shashi Bhooshan Dwivedi : 6 दिसंबर को दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में हुए 17 वें रमाकांत स्मृति कथा सम्मान में वरिष्ठ आलोचक डॉ विश्वनाथ त्रिपाठी जी ने कहा कि मैं पूरी गंभीरता से कहना चाहता हूँ कि जो लेखक इस कार्यक्रम में नहीं आते मुझे उनके लेखक होने पर संशय है। त्रिपाठी जी इस कार्यक्रम के अध्यक्ष थे लेकिन उन्होंने कहा कि मैं इस कार्यक्रम का अध्यक्ष बनना नहीं चाहता था लोगों ने जबरन बना दिया (ऐसा वे पिछले 5 -7 कार्यक्रमों में कह चुके हैं। अर्थ यह कि आयोजक लोग इस बुढ़ापे में उनके साथ बलात्कार कर रहे हैं। हमें इस बलात्कार से अपने इस बुजुर्ग लेखक को बचाना चाहिए।) अध्यक्ष त्रिपाठी जी जब अपना अध्यक्षीय वक्तव्य देने लगे और पुरस्कृत कहानी पर बात करने लगे तो लगा कि उन्होंने कहानी पढ़ी ही नहीं है.