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सुख-दुख

सहाराश्री के खिलाफ खबरों को मेनस्ट्रीम मीडिया में जगह मिल पाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था!

प्रभात त्रिपाठी-

आज सुबह सहाराश्री सुब्रत राय सहारा की मृत्यु का समाचार आया। उनके काम आदि को लेकर तमाम तरह की प्रतिक्रियाएँ भी आयीं। मैं तो उन्हें उस उत्साही व्यक्ति की तरह याद करता हूँ जो “किसी भी कीमत” पर सफल होना चाहता है। कुछ सोचा होगा कुछ कोशिशें की होंगी और फिर फाइनली तीस साल की उम्र में चिट फंड का वो धंधा शुरू किया जिसने उन्हें राजसी ठाठ-बाट वाला जीवन दिया और जिसकी वजह से बाद में दुनिया ने उन्हें जाना।

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अंततः विभिन्न अनुमानों के अनुसार ज्यादा रिटर्न, ज्यादा ब्याज के लालच में लगभग तेरह करोड़ लोगों के लगभग एक लाख बारह हजार करोड़ फँस गये। मतलब देखा जाए तो उस समय भारत की आबादी का औसतन लगभग हर दसवाँ इंसान इसका शिकार हुआ।

तीस साल की उम्र में बिजनेस शुरु किया और उसके तीस साल बाद और पूंजी जुटाने के लिए 2009 में शेयर बाजार में उतरने के लिए सेबी का दरवाजा खटखटाया। जो डेटा अभी तक बिजनेस मॉडल पर सवाल उठाने वाले लोग ढूँढते रहते थे उस डेटा का एक हिस्सा सेबी को देना पड़ा और सेबी ने तमाम गड़बड़ियाँ देखी। नतीजतन दोनों और से रस्साकशी शुरु हो गई मामला मीडिया में भी हाईलाइट होने लगा।

कुछ समय पहले तक सहाराश्री के खिलाफ खबरों को मेनस्ट्रीम मीडिया में जगह पाना बहुत ही मुश्किल या यूँ कहें कि लगभग असंभव था। यहाँ से बिगड़ते हुए फिर मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुँच गया, जहां से सहाराश्री को तिहाड़ का रास्ता दिखा दिया गया। सेबी के डंडे के बाद सहाराश्री को उनकी इमेज बचाने-बनाने वाले कई सम्मान भी मिले, वे सम्मान कितने प्रायोजित रहे होंगे या कितने सच्चे यह सब आप लोग स्वयं ढूँढिए समझिये।

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इस गड़बड़ घोटाले की लगभग बीस फीसदी रकम जो सेबी के डंडे के चलते जमा करनी पड़ गई, उस रकम से अब छोटे निवेशकों के घावों पर कितना मलहम लग पाएगा यह तो वक्त के साथ ही पता चलेगा। अगस्त 2023 तक तो निवेशकों के एक सौ अड़तीस करोड़ ही वापस किये जा सके थे।

सबक यही है कि सफलता के पीछे लंबी छलांग लगाने वाले ध्यान रखें कि सफलता महत्वपूर्ण है मगर “किसी भी कीमत” वाली सफलता के पीछे न भागें, देश के नियम कानून और नैतिकता के तकाजे से बाहर न जाएं और आम जनता मार्केट से ज्यादा रिटर्न या मार्केट से ज्यादा ब्याज के लालच में न पड़ें और unregulated जगह तो निवेश बिल्कुल न करें।

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जब मैं पच्चीस साल पहले लोगों से कहता था कि सहारा का बिजनेस मॉडल यह बता देता है कि निवेशकों को वहाँ पैसा नहीं जमा करना चाहिए तब लगभग सभी लोग मुझे नादान समझते थे। उनमें से कुछ आज भी मिल जाते हैं जिनका पैसा फंस गया या कहें कि डूब गया।

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