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सुख-दुख

सहाराश्री का जाना-4 : गोरखपुर परिक्षेत्र में रहने वाले सुब्रत रॉय के दो दर्जन से ज्यादा मित्रों को हर महीने की पहली तारीख को लिफाफा पहुँच जाता था!

अनिल भास्कर-

जो भी सहाराश्री की ज़िंदगी में आया, उनका होकर रह गया। यह कशिश इकतरफा नहीं थी। सहाराश्री भी उनके कुछ कम न हुए। बचपन से लेकर सहाराश्री बनने के सफर में जो जुड़ा, सहाराश्री ने उसके लिए दिल हमेशा खुला रखा। मुझे याद है वर्ष 2004 में राष्ट्रीय सहारा गोरखपुर के स्थानीय संपादक का पदभार ग्रहण करने दिल्ली से पहुंचा तो पता चला शहर सहाराश्री के मित्रों-शुभचिंतकों से पटा पड़ा है। लगा बड़ी मुश्किल होने वाली है। पता नहीं किसकी अपेक्षा का पहाड़ कितना ऊंचा हो।

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लेकिन धीरे-धीरे उन मित्रों से मुलाकात होती गई और संस्थान, खासकर सहाराश्री के प्रति उनके समर्पण को देख आशंकाएं टूटती चली गई। इस बीच जो पता चला वह बेहद चौंकाने वाला था। गोरखपुर परिक्षेत्र में रहने वाले सहाराश्री के दो दर्जन से ज्यादा मित्रों को हर महीने की पहली तारीख को एक खास रकम पहुंचाई जाती थी। यह रकम सहारा इंडिया के स्टाफ लिफाफे में रखकर खुद उनके घर देने जाते थे।

यह सिलसिला कब से चल रहा था, नहीं मालूम। कब तक चला या अब भी चल रहा है, यह भी नहीं मालूम। पर इतना जरूर मालूम पड़ गया था कि सहाराश्री अपने हर उस जानने वाले मित्रों की आर्थिक जरूरतों का खास खयाल रखते थे, जिन्होंने कभी उनके साथ गिल्ली-डंडे खेले थे, स्कूल में साथ पढ़ाई की थी, चाय की टपरी पर चौपाल सजाई थी या सिगरेट के कश खींचे थे। इनमें से ज्यादातर अब किसी तरह उपयोगी नहीं रह गए थे, लेकिन अपनापे का रंग वैसा ही चटख। सहाराश्री जब भी गोरखपुर आते, अपने पुराने दोस्तों से बेतकल्लुफ मिलते, उन्हें गले लगाते, उनका सुख-दुख बांटते, पुराने दिनों के किस्से-कहानियां सुनते-सुनाते और आंखों में नमी लिए विदा होते।

बाद के दिनों में जिनसे भी दोस्ती हुई, उन्हें सहाराश्री ने अपनी आंखों में बिठाया। अमिताभ बच्चन हों या कपिलदेव, राज बब्बर हों या सौरभ गांगुली, स्मृति ठाकरे हों या अन्नू मलिक, अमर सिंह हों या मुलायम सिंह यादव- सहाराश्री ने दोस्ती के मान की खातिर सारी हदें तोड़ी। राज बाबर जब लखनऊ से अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे, तब राज बब्बर की जीत के लिए वैधानिकता की सीमा का भी अतिक्रमण किया। कानूनी कार्रवाई झेली, मगर दोस्ती को कभी आंच नहीं आने दी।

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एक बार सहारा मीडिया की असेम्बली में एक पत्रकार साथी ने उनसे एबीसीएल मामले में फंसे अमिताभ बच्चन से दोस्ती निभाने को लेकर सवाल पूछ लिया। सहाराश्री थोड़ी देर चुप रहे। फिर जवाब दिया- फर्ज कीजिए, आपके भाई का किसी बाहर वाले से झगड़ा हो गया। आप क्या करेंगे? वहां पहुंचकर अपने भाई के पक्ष में खड़े होंगे? उनका साथ देंगे या सही-गलत का फैसला करने बैठ जाएंगे? अमिताभ जी हमारे घर के हैं। इस विशाल परिवार का हिस्सा हैं। अब आप ही बताइए, संकट में अपने परिवार के एक बड़े सदस्य के साथ खड़े रहना क्या गुनाह है?

कई बार कानून की नज़र में जो गलत होता, सहाराश्री उसे भी भावनात्मक रिश्तों के पैमाने पर देखते। अपनों की विषम परिस्थिति में सही-गलत का फैसला छोड़ उनके साथ खड़े होते, उनके लिए रक्षा कवच बनते। परिवारवाद को जीने का यह उनका अनूठा अंदाज था, जिसके लिए वह कई बार अनावश्यक रूप से मुश्किलों में भी घिरे, लेकिन कभी भावनात्मक रिश्तों का मुंह लटकने नहीं दिया। उनके ज्योतिषी थे गोरखपुर निवासी कृष्ण मुरारी मिश्रा।

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वर्ष 2005 में मिश्रा जी के बेटे की शादी तय हुई तो सैकड़ों एकड़ में फैले गोरखपुर के सहारा एस्टेट को दुल्हन की तरह सजाया गया। दिल्ली और मुम्बई से दिनभर विशेष विमानों में भर-भर कर जुटाए गए सितारों का मेला लगा। अनिल कपूर, राज बब्बर, सोनू निगम, मनीषा कोइराला, स्मृति ठाकरे और दीया मिर्जा समारोह में खास मेहमान बने। मिश्रा जी ऐसी शाही शादी का सपना तक अफोर्ड नहीं कर सकते थे। मगर सहाराश्री ने दक्षिणा में ऐसी शाम सजाई जो न सिर्फ मिश्रा परिवार, बल्कि पूरे गोरखपुर के लिए अविस्मरणीय बन गई।

क्रमशः

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