सहाराश्री का जाना-3 : सहारा टाइम मैगजीन का वो सब एडिटर खूब पीने के बाद सुब्रत रॉय तक पहुंचा और फिर…

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अनिल भास्कर-

व्यवसाय में भी भावनात्मकता का निवेश करने वाले सहाराश्री विरले कम्पनी मालिक थे, जो सबसे निचले पायदान पर सेवारत कर्मचारियों का खासतौर पर खयाल रखते थे। वह अक्सर कहते – न कोई भूमिका छोटी होती है और न ही कोई इंसान। कम्पनी में हर कोई अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार योगदान करता है। लिहाज़ा किसी का महत्व कम या ज्यादा नहीं होता। मानविकी की इतनी गहरी मीमांसा शायद ही किसी मानवशास्त्री ने की हो।

वह अपनी इस सोच-समझ का श्रेय अपने पिता सुधीर कुमार रॉय को देते हुए इम्प्लॉई असेंबली में एक वाकया सुनाते थे- “उन दिनों पिताजी गोरखपुर के पास एक शुगर फैक्टरी में ऊंचे ओहदे पर सेवारत थे। एक दिन धोबी कपड़े प्रेस कर घर लाया तो मैंने (तब कोई दस-बारह साल का रहा होऊंगा) प्रेस सही न होने पर धोबी को कुछ कड़े शब्द कह दिए।

पिताजी ने सुन लिया और मुझे डांटते हुए कहा कि तुमने धोबी के काम को छोटा समझते हुए उसे छोटा आदमी समझ लिया। इसलिए उसे ऐसे कड़े शब्दों से आहत किया। लेकिन क्या तुम उसके जैसा कपड़े प्रेस कर सकते हो? क्या तुम्हें पता है कि कौन सा कपड़ा प्रेस करते समय प्रेस का तापमान क्या होना चाहिए? तुम जानते हो कि प्रेस को गरम करने के लिए उसमें कितना कोयला भरा जाता है? नहीं न?

फिर तुमने यह कैसे तय कर लिया कि वह जो काम करता है वह छोटा है? आसान है? तुम्हें अपनी गलती के लिए माफी मांगनी चाहिए। मुझे पिताजी की बात समझ आ गई। मैं समझ गया कि दुनिया का कोई काम, कोई हुनर छोटा नहीं होता। लिहाज़ा उसे करने वाला भी छोटा नहीं हो सकता।”

सहाराश्री जब यह वाकया सुनाते तो मन में यही भाव आता था कि शायद अपनी बात में वजन लाने के लिए वह मनगढ़ंत किस्सा सुना रहे हैं। दरअसल तब हम सहाराश्री की अभिभूत करने वाली विराट जीवनशैली को देखते हुए सहसा उनके इस किस्से पर यकीन ही नहीं कर पाते थे। रुतबा ऐसा कि सहाराश्री कम्पनी में मालिक नहीं, किसी सल्तनत के बादशाह हों। वही अंदाज, वही औरा, वही बॉडी लैंग्वेज।

फिर वर्ष 2001 (हां, सम्भवतः यही साल रहा होगा) की होली आई। दिल्ली के औरंगजेब रोड स्थित कोठी में सहाराश्री ने होली मिलन का आयोजन रखा। हम सब उस भव्य आयोजन का हिस्सा बने। रंग, गुलाल के साथ छप्पनभोग। उम्दा स्कॉच व्हिस्की, वोदका, रम, जिन के साथ रेड और व्हाइट वाइन भी। सहाराश्री कोठी के पीछे चल रहे आयोजन में स्विमिंग पूल के किनारे सिंहासननुमा चौड़ी कुर्सी पर विराजमान थे। सभी उनसे बारी-बारी मिलते, उनका आशीर्वाद प्राप्त करते, फिर रंग-गुलाल और फिर खाने-पीने में जुट जाते।

इस बीच एक कर्मचारी (शायद सहारा टाइम मैगजीन में सब एडिटर था) सहाराश्री तक पहुंचा और चरण स्पर्श करते हुए वहीं ढेर हो गया। उसने खूब पी रखी थी। सहाराश्री समझ चुके थे। उसका सिर अपनी गोदी में रखकर थोड़ी देर हाथ फेरते रहे। पुचकारते रहे। फिर अपने ड्राइवर को बुलवाया। कहा, इसे घर छोड़कर आओ। साथ में एक सिक्योरिटी गार्ड भी ले जाओ, ताकि रास्ते में कोई परेशानी न हो। सब मेरे सामने घटित हुआ।

आंखें खुली रह गईं। याद आया वह धोबी वाला किस्सा। अब उस किस्से की सच्चाई पर रत्तीभर संदेह नहीं रह गया था। अचानक खुद को बौना महसूस करने लगा था। इतना बड़ा आदमी और इतना विनम्र? हम तो जरा सी उन्नति-उपलब्धि पर मचल उठते हैं। औकात से बाहर हो जाते हैं। यकीन मानिए, ज़िंदगी का एक बेहद अहम सबक हमने होली जैसे हुड़दंग वाले दिन सीखा।

क्रमशः

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Comments on “सहाराश्री का जाना-3 : सहारा टाइम मैगजीन का वो सब एडिटर खूब पीने के बाद सुब्रत रॉय तक पहुंचा और फिर…

  • Khuzema ali newriwala says:

    गरीब और कमजोर लोगों को सपना दिखाकर उनके खून पसीने की पूंजी को अपनी विलासिता पूर्ण जिंदगी जीने के ऊपर खर्च कर सहारा का ये कृत्य एक सोची समझी रन नीति थी क्यू की गरीब लोग अदालतों तक जा नहीं सकते इसी का फायदा उन्होंने देश की पोलिटिकल लीडरों के साथ उठाया. ऐसे व्यक्ति के प्रति किसी तरह का आदर और सम्मान सही नहीं है.

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  • Atul kumar jha says:

    बताये जो आदमी ऐसा बोला है वो दुनिया को बेबकुफ बना रहे है ये क्या तो निचले स्तर के कर्मचारीयो का ध्यान रखते थे बिलकुल झुठ. वो तो वाराणसी के कर्मचारीयो से पुछना.मै अधिक नही बोलुंगा.बिहारी होकर भी मै शिकायत करता हुंँ.

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  • Shankar Singh says:

    पहले गरीबों के पैसे वापस करना चाहिए था । उन जमा पैसे के लिए कितनो को क्या क्या परेशानिया हुई।

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  • प्रमोद कुमार खरवार says:

    मेरा खुद का ही 180000 रुपए डूब गए सहारा में जबकि मेरी औकात इस समय 18 रुपए की भी नहीं है पता नहीं वो मिलेगा भी या नहीं, यदि सुब्रत रॉय इतने बड़े धर्मात्मा थे तो हमारे खून -पसीने की कमाई के पैसे क्यों डुबा दिये ,

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  • Really he was hero . The money of the investor is not being released due to government policy. Sebi is responsible for every deposits. We can not blame to Sahara Shri . His story is inspirational all of us . How did he buildup a huge investment company? We should inspire through him and his sweet behaviour.

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