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सुख-दुख

भारत को अपना 21वीं सदी का सबसे बड़ा झुट्ठा और सबसे बड़ा झूठ मिल गया है!

Yashwant Singh :  भारत को अपना 21वीं सदी का सबसे बड़ा झुट्ठा मिल गया है. वह हैं माननीय नरेंद्र मोदी. जाहिर है, जब झुट्ठा मिल गया तो सबसे बड़ा झूठ भी खोज निकाला गया है. वह है- ‘अच्छे दिन आएंगे’ का नारा. नरेंद्र आम बजट में चंदा देने वाले खास लोगों को दी गयी 5% टैक्स की छूट… इसकी भरपाई वोट देने वाले आम लोगों से 2% सर्विस टैक्स बढा कर की जाएगी.. मोदी सरकार पर यूं ही नहीं लग रहा गरीब विरोधी और कारपोरेट परस्त होने के आरोप. खुद मोदी के कुकर्मों ने यह साबित किया है कि उनकी दशा-दिशा क्या है. इन तुलनात्मक आंकड़ों को कैसे झूठा करार दोगे भक्तों… अगर अब भी मोदी भक्ति से मोहभंग न हुआ तो समझ लो तुम्हारा एंटीना गड़बड़ है और तुम फिजूल के हिंदू मुस्लिम के चक्कर में मोदी भक्त बने हुए हो. तुम्हारी ये धर्मांधता जब तुम्हारे ही घर के चूल्हे एक दिन बुझा देगी शायद तब तुम्हें समझ में आए. कांग्रेस की मनमोहन सरकार से भी गई गुजरी मोदी सरकार के खिलाफ हल्ला बोलने का वक्त आ गया है… असल में संघ और भाजपा असल में हिंदुत्व की आड़ में धनिकों प्रभुओं एलीटों पूंजीपतियों कार्पोरेट्स कंपनियों मुनाफाखोरों की ही पार्टी है। धर्म से इनका इतना भर मतलब है कि जनता को अल्पसंख्यक बहुसंख्यक में बाँट कर इलेक्शन में बहुमत भर सीट्स हासिल कर सकें। दवा से लेकर मोबाइल इंटरनेट घर यात्रा तक महंगा कर देना कहाँ के अच्छे दिन हैं मोदी जी। कुछ तो अपने भासड़ों वादों का लिहाज करो मोदी जी। आप तो मनमोहन सोनिया राहुल से भी चिरकुट निकले मोदी जी।

Yashwant Singh :  भारत को अपना 21वीं सदी का सबसे बड़ा झुट्ठा मिल गया है. वह हैं माननीय नरेंद्र मोदी. जाहिर है, जब झुट्ठा मिल गया तो सबसे बड़ा झूठ भी खोज निकाला गया है. वह है- ‘अच्छे दिन आएंगे’ का नारा. नरेंद्र आम बजट में चंदा देने वाले खास लोगों को दी गयी 5% टैक्स की छूट… इसकी भरपाई वोट देने वाले आम लोगों से 2% सर्विस टैक्स बढा कर की जाएगी.. मोदी सरकार पर यूं ही नहीं लग रहा गरीब विरोधी और कारपोरेट परस्त होने के आरोप. खुद मोदी के कुकर्मों ने यह साबित किया है कि उनकी दशा-दिशा क्या है. इन तुलनात्मक आंकड़ों को कैसे झूठा करार दोगे भक्तों… अगर अब भी मोदी भक्ति से मोहभंग न हुआ तो समझ लो तुम्हारा एंटीना गड़बड़ है और तुम फिजूल के हिंदू मुस्लिम के चक्कर में मोदी भक्त बने हुए हो. तुम्हारी ये धर्मांधता जब तुम्हारे ही घर के चूल्हे एक दिन बुझा देगी शायद तब तुम्हें समझ में आए. कांग्रेस की मनमोहन सरकार से भी गई गुजरी मोदी सरकार के खिलाफ हल्ला बोलने का वक्त आ गया है… असल में संघ और भाजपा असल में हिंदुत्व की आड़ में धनिकों प्रभुओं एलीटों पूंजीपतियों कार्पोरेट्स कंपनियों मुनाफाखोरों की ही पार्टी है। धर्म से इनका इतना भर मतलब है कि जनता को अल्पसंख्यक बहुसंख्यक में बाँट कर इलेक्शन में बहुमत भर सीट्स हासिल कर सकें। दवा से लेकर मोबाइल इंटरनेट घर यात्रा तक महंगा कर देना कहाँ के अच्छे दिन हैं मोदी जी। कुछ तो अपने भासड़ों वादों का लिहाज करो मोदी जी। आप तो मनमोहन सोनिया राहुल से भी चिरकुट निकले मोदी जी।

Badal Saroj : Budget 2015… “ये जो तुम्हारे चेहरे पर लाली है सेठ जी, तुमने मेरे लहू से चुरा ली है सेठ जी।” जो पैसा कार्पोरेट्स और धन्ना सेठों के लिए छोड़ दिया गया उसका विवरण Via Sunand Sunand. (उपर दोनों ग्राफ बारीकी से देखें.) ध्यान रहे, यह इनके बाबा जी का माल नहीं था- जनता का पैसा था !! और यह खैरात जनता – बेहद बदहाल जनता – को मिलने वाली कल्याणकारी योजनाओं में कटौती करके बांटी गयी है।

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Dinesh Choudhary जय हो! साहेब ने चुनावी चंदे की एक और किस्त चुका दी है। (Corporate taxes are taxes against profits earned by businesses during a given taxable period; reduced from 30 % to 25%)I और मध्यमवर्गीय भक्तगण चुप- चुप से क्यों हैं? पहले सरकारें जनपक्षीय होने का दिखावा करती थीं और इसीलिए थोड़ी रियायत भी। ये पहली बेशर्म सरकार है जो सरमायेदारों के गलबहियां लगकर कीमत अदा कर रही है। इस बजट में हालांकि साहित्य अकादमी और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, क्योंकि उनके बजट में क्रमश: 54 और 44 फीसदी की कटौती की गई है। साहित्या अकादमी का आवंटन 21.23 फीसदी से घटाकर 9.76 फीसदी कर दिया गया है और एनएसडी का आवंटन 43.03 फीसदी से घटाकर 13.45 फीसदी कर दिया गया है। कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता योजना के लिए आवंटित धन में बहुत बड़ी कटौती की गई है। पहले इसका बजट 59.33 फीसदी था जो कि घटाकर 3.20 फीसदी कर दिया गया है।

Sheetal P Singh : दरअसल पहले दूसरे और तीसरे साल में सभी “लोकप्रिय सरकारें” अपने असल रंग में होती हैं। बाद के दो सालों में वे चुनाव की तैयारी में ग़रीब नवाज़ हो जाती हैं। यूपीए २ को याद करें। मोदी कुछ अलग नहीं कर रहे भक्तों ऽऽऽऽ। तेल के दाम बढ़ने से ख़फ़ा ख़फ़ा क्यूँ हो? अपनों के लिये जो भी कर गुज़रना है उसका वक़्त अभी ही है। टीवी चैनलों की डिबेट में गला फाड़ने के लिये जन धन स्वच्छ भारत दो लाख का बीमा आदि आदि आदि कितना तो किया है जेटली साब ने। लोग कुछ जादा नाशुक्रे हो चले हैं ……। मंहगाई न देखो उसके बढ़ने की दर देखो, कित्ती कम है ना ? देखो मुसलमानों की आबादी बढ़ी जा रही है, हिन्दू इसाई हुए जा रहे हैं , चीन चुमार में घुसने से रोक दिया गया है , पाक सीमा पर ५६” का सीना अड़ा दिया है । रामलला भी बुला रहे हैं । चार बच्चे ….नहीं छ: तो करो ही , मंहगाई की तुसी फ़िक्र ना करो । देखो देखो सामने आकाश में देखो … बिकासइ बिकास , टी वी में बिकास,अख़बार में बिकास बस सोशल मीडिया में ऐन्टी सोशलन के मारे कुछ गड्ड मड्ड चल रयो है । दो तीन साल तो यों बीतेंगे कि बस फुर्र…..

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Mukesh Kumar : कार्पोरेट और अमीरों के लिए अच्छे दिन का बजट- सुपर बजट सुपर रिच के लिए। 10 में से 10 नंबर। कार्पोरेट को तमाम तरह की रियायतें। कार्पोरेट टैक्स में फिर से कमी। 10 में से 10 नंबर। इंडस्ट्री को तरह-तरह की राहते, रियायतें और नियामतें। 10 में से 9 नंबर। अपर मिडिल क्लास को भी कुछ हल्के-फुल्के तोहफे। 10 में से 5 नंबर। कृषि क्षेत्र के लिए कुछ नहीं। आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए कुछ नहीं। 10 में से 3 नंबर। बजट के साथ आए अच्छे दिन… पेट्रोल और डीज़ल दोनों की क़ीमतें एक झटके में लगभग तीन रुपए बीस पैसे बढ़ा दी गई है। फरवरी महीने में ही ये दूसरी बढोतरी है। ध्यान रहे अभी भी यूपीए सरकार के ज़माने के मुक़ाबले अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल की क़ीमतें आधे से भी कम हैं, तब ये आलम है। ये भी मत भूलिएगा कि दो दिन पहले रेलमंत्री ने मालभाड़े में दस फ़ीसदी की बढोतरी की थी। स्वागत कीजिए अच्छे दिनों में बढ़ती महँगाई के तोहफे का।

Punj Prakash : कला, कलाकार और संस्कृति विरोधी है यह बजट… यह बात केवल इसलिए नहीं कही जा रही है कि इस बजट में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के बजट में 44% और साहित्य अकादमी के बजट में 54% की कटौती की गई है बल्कि यह बात इसलिए कह रहा हूँ कि“अच्छे दिन” का वादा करके सत्ता में आई वर्तमान सरकार ने कला और संस्कृति को बढ़ावा देनेवाली बजट में क्रूरता पूर्ण कटौती करते हुए 59.33 करोड़ से घटाकर 3.20 करोड़ कर दिया है । मैं इस बात से भी भली-भांति परिचित हूँ कि कला और संस्कृति के नाम पर दिए जा रहे आर्थिक सहयोगों में घनघोर अराजकता है । यह अराजकता कलाकारों के नैतिक पतन की निशानी तो है लेकिन इससे ज़्यादा सरकारी महकमे की नाकामी भी है । जिसका उपाय उस अराजकता को ज़िम्मेदारी पुर्वक खत्म करके भी किया जा सकता था । समाज या सरकार का कोई अंग यदि बीमार हो जाता है तो उसका इलाज किया जाना चाहिए न कि उसकी निर्मम हत्या । इतिहास गवाह है कि बिना किसी आश्रय (जनता, सरकार व कारपोरेट आदि) के कला और कलाकार ज़्यादा समय तक ज़िंदा नहीं रह सकते । जो सरकार कला और संस्कृति के प्रति इतना निर्मम हो वह समाज के प्रति संवेदनशील होगी, इस बात पर मुझे संदेह है । सनद रहे, इस विषय पर कला संस्थानों और कलाकारों की यह शर्मनाक चुप्पी एक दिन कला और कलाकार दोनों के पतन का कारण बनेगीं । याद रखिए वो यह सब सोच समझकर, एक मुहीम के तहत कर रहें हैं, मासूमियत और अनजाने में नहीं।

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Vikram Singh Chauhan : मैं सबसे ज्यादा लाचार, हताश और निराश इन दिनों मोदीभक्तों को देखता हूँ। ये चुपचाप कहीं दुबक गए है और कइयों ने अपनी आईडी डिलीट कर दिया है। ये साल भर पहले अपने नाम के आगे -पीछे नमो लिखते थे और हम लोगों को धमकाते थे। आज उनकी खुद की भी पहचान नहीं है। मोदी भी इन्हें व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानते सो अडानी की तरह इनको कोई लाभ मिलने से रहा। मैं इन लोगों से लंबे समय तक लड़ा। कई लोग मुझे खुलेआम मारने की धमकी देते थे ,कुछ जाननेवाले लोग तो मोदी आलोचना से ऐसे गुस्से में थे मुझे ट्रैन से फेंक देंगे तक बोलते थे। नाईट में ऑफलाइन होने के बाद ये लोग कमेंट में माँ -बहन की गाली लिख देते थे। कभी -कभी रात 3 -4 बजे उठ मैं इस कमेंट को डिलीट करता था। पर मैं अपने रास्ते पर अडिग रहा और सच लिखता रहा। आख़िरकार आज इनको मोदी की असलियत पता चला। है तो ये लोग भी हमारी तरह आम इंसान। लेकिन विचारधारा दूसरा और ज़हरीला। आज ये लोग हमसे नज़र नहीं मिला पाते। चुपचाप अब मुझे फॉलो कर रहे है और सभी पोस्ट को लाइक। पर कुछ कह नहीं पा रहे है। मैं आज भी इन्हें माफ़ करने को तैयार हूँ।

Dayanand Pandey : जनता के अच्छे दिन तो नहीं ही आए, न आने के आसार हैं पर हां, नरेंद्र मोदी की बदनसीबी के दिन शुरू हो गए हैं। और तय मानिए मंहगाई जो ऐसे ही अबाध रूप से बढ़ती रही तो मनमोहन सिंह से भी ज्यादा दुर्गति नरेंद्र मोदी की होगी! होनी ही है! यह सर्विस टैक्स, यह टोल टैक्स, वैट आदि का नाम बदल कर सरकार को डाका टैक्स या जबराना टैक्स रख देना चाहिए!
   
Sandeep Verma : बजट में जूते इसलिए सस्ते किये गए है कि वित्त मंत्री चाहते है कि हर वोटर जरनैल सिंह बन सके. देश के हर गरीब -अमीर पर सर्विस टैक्स का डेढ़ प्रतिशत अधिक कर देने का भार सिर्फ इसलिए बढ़ाया गया है ताकि मोदी जी की सरकार कारपोरेट को टैक्स में पांच प्रतिशत की छूट दे सकें. वैसे मोदी जी की सरकार ने थोड़ी बेईमानी भी की है. डेढ़ प्रतिशत की इस बढ़ोत्तरी से वे कारपोरेट का पूरा ही कर माफ़ कर सकते थे. मगर उन्होंने नहीं किया. इसलिए मोदी की सरकार को पूरी तरह कारपोरेट के हाथों में खेलने वाला नहीं कहा जा सकता है.

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Daya Sagar : रेल बजट के बाद आज आम बजट भी आ गया। अनुकूल जलवायु, अनुकूल अंतरराष्ट्रीय बाजार, मजबूत जनादेश से आए राजनीतिक स्‍थायित्व के बावजूद इतनी निराशा। तेजस्वी प्रधानमंत्री के भाषणों की चमक इस बजट में कहीं नहीं दिख रही। कारपोरेट जगत खुशी के पटाखे फोड़ रहा है। यकीन मानिए गरीब और मध्यम वर्ग के लिए अच्छे दिन अभी बहुत दूर हैं।

Cartoonist Irfan : देश के सबसे खास दिन जब आम आदमी का अगले साल का जीना कैसा होगा, तय होता है. उस समय इस बार बार के बजट पर गंभीर चर्चा चल रही थी सभी न्यूज़ चैनलों पर. कि एंकर ने सभी विशेषज्ञों को रोक दिया कि बेर्किंग न्यूज़ आ रही है ‘भारत ने अभी-अभी शानदार जीत दर्ज की है यूएई पर. और सारा कार्यक्रम क्रिकर्ट पर शुरू हो गया। यह हर न्यूज़ चैनल का हाल था। जब देश इतनी गंभीर चर्चा हो रही हो तब क्या नीचे फलेश देकर ही इस ‘विशाल’ जीत का जश्न नहीं मनाया जा सकता थ. और वैसे भी रोज़ आप खेल पर अलग से कार्यक्रम करते ही हैं. क्या समझें कि देश के लिए दो वक्त की रोटी से बड़ा क्रिकेट है?

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Suraj Sahu : लो जी सर्विस टैक्स 12.50% से बढ़ाकर 14%हुआ ।। लो जी आ गए अच्छे दिन ।। अब खाओ खाना होटल में । वाह आम बजट में आम आदमी को टैक्स में कोई छूट नही और कॉर्पोरेट कंपनियों को टैक्स में छूट… अबकी बार कॉर्पोरेट कंपनियों की सरकार

फेसबुक से.

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आगे की कथा यहां पढ़ें…

बीजेपी के चंदे का काला धंधा देखिए… ऐसे में मोदी जी क्यों नहीं पूंजीपतियों के हित में काम करेंगे….

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2 Comments

2 Comments

  1. अविनाश विद्रोही

    March 2, 2015 at 11:14 am

    साहिब मोडर्न रोबिन हुड है वो अमीरो को लूटते थे ये गरीबो को लूट के अमीरो में पैसा दान करते है देश को सुनहरी सपने दिखा के विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र पर कुठाराघात किया है मोदी ने पूंजीपतियो की कठपुतली है मोदी इस से कहीं बेहतर मनमोहन सिंह थे कम से मनरेगा और आर टी आई तो दी जिस से सीधा फायदा आम जन्म मानस को हुआ है ये लोग मात्र पूंजीपतियो की गुलामी कर रहे है अब ते देश सङ्घ या भाजपा नहो बल्कि अडानी और अम्बानी चला रहे है कुछ तस्वीर मनरेगा का विरोध करके सआ हो गयी कुछ बजट से ।।
    विद्रोही

  2. Akky

    July 20, 2023 at 10:33 am

    Sabse jyada jhuth bolne wale to india me hi hai par oh modi ji nahi tum media walo ho chamcho

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