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सुख-दुख

शिकायत पुस्तिका का नाम सुनते ही ट्रेन के कैटरिंग स्टाफ में करंट सी फुर्ती का संचार हो गया

सरकारनामा : राम भरोसे प्रभुजी की रेल (2)

….गतान्क से आगे

रविवार की शाम घर पहुँचने के बाद सबसे पहले मैंने भोजन किया और फिर जूते खरीदे। मैं जिस काम से पटना गया था, सोमवार को उसे निपटाते-निपटाते शाम हो गई और वापसी की ट्रेन पकड़ने का वक़्त भी। उस काम के बारे में मैं अगली कड़ी में विस्तार से चर्चा करूँगा। खैर, ऑटो रिक्शा से राजेन्द्र नगर स्टेशन पहुंचा तो राजधानी एक्सप्रेस पहले से ही प्लेटफॉर्म संख्या 1 पर खड़ी थी। मैं अपने निर्धारित सीट पर आकर बैठ गया। तत्काल में टिकट लेने की वजह से मुझे करीब 2100 रूपए चुकाने पड़े थे। वैसे मैं अन्य किसी ट्रेन में भी टिकट ले सकता था, लेकिन पटना आते वक़्त जो फजीहत झेलनी पड़ी, उसे फिर से दोहराना नहीं चाहता था। विश्वास था कि राजधानी एक्सप्रेस बमुश्किल 1-2 घंटे लेट होगी, फिर भी मंगलवार सुबह 10 बजे तक दिल्ली स्थित आवास पहुँच जाऊंगा।

<p><span style="font-size: 18pt;">सरकारनामा : राम भरोसे प्रभुजी की रेल (2) </span> </p> <p><span style="font-size: 8pt;">....गतान्क से आगे</span> </p> <p>रविवार की शाम घर पहुँचने के बाद सबसे पहले मैंने भोजन किया और फिर जूते खरीदे। मैं जिस काम से पटना गया था, सोमवार को उसे निपटाते-निपटाते शाम हो गई और वापसी की ट्रेन पकड़ने का वक़्त भी। उस काम के बारे में मैं अगली कड़ी में विस्तार से चर्चा करूँगा। खैर, ऑटो रिक्शा से राजेन्द्र नगर स्टेशन पहुंचा तो राजधानी एक्सप्रेस पहले से ही प्लेटफॉर्म संख्या 1 पर खड़ी थी। मैं अपने निर्धारित सीट पर आकर बैठ गया। तत्काल में टिकट लेने की वजह से मुझे करीब 2100 रूपए चुकाने पड़े थे। वैसे मैं अन्य किसी ट्रेन में भी टिकट ले सकता था, लेकिन पटना आते वक़्त जो फजीहत झेलनी पड़ी, उसे फिर से दोहराना नहीं चाहता था। विश्वास था कि राजधानी एक्सप्रेस बमुश्किल 1-2 घंटे लेट होगी, फिर भी मंगलवार सुबह 10 बजे तक दिल्ली स्थित आवास पहुँच जाऊंगा।</p>

सरकारनामा : राम भरोसे प्रभुजी की रेल (2)

….गतान्क से आगे

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रविवार की शाम घर पहुँचने के बाद सबसे पहले मैंने भोजन किया और फिर जूते खरीदे। मैं जिस काम से पटना गया था, सोमवार को उसे निपटाते-निपटाते शाम हो गई और वापसी की ट्रेन पकड़ने का वक़्त भी। उस काम के बारे में मैं अगली कड़ी में विस्तार से चर्चा करूँगा। खैर, ऑटो रिक्शा से राजेन्द्र नगर स्टेशन पहुंचा तो राजधानी एक्सप्रेस पहले से ही प्लेटफॉर्म संख्या 1 पर खड़ी थी। मैं अपने निर्धारित सीट पर आकर बैठ गया। तत्काल में टिकट लेने की वजह से मुझे करीब 2100 रूपए चुकाने पड़े थे। वैसे मैं अन्य किसी ट्रेन में भी टिकट ले सकता था, लेकिन पटना आते वक़्त जो फजीहत झेलनी पड़ी, उसे फिर से दोहराना नहीं चाहता था। विश्वास था कि राजधानी एक्सप्रेस बमुश्किल 1-2 घंटे लेट होगी, फिर भी मंगलवार सुबह 10 बजे तक दिल्ली स्थित आवास पहुँच जाऊंगा।

ट्रेन न सिर्फ नियत समय पर राजेन्द्र नगर से चली, बल्कि मुगलसराय निर्धारित समय से 15 मिनट पहले पहुँच गई। तब तक ब्रेडस्टिक के साथ टमाटर सूप सर्व किया जा चुका था और रात्रि भोजन परोसने की तैयारी हो रही थी। मैं इंतज़ार करने लगा कि अब मेन्यू कार्ड उपलब्ध कराया जायेगा। लेकिन, यह क्या, एक कैटरिंग स्टाफ आया और सभी यात्रियों से आमिष और निरामिष भोजन का आदेश लेने लगा। मैंने भी अपनी पसंद बता दी। थोड़ी ही देर में भोजन आ गया। मैंने जब खाने की गुणवत्ता देखी, तो मुझे गुस्सा आ गया। खाने में आलू-गोभी की सब्ज़ी, बेहद घटिया गुणवत्ता की दाल, सूखे पराठे, दही और अचार परोसा गया था। सलाद का नामोनिशान नहीं था। मैंने जब कैटरिंग स्टाफ से पूछा, तो उसने कहा कि आज यही खाना बना है। मैंने जब पनीर की सब्ज़ी की मांग की, तो उसने कहा कि थोड़ी देर में लाकर देता हूँ।

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करीब एक घंटा बीत जाने पर भी जब पनीर की सब्ज़ी नहीं परोसी गई, तो मैं फिर से पूछने गया। अबकी बार उनका जवाब सुनकर मैं दंग रह गया। उसने कहा कि खाना सर्व करने से पहले ही बता दिया गया था कि आज मिक्स वेज सर्व किया जाएगा। अब हम पनीर की सब्ज़ी आपको नहीं दे सकते। मैंने जब बड़ी ही शालीनता से उसे कहा कि किसी ने मिक्स वेज के बारे में नहीं बताया, तो उसने कहा कि उसके लिए हम माफ़ी चाहते हैं, लेकिन आपको पनीर की सब्ज़ी उपलब्ध नहीं करा सकते। तब मैंने उससे शिकायत पुस्तिका की मांग कर डाली। शिकायत पुस्तिका का नाम सुनते ही उनमे करंट सी फुर्ती का संचार हो गया। एक कैटरिंग स्टाफ पैंट्री कार की तरफ भागा और दूसरे ने कहा कि आप अपनी सीट पर जाइए, हम अभी पनीर की सब्ज़ी लेकर आते हैं। करीब 10 मिनट बाद हमारे कूपे के सभी यात्रियों को पनीर की सब्ज़ी परोसी गई। मैंने रेल मंत्रालय को ट्वीट कर खाने की गुणवत्ता के बारे में सूचना दे दी।

हमलोग पनीर की सब्ज़ी और दही खाकर सो गए। सुबह करीब सात बजे जब नींद खुली, तो देखा कि ट्रेन अभी इटावा नहीं पहुंची थी। मैंने जब पड़ताल की तो पता चला कि ट्रेन चार घंटे विलम्ब से चल रही है। खैर करीब आठ बजे चाय आई। हमने जब नाश्ते के लिए तस्दीक की तो पैंट्री स्टाफ ने बताया कि 10 बजे तक नाश्ता परोसा जाएगा। करीब 10 बजे ब्रेड, बटर, सौस और नमकीन का एक पैकेट नाश्ते के तौर पर परोसा गया। तब तक शाम को मिला पानी का बोतल समाप्त हो चुका था और प्यास लगने लगी थी। मैंने पैंट्री स्टाफ से पानी की अतिरिक्त बोतल मांगी, तो उसने उसके लिए पैसों की मांग की।

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मैंने उससे कहा कि ट्रेन 4 घंटे देरी से चल रही है, तो पानी तो देना बनता है। इसपर उसने नियमों की दुहाई देनी शुरू कर दी। मैंने पैंट्री कार मैनेजर को बुलाने को कहा। थोड़ी ही देर में पैंट्री कार मैनेजर उत्तम कुमार हमारे पास आया और मेरी परेशानी के बारे में पूछा। जब मैंने पानी की बोतल देने को कहा, तो उसने बताया कि जब सफ़र 20 घंटे से ज़्यादा का होता है, तभी पानी की दूसरी बोतल दी जाती है। मैंने जब नियमावली दिखाने को कहा, तो उसने सहर्ष नियमों की फ़ाइल मेरी तरफ बढ़ा दी। उसमें अक्षरशः वही बात लिखी थी, जो उत्तम कुमार ने बताई थी। मैं आश्वस्त हो गया, लेकिन अब मुझे रेलवे डिपार्टमेंट पर गुस्सा आ रहा था। मैंने शिकायत पुस्तिका मांगी और उसपर लिखा-

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“चार घंटे विलम्ब से ट्रेन चलने के बावजूद मांगने पर भी पानी की बोतल नहीं दी गई। नियमों का हवाला दिया गया। चकित्सकीय सुझाव के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को एक दिन में 4-5 लीटर पानी पीना चाहिए। ऐसे में क्या रेलवे को 20 घंटे की बजाय 12 घंटे से अधिक की यात्रा पर पानी की दूसरी बोतल उपलब्ध नहीं कराना चाहिए। क्या रेलवे को ऐसे नियम, जिससे कि यात्रियों को परेशानी होती है, को बदल नहीं देना चाहिए?।”

पैंट्री कार मैनेजर ने दर्ज शिकायत की एक प्रति अपनी टिप्पणी अंकित कर मेरे सुपुर्द कर दी। मैं अपनी सीट पर आकर बैठ गया और दिल्ली आने का इंतजार करने लगा। करीब डेढ़ बजे, यानि 6 घंटे की देरी से राजधानी एक्सप्रेस दिल्ली पहुंची और मैं अपने घर की तरफ रवाना हुआ। इस घटना को बीते करीब दो हफ्ते हो चुके हैं, और मैं आज भी मेरे ट्वीट और मेरी शिकायत के जवाब का इंतज़ार कर रहा हूँ।

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…जारी…

लेखक चैतन्य चन्दन से संपर्क 9654764282 के जरिए किया जा सकता है.

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इसका पहला पार्ट पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :

सरकारनामा : राम भरोसे प्रभुजी की रेल (1)

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