राष्ट्रीय सहारा प्रबंधन तो सुव्रत राय की गिरफ्तारी के बाद से लगातार सांसत में फंसा हुआ है लेकिन अखबार के संपादक नामक पदाधिकारी की किस्मत लौट आई है। लगभग ढाई दशक से सहारा में स्थानीय संपादक का पद ही नहीं था, जो इस आफत काल में पैदा हो गया है।
वर्षों से एडिटोरियल हेड रहे सम्पादक आनन फानन में रेजिडेंट एडिटर बना दिए गए। अब चर्चाएं ये होने लगी हैं कि अचानक ऐसी कौन सी जरूरत आ पड़ी कि एडिटोरियल हेड को रेजिडेंट एडिटर बनाने की नौबत आ गई। आज तक इस महत्वपूर्ण पद पर मालिकों का नाम जाता रहा है। मालिक के जेल की हवा खाने से ये पद खैराती हो चला है।
सूत्रों का कहना है कि सारी कवायद मालिकों को तमाम झंझटों से बचाने के लिए की जा रही है। इससे पहले सुब्रत राय के भाई औऱ बेटे का नाम प्रिंट लाइन से हटाया गया था । जब मजे लेने के दिन थे, तब घर के लोग प्रिंट लाइन पर काबिज थे। अब मार खाने के दिन आ गए हैं तो इस पद का सृजन कर दिया है।