चुनाव में राजनीतिक दलों के खर्च की अधिकतम सीमा तय हो। सीएजी से ऑडिट हो, आरटीआई के दायरे में उसे लाया जाय- पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा…
विमल कुमार-
नई दिल्ली 18 अप्रैल । पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने चुनाव में राजनीतिक दलों के खर्चे पर अंकुश लगाने के लिए अधिकतम खर्च की एक सीमा तय करने और उन्हें आरटीआई के दायरे में लाने की मांग की है।
श्री लवासा ने आज यहां इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित अपने व्याख्यान में यह मांग की। प्रेस काउंसिल आफ इंडिया और आईईसी द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस कार्यक्रम में केंद्र सरकार में वित्त सचिव रह चुके श्री लवासा ने अपने व्याख्यान में चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर उठ रहे सवालों के मद्दे नजर चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के लिए गठित चयन समिति का विस्तार किये जाने और उसे अधिक स्वतंत्र बनाये जाने की वकालत की।
उन्होंने यहां तक कहा कि चयन समिति में सरकार ही नहीं बल्कि न्यायपालिका के भी किसी सदस्य को शामिल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि कई बार चुनाव आयोग के मामले को उच्चतम न्यायालय भी सुनता है इसलिए मुख्य न्यायधीश को उसमें शामिल किए जाने से हितों का टकराव हो सकता है।
श्री लवासा चुनाव आयोग की कार्यप्रणालियों पर लगातार सवाल उठाते रहे हैं।
गौरतलब है कि पिछले चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनाव आचार संहिता के कथित उल्लंघन के मामले में नोटिस ना जारी किए जाने पर अपनी असमहति दर्ज की थी जिसको लेकर काफी विवाद खड़ा हुआ था और उनकी आपत्ति भी रिकार्ड में दर्ज नहीं की गई। अंत में उन्होंने चुनाव आयोग से इस्तीफा देकर एशियाई विकास बैंक ज्वाइन कर लिया था।
उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त को एक रेफरी बताते हुए कहा कि टी एन शेषण जैसा मजबूत व्यक्ति भी कभी चुनाव आयुक्त हुआ करता था। इस का मतलब इस सिस्टम कोई व्यक्ति असरदार भूमिका निभा सकता है पर कोई नहीं निभाता। यह व्यक्ति पर निर्भर करता है। उन्होंने संकेत दिया कि अगर रेफरी मजबूत हो तो चुनाव आयोग की विश्वसनीयता जनता की नजरों में बरकरार रह सकती है।
श्री लवासा ने अपने व्याख्यान के प्रारंभ में कहा कि देश जब आजाद हुआ था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने घोषणा की थी कि 1950 में लोकसभा के चुनाव होंगे लेकिन देश के पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने कहा कि पहले मतदाता सूची को पूरी तरह ठीक कर लिया जाए उसके बाद ही चुनाव करना उचित होगा। इसके बाद प्रधानमंत्री ने मतदाता सूची पूरा होने के बाद दोबारा चुनाव की घोषणा की थी।
उनका इशारा इस बात की तरफ था कि कभी चुनाव आयुक्त इतना महत्वपूर्ण होता था कि प्रधानमंत्री को उसकी बात माननी पड़ती थी लेकिन आज स्थिति वैसी नहीं रह गई है।
उन्होंने अपने व्याख्यान के दौरान कई श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर दिए। उन्होंने कहा कि चुनाव में सबके लिए एक समान मैदान नहीं रह गया है क्योंकि राजनीतिक दलों के खर्च की अधिकतम सीमा तय नहीं की गई है। चुनाव आयोग ने पहले भी सिफारिश की थी लेकिन सरकार ने इस संबंध में कोई कानून नहीं बनाया जिसके कारण आज राजनीतिक दल बेतहाशा चुनाव में पैसे खर्च करते हैं। अभी केवल प्रत्याशियों के चुनाव खर्च की ही अधिकतम सीमा निर्धारित की गई है।
श्री लवासा ने राजनीतिक दलों के चुनाव में होने वाले खर्च की जांच सीएजी से करने की मांग की। अभी राजनीतिक दल के चुनावी खर्च की ऑडिट की जाती है और राजनीतिक दलों को हर साल अपना चुनाव खर्च का बयान आयोग के सामने पेश करना पड़ता है लेकिन सीएजी की जांच से अधिक पारदर्शिता आएगी। उन्होंने कहा कि एक समय था कि चुनाव आयोग के कार्यों की बड़ी तारीफ भी होती रही है लेकिन बाद में जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप चुनाव आयोग खरा नहीं उतरा।
उन्होंने भी वीवी पैट के मसले पर कहा कि 100% मतों का मिलान वीवीपैट से किया जाना चाहिए ताकि जनता को मतदान पर भरोसा हो सके। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग आदर्श चुनाव संहिता के मामले में स्वतः संज्ञान नहीं लेता क्योंकि अगर किसी मामले में उसने संज्ञान नहीं लिया तो उस पर भेदभाव का आरोप लगा सकता है, इसलिए चुनाव आयोग शिकायतों के आधार पर ही संज्ञान लेता है।
उन्होंने कहा कि किन शिकायतों के आधार पर क्या कार्रवाई हुई, इसे भी पारदर्शी बनाया जाना चाहिए और इसकी सारी जानकारी चुनाव आयोग की वेबसाइट पर दी जानी चाहिए ताकि जनता को पता चल सके कि किस मामले में चुनाव आयोग ने क्या कदम उठाया। उन्होंने चुनाव आयोग के तीनों सदस्यों को एक समान दर्जा दिए जाने की मांग की। उन्होंने चुनाव प्रक्रिया की लंबी अवधि को भी कम करने का सुझाव दिया।