बंद दरवाजे के पीछे बहुत परदा है
करीब एक साल बहुत लंबे इंतजार के बाद 7 मई 2018 को राज्यसभा टीवी में बंपर वैकेंसी आयी तो 43 पोस्टों के लिए 2500 से अधिक पत्रकारों ने अर्जी दे डाली। बड़ी संख्या में पत्रकार आखिरी तारीख यानि 21 मई को तालकटोरा स्टेडियम और गुरुद्वारा रकाबगंज रोड पर राज्य सभा टीवी के दफ्तर पहुंचे। अर्जियां और उनके साथ नत्थी योग्यताओं के दस्तावेजों की फोटो कापी के साथ इतनी भीड़ उमड़ी कि पहले तय पांच बजे का समय बढ़ा कर रात आठ बजे करना पड़ा। कुरियर से आवेदन उसके बाद भी दो तीन दिन तक आते रहे।
हालांकि अधिकतर उम्मीदवारों को इस बात का अंदाज नहीं है कि 43 पदों के लिए जो वैकेंसी निकाली है उनमें से कुछ कई पदों पर पहले ही तय हैं। पूरी नियुक्ति तो फिक्स नहीं है लेकिन एग्जीक्यूटिव एडिटर के लिए विभाकर का नाम और एग्जिक्यूटिव प्रोड्यूसर (इनपुट) के लिए विशाल दहिया का नाम तय माना जा रहा है।
राज्य सभा टीवी में यह बात किसी से छिपी नहीं रह गयी है। इसी तरह असोसिएट एग्जिक्यूटिव प्रोड्यूसर (इनपुट), ग्राफिक्स हेड, सीनियर एंकर (हिंदी और अंग्रेजी), कंसल्टेंट (हिंदी और अंग्रेजी) कंसल्टेंट (प्रोमो, फिलर्स और हिंदी न्यूज) सीनियर असिसटेंट एडिटर (अंग्रेजी), सीनियर प्रोड्यूसर (हिंदी), असिसटेंट प्रोड्यूसर, सीनियर गेस्ट कोऑर्डिनेटर, चीफ रिसर्चर से लेकर तमाम पदों पर इस बात का ध्यान रखा गया है कि अंग्रेजी के जानकार कैसे अधिक एकोमोडेट हों। उम्मीदवारों की उमर, अनुभव से लेकर डिग्री डिप्लोमा को पहले से ध्यान में रखा गया है।
फिर भी कुछ लोगों की लाटरी लग सकती है। खास पदों की 58 साल की उम्र सीमा के कारण कई सीनियर पत्रकारों ने अर्जी दी है।
राज्य सभा टीवी की पहली बैठक में शामिल हुए ए.ए.राव
तमाम अर्जी दिल्ली से बाहर के पत्रकारों ने भी दी है। हालांकि नियम कड़े हैं और कहा गया है कि जो राज्यसभा टीवी की शर्तों पर खरा उतरेंगे, उनको ही इंटरव्यू या स्किल टेस्ट के लिए बुलाया जाएगा। जो बाहर से आएंगे उनको आने जाने का व्यय या कोई और सुविधा नहीं दी जाएगी। चुने आवेदकों को तीन साल के कॉन्ट्रैक्ट पर रखा जाएगा।
अपनी बेबाकी, अच्छी सेवा शर्तों और आजादी के साथ पत्रकारिता करने के कारण राज्य सभा टीवी देश विदेश में चर्चा का विषय रही है। बहुत से पत्रकारों को इस नाते यहां को लेकर ईर्ष्या भी होती रही है और यहां के खर्चों को लेकर तमाम झूठी-सच्ची खबरें भी चलायी गयीं। इतनी बड़ी संख्या में आयी अर्जियों में बहुत से लोग संघ भाजपा सर्किल के भी हैं लेकिन इनमें किसी को इस बात का अंदाजा नहीं है कि आज राज्य सभा टीवी में क्या हो रहा है।
यहां श्रम कानूनों का सभी संभव उल्लंघन हो रहा है और मनमाने तरीके से लोगों को रखा या निकाला जा रहा है। एक साल की जगह मनमाने तरीके से किसी को दो माह तो किसी को तीन या छह माह का एक्सटेंशन दिया जा रहा है। यह सारा काम राज्य सभा सचिवालय के एडीशनल सेकेट्री ए.ए.राव के आदेश पर हो रहा है, जो कि भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी हैं।
17 अप्रैल 2018 को एक ही दिन चार लोगों को एक्सटेंशन दिया गया। इसमें से दो लोगों का एक्सटेंशन 31 जून तक दिया गया जबकि दो को 31 दिसंबर तक। आदेश की फाइल एक ही दिन निकली लेकिन जिन दो लोगों निगम झा और मोहम्मद फतेह अली टीपू को 31 दिसंबर तक एक्सटेंशन दिया गया वे ए.ए.राव के करीबी लोग हैं। बाकी दोनों की उन तक पहुंच नहीं है।
7 मार्च 2018 को राज्य सभा टीवी के बड़े अधिकारी और एडीशनल सेकेट्री के दौस्त विनोद कौल का कार्यकाल समाप्त हो गया। उनका वेतन 2.17 लाख रुपए है और कहा जा रहा है कि मोटी तनख्वाह वालों से पीछा छुड़ाने के उपराष्ट्रपति के आदेश के तहत उनका एक्सटेंशन नहीं होगा लेकिन 25 अप्रैल को उनका कार्यकाल भी 31 दिसंबर तक बढा दिया गया। वहीं इसी दौरान बड़े पत्रकार निधि चतुर्वेदी, विनीत दीक्षित और कुरबान अली को एक्सटेंशन नहीं दिया गया।
एक्सटेंशन 30 जून तक
एक्सटेंशन 31 दिसंबर तक
भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी ए.ए.राव लंबे समय तक पीआईबी में काम कर रहे थे। एडीशनल सेकेट्री के रूप में उनको राज्य सभा टीवी की जिम्मेदारी दी जाएगी, इसका पहले ही अंदाज हो गया था। सितंबर के आऱंभ में उपराष्ट्रपति एम.वेंकैया नायडू ने राज्य सभा टीवी के भविष्य को लेकर जो बैठक बुलायी थी उसमें ए.ए.राव को भी बुलाया गया था। उसी के बाद तमाम अखबारों में राज्य सभा टीवी के खर्चों और भविष्य की योजनाओं पर खबर छपी। उसी महीने उनकी नियुक्ति कर दी गयी और प्रशासन के साथ संपादकीय मामलों को भी उन्होने संभाल लिया।
संपादकीय विभाग ने उऩके नेतृत्व में 12 से 14 घंटे तक काम आरंभ कर दिया। स्टाफ की पहले ही काफी कमी थी। 422 की स्वीकृत संख्या की जगह 200 से भी कम लोग काम चला रहे थे और संपादकीय विभाग तो 80 पर पहुंच गया था। लेकिन राज्य सभा टीवी में कार्यकारी निदेशक राजेश बादल ने टीम को फिर से संभाला और कामकाज में काफी सुधार किया।
बेशक इसके लिए टीम रात दिन लगी रही। लेकिन संपादकीय विभाग की मीटिंग में एडीशनल सेकेट्री का व्यवहार बहुत खराब रहा। कामकाज की खराब स्थितियां, उनके व्यवहार और दूसरे कारणों के चलते राजेश बादल, कार्यकारी संपादक अंग्रेजी अनिल जी.नायर, ई.पी. संजय कुमार, सीनियर एंकर ट्रेसी शिलशी, कुरबान अली, सत्येंद्र रंजन सिंह, विनीत दीक्षित, निधि चतुर्वेदी और सीनियर पैनल प्रोड्यूसर उषा सिंह ने त्यागपत्र दे दिया। वहीं एडीशनल डायरेक्टर चेतन साजन दत्ता का तबादला कर दिया गया।
उपराष्ट्रपति एम.वेंकैया नायडू खुद पत्रकार रहे हैं। सूचना प्रसारण मंत्री भी वे रहे हैं और उन्होंने राज्य सभा टीवी को बेहतर तरीके से चलाने के लिए ही प्रसार भारती के सीईओ शशि शेखर वेंपटि को राज्य सभा टीवी का सीईओ बनाया। रोजमर्रा के मामले की देख रेख के लिए ए.ए.राव को प्रशासनिक जिम्मा दिया। लेकिन वे इसके कंटेंट को बदलने लगे और एडीटोरियल पर इतना दबाव बना दिया कि तमाम लोग जाने लगे। राव के व्यवहार से नाराज होकर सबसे पहले कृष्णानंद त्रिपाठी ने विरोध जताया और इस्तीफा दे दिया।
एक संसदीय चैनल में आज जो कुछ हो रहा है उसे देख कर यही कहा जा सकता है कि यहां काम कर रहे पत्रकारों की दशा बंधुआ मजदूरों जैसी है। किसे कब किस आधार पर बाहर कर दिया जाये पता नहीं। एक अजीब सा भय पैदा किया गया है और ए.ए. राव मौके बेमौके धमकी देने पर उतरते हैं। मनमाना एक्सटेंशन इसी कड़ी का हिस्सा है। नौकरी से निकालने की धमकी के साथ बहुत से हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। प्रधान संपादक के रूप में राहुल महाजन के ज्वाइन करने के बाद से संपादकीय कामकाज में काफी बदलाव आया है। लेकिन माहौल बहुत ही खराब है।
एडिशनल सेकेट्री ने अपने आसपास दूरदर्शन के कुछ पुराने पत्रकारों और चाटुकारों को पाल लिया है। उनको भरोसा दिया गया है कि जो वैकेंसी निकली है, उसमें उनको प्रोमोट किया जाएगा। उनकी तनख्वाह बढ़ाने के लिए अलग से फाइल चलायी गयी है। पहले ही बिना जरूरी औपचारिक प्रशासनिक मंजूरी के 9 जनवरी 2018 सीनियर प्रोड्यूशर रैंक के दो लोगों विशाल दहिया को इनपुट हेड और संदीप शुक्ला को आउटपुट में दूसरे नंबर का प्रभार दे दिया।
इससे वरिष्ठ पत्रकारों में असंतोष बढ़ा। इसका आदेश निकालते समय As directed by Addl.Secretary लिखा गया। इनमें से एक पत्रकार कांग्रेस सर्किल में बहुत जाना माना चेहरा है जबकि दूसरा सर्वदलीय। डायरेक्टर टेक्नीकल विनोद कौल ए.ए. राव के काफी करीबी हैं इस नाते वे संपादकीय विभाग में भी खूब दिलचस्पी लेते हैं। राज्य सभा टीवी वैसे तो लगातार सुर्खियों में रहा है। इसके संस्थापक सीईओ गुरदीप सिंह सप्पल के खिलाफ बहुत सी खबरें छपी। लेकिन आज आलम यह है कि जो लोग गुरदीप सप्पल से भी नाराज रहा करते थे, उनको आज के माहौल में उनका कार्यकाल स्वर्णयुग से कम नहीं लग रहा है।
लेखक यशवंत सिंह भड़ास4मीडिया डॉट कॉम के फाउंडर और एडिटर हैं. संपर्क : [email protected]
Rao AA
May 29, 2018 at 7:19 am
Makes hilarious reading. Factually incorrect and motivated report. I enjoyed it as I know facts and who r behind this report.