Sushil Bahuguna : एक बार पूरा दर्द तो सुन लेते साहब… फ़रियादी से आपका क्या मुक़ाबला… परेशान लोगों की हाय क्यों लेते हो… जनता दरबार में तो वही आएगा जो न्याय के लिए दर-दर ठोकरें खा चुका हो. वो परेशान नहीं होगा, दर्द भरा नहीं होगा, गुस्से में नहीं होगा तो क्या होगा? इंसान ही तो है. क्या ये सब उसकी आवाज़, उसकी शिकायत, उसके हावभाव में नहीं झलकेगा?
इसी दर्द में एक कारोबारी आपके ही एक मंत्री के सामने ज़हर खाकर जान दे चुका है. उस मंत्री का रवैया भी आपके इस रवैये से बहुत अलग नहीं था. सीएम साहब आप ख़ुद सोचिए, जब अफ़सरों के लिए तरसते सरकारी दफ़्तरों में सुनवाई नहीं हुई तभी तो आपके दरबार में ये शिक्षिका आई होंगी. आप सौम्यता की प्रतिमूर्ति हैं. ऐसा मेरा व्यक्तिगत मानना है. लेकिन परेशान जनता के लिए आपके ये तेवर देखकर हैरान हूं. मैं इन शिक्षिका के द्वारा बाद में कही गई भली बुरी बातों का बिलकुल समर्थन नहीं करता लेकिन क्या जब वो अपनी बात कह ही रही थी उसे झिड़कना सही था?
जनता दरबार में तो ऐसे परेशान लोगों को सुनने की तैयारी के साथ आना ही चाहिए. आप भी अगर अफ़सरों की तरह उन्हें सुनेंगे तो ये कहां जाएंगे? वोट मांगते वक़्त जनता के साथ जो सौम्यता, जो निकटता हमारे नेताओं में झलकती है वो कुर्सी पर बैठते ही क्यों गायब हो जाती है? अपने पति को खो चुकी दो बच्चों की इस मां का दर्द एक बार पूरा तो सुन लिया होता.
आप भी जानते हैं कि इस राज्य में दुर्गम इलाकों में तैनात जिन लोगों की आवाज़ नहीं होती, पहुंच नहीं होती, वो वहीं के होकर रह जाते हैं, दुर्गम में उनका जीवन और विषम हो जाता है. पैसे और ताक़त वाले देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी, ऊधम सिंह नगर और यहां तक कि दिल्ली में भी अपना तबादला करा लेते हैं. अब इसका उदाहरण मत पूछिएगा. सीएम साहब इस महिला या फिर ऐसे किसी भी परेशान फ़रियादी के कंधों पर, सिर पर हाथ रखकर तो देखिए, वो दर्द से इतना भरा होता है कि रो देगा, आप भी पिघल जाएंगे, बह जाएंगे उसके आंसुओं में.
चालाक अफ़सरों की चौकड़ी से बाहर निकल कर देखिए, तिकड़मी नेताओं के कब्ज़े से निकल कर देखिए, ये जनता आपको गले लगा लेगी. लेकिन पहले आप इसके लिए तैयार तो हों. हाथ बढ़ाइए इससे पहले कि जनता आपका हाथ छिटक दे. ये आपके ही नहीं राज्य के भी दूरगामी हित में होगा. दर्द के बदले दर्द मत दीजिए. आपसे उम्मीद है इसलिए लिखा, उन सभी लोगों की तरफ़ से जिनकी आवाज़ आप तक नहीं पहुंच पाती. आगे आप जो ठीक समझें. ईश्वर आपका साथ दे.
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कुछ अन्य प्रतिक्रियाएं….
Jaishankar Gupta : वाह मुख्यमंत्री जी वाह! संघ की शाखा-पाठशालाओं से किस तरह के संस्कार ग्रहण किए हैं। आपकी पत्नी तो देहरादून में ही सरकारी नौकरी करती रहें लेकिन इस जैसी बेसहारा महिला को 25 वर्षों से दुर्गम इलाके में सरकारी बनवास! आपके दरबार में न्याय मांगने आई तो सस्पेंशन की धमकी और हिरासत में लेने के निर्देश! लोकतंत्र में माई बाप कही जानेवाली जनता से डरो रावत जी। सबका हिसाब बराबर कर देती है।
Satyendra PS : उत्तराखंड के संघी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आज एक महिला अध्यापिका को निलंबित कर उसे हिरासत में लेने के आदेश दिए हैं। उत्तरकाशी जिले के नौगांव प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत उत्तरा बहुगुणा पन्त मुख्यमंत्री के जनता दरबार मे पहुंची। उसने कहा कि वह 25 साल से दुर्गम क्षेत्र में सेवाएं दे रही है। उसके पति की मौत हो गई है और उसकी स्थिति ऐसी है कि न वह छोटे बच्चों को अनाथ छोड़ सकती है न नौकरी छोड़ सकती है।
मुख्यमंत्री ने पूछा कि नौकरी लेते वक्त क्या लिखकर दिया था? अध्यापिका ने गुस्से में बोल दिया कि जिंदगी भर बनवास में रहेंगे, ये लिखकर तो नहीं दिया था। इस पर मुख्यमंत्री भड़क गए और महिला को सस्पेंड कर उसे गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया।
पब्लिक ने बंदरो के हाथ अस्तुरा पकड़ा दिया है संघियों को सत्ता में लाकर। इनका व्यवहार सामान्य मनुष्य कहे जाने लायक नहीं हैं। मेरे तमाम परिचित हैं जो रिश्वत देकर इच्छित जगह ट्रांसफर कराए हुए हैं और पढ़ाने भी नहीं जाते। लेकिन इस महिला ने अपना एक जेन्यून केस मुख्यमंत्री के सामने रखा और उसे नौकरी गंवानी पड़ी।
Rajiv Nayan Bahuguna : उत्तराखण्ड के मुख्य मंत्री एवं एक महिला अध्यापिका के बीच हुई तू तू, मैं मैं के प्रकरण में महिला के बयान को नासमझी पूर्ण मानता हूं। महिला अध्यापिका ने कहा- सब चोर उचक्के हैं। इस पर cm भड़के। महिला को कहना चाहिए था, कि इस सरकार में एक को छोड़ बाक़ी सब चोर उचक्के हैं। तब कोई समस्या न आती, और उक्त विधवा टीचर का काम भी हो जाता।
हिन्दू मिथकों में मान्यता है कि जब कोई मनुष्य जन्म लेता है, तो अपने मरण का समय, स्थल और कारण भी साथ में तय कर लाता है। उत्तराखंड में बम्पर विक्ट्री हासिल कर सत्ता में आई भाजपा भी इसी तरह अपने उन्मूलन का कारण साथ लायी है, और वह कारण हैं राज्य के वर्तमान मुख्य मंत्री।
क्या कभी कोई ऐसा cm देखा है, जो किसी की कड़वी बात पर ख़बतुल हवास बन चीखने चिल्लाने लगे जाए, और उसके मुंह से गुस्से में झाग निकलने लगे? क्या ऐसे मुख्यमंत्री के साथ यह खतरा नहीं कि उनकी यह कमज़ोरी पकड़, विरोधी उन्हें जान बूझ कर खिजाएँ, और वह कोई बड़ी ऊंच नीच कर बैठे?
हमारे स्कूल के रास्ते मे एक बगीचा पड़ता था। उपवन स्वामी अत्यधिक गुस्सैल और चिड़चिड़ा था। चिड़ियों तक के पीछे पत्थर ले भागता। ऐसे में गांव के बदमाश लड़के उसे खिजाते- ओ नाना, बांदर, बांदर। नाना पत्थर लेकर छोकरों के पीछे मारने भागता, इतने में छोकरों की बी टीम भरपूर फल तोड़ कर झोले में भर लेती।
मुझे विधवा अध्यापिका से अधिक दया मुख्य मंत्री पर आ रही है। ईश्वर उन्हें शांति का वरदान दें।
Dhirendra Pundir : नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं, प्रभुता पाई जाहि मद नाहीं। त्रिवेन्द्र सिंह रावत जैसे राजनेता हमेशा आपको यकीन दिलाते है कि धर्मग्रंथों में लिखी हुई बातें मानवीय स्वभाव को गहराई से निरूपित करती है। प्रभुता का मद यानि सत्ता का मद किस तरह मदांध कर देता है वो आपको त्रिवेंद्र रावत के जनता दरबार से दिख गया होगा।
दरअसल उत्तराखंड हो या उत्तरप्रदेश वहां बीजेपी को जनता ने अपने प्यार से नवाजा लेकिन जनता को बजाय प्यार का प्रतिदान मिलने के सूद समेत ये सरकारें परेशानियां लौटा रही है।
उत्तराखंड में चुनी गई सरकार के मंत्रियों के नाम अगर बिना किसी पार्टी के लिख दिए जाएं तो आपको ये पता करना भारी हो जाएंगा कि ये भारतीय जनता पार्टी की सरकार है या फिर कांग्रेस की सरकार चल रही है। जिन दागियों के खिलाफ घंटाघर से लेकर उधमसिंह नगर तक पिटते भिड़ते रहे भाजपाई, बाद में उन्हीं दागियों के अपनी सरकार में मंत्री बनते देख मन मसोस कर रह गए। बचे खुचे जो बने वो त्रिवेन्द्र सिंह रावत टाइप निकल गए।
भ्रष्टाचार की कहानी लिखने की जरूरत नहीं है, उसके लिए बस आपको सरकारी दफ्तरों के एक दो दिन चक्कर काटने हैं और आपको पता चल जाएंगा कि बदलाव का वो नारा कितना थोथा था, और लोगों को क्या राहत मिली, इस पर आपके दिमाग का जाला साफ हो जाएगा.
Harish Rawat : क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को व्यवहार! लेकिन यदि बड़े ही छोटे हो जाएं, तो बहुत तकलीफ होती है। जनता दरबार में मुख्यमंत्री Trivendra Singh Rawat जी के सम्मुख एक छोटे कर्मचारी का व्यवहार भले ही संगत ना हो मगर मुख्यमंत्री को कुपित होकर उसे सस्पेंड करने व गिरफ्तार करने के आदेश नहीं देने चाहिए।
आखिर जनता दरबार भी तो मुख्यमंत्री ने ही बुलाया था और वही लोग जनता दरबार में आते हैं जिन्हें कुछ तकलीफ होती है। और यदि ये सत्य है कि वो 20 वर्ष से अति दुर्गम क्षेत्र में तैनात है और एक विधवा है, तो उनका गुस्सा तो समझ में आता है, मगर बड़ों को उन पर गुस्सा नहीं होना चाहिए। और यदि गुस्सा होना ही है तो उन अधिकारियों पर गुस्सा उतरना चाहिए जिन्होंने उस शिक्षिका के कठिनाई को मंत्री और मुख्यमंत्री के सामने नहीं रखा और उसको वांछित राहत नहीं दी।
सौजन्य : फेसबुक
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