पवन त्रिपाठी-
बाबा कई बार भाषा की सीमा लाँघ जाते हैं या हल्का बोल जाते हैं, यही एक कमी दीखती है उनमें; क्योंकि जिस तरह से एक लॉबी उनके पीछे प्रारम्भ से ही पड़ी है, उसके विरुद्ध मुखर होना मजबूरी बन जाती है; परन्तु कुछ बातें ऐसी भी हैं, जो निश्चित ही मील का पत्थर हैं।
1- हम सैकड़ों साल से स्वदेशी-स्वदेशी चिल्लाते रहे, लेकिन हमारे पास विकल्प नहीं या बेहद कम थे। (अच्छा खराब अलग विषय है, और इसकी जाँच हमने कभी भी विदेशी कम्पनियों का नहीं किया)। बाबा ने हमे धीरे-धीरे स्वदेशी उत्पादों की एक शृंखला दी है, विकल्प दिया है कि हम बिना हिचक स्वदेशी उत्पाद चुन सकें। स्वदेशी के गीत गाने वाले अनेक संगठन आज तक ऐसा नहीं कर पाए थे।
2-परम्परागत वैद्य दवाइयों को कूट पीस कर पुड़िया बना कर देते थे जिसमें क्या है किसी को कुछ पता नहीं होता था। साथ ही उनका ज्ञान सदैव सीमित लोगों तक पहुंचा और प्रायः वो अगली पीढ़ी तक अपना ज्ञान अग्रसारित नहीं कर सके। जबकि बाबा ने उसको आधुनिकीकरण और मशीनों के द्वारा टैबलेट का रूप दिया है, जिसकी उपलब्धता सहज और खाना आसान हुआ है।
3-आचार्य बालकृष्ण ने एक औषधीय वनस्पतियों का संकलन तैयार किया है जिसमे 6,000 से अधिक आयुर्वेदिक औषधियों का सचित्र विवरण उपलब्ध है। जो अपने आप मे एक बड़ा योगदान है।
4-गुरुकुल परम्परा को पुनरुज्जीवित करने और वेद सांख्य दर्शन के साथ साथ योग आयुर्वेद में निष्णात लाखों योगी तैयार करने का भागीरथ कार्य प्रारम्भ किया है को अपने आप मे अद्वितीय है। और इसे सोचा बहुतों ने लेकिन कर कोई नहीं पाया बड़े स्तर पर। इसका परिणाम आने वाले वर्षों में दिखेगा।
5-आयुर्वेद को आधुनिक चिकित्साशास्त्र के साथ खड़ा करने के लिए आधुनिक परीक्षण शाला बनाए, निसमे अहर्निश अनुसंधान कार्य चलते हैं, डेटा एकत्र किए जाते हैं और नवीन औषधियों के सूत्र खोजे जाते हैं।
6-आज एलोपैथी में जहाँ हम कम से कम 500-1000 तक फीस देकर डॉक्टर को दिखाते हैं वहीं पतञ्जलि ने लाखों डॉक्टर बिना शुल्क उपलब्ध कराए हैं जो पतञ्जलि से इतर भी दवाएँ लिखते हैं।
7-योग, आसान और प्राणायाम को सहज रूप में प्रस्तुत कर घर घर पहुँचाया ही नहीं वरन वैश्विक प्रसिद्धि भी बढ़ाया है, जिससे कोई अनभिज्ञ नहीं है।
8-स्वदेशी व्यापार का बड़ा मॉडल खड़ा कर के दिखा दिया है कि केवल मठों में दण्ड पेलने और दान के राशन से पेट भरने और चाँदी के सिंहासन पर बैठने भर से समाज का उत्थान नहीं होगा। समाज के बीच उतर कर राष्ट्रवाद, स्वास्थ्य और स्वदेशी की भावना लोगों में जगाने का बीड़ा स्वयं उठाने से देश समाज में परिवर्तन आएगा। और वो कर दिखाया है इसमें कोई संशय नहीं है।
9-बाबा रामदेव आज भी एक लँगोटी और भगवा वस्त्र में भूमि शयन करते हैं। उनके नैतिक जीवन की शुचिता पर कोई दाग नहीं है, जो कि धन और वैभव मिलते ही प्रायः बड़े बड़े तथाकथित सन्यासी भूल जाते हैं।
10-दिल्ली के मैदान से आधी रात सन्यासियों को पीट कर भगाए जाने के बाद बाबा का प्रण था कि जब तक काँग्रेस का नाश न कर लूँगा हरिद्वार नहीं लौटूँगा। और चाणक्य की भाँति वो प्रण पूरा करने के लिये पूरे देश मे लाखों किलोमीटर की यात्रा की, हजारों सभाएँ की और काँग्रेस को सत्ता से जाना पड़ा। ये बाबा की दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचायक है।
शेष मनुष्य कोई भी परिपूर्ण नहीं होता है। सभी में कुछ कमियाँ होती हैं परन्तु हमें आधा भरा गिलास देखना है और आशान्वित रहना ही श्रेयस्कर है। लड़ाई किसी पैथी या विधा से नहीं है। सब का अपना अपना महत्व है, परन्तु लॉबी बना कर किसी पैथी को जबरन हतोत्साहित करना या दबाना भी ठीक नहीं है जो कि IMA करना चाहती है। अभी बहुत कुछ देखना शेष है।