आरक्षण प्रावधानों पर न्यायपालिका का रुख लचीला... आरक्षण प्रावधानों का राज्य सरकारें जिस तरह अपने राजनितिक फायदों के लिए इस्तेमाल कर रही हैं और न्यायपालिका का रुख जिस तरह से लचीला होता जा रहा है उसे देखते हुए निकट भविष्य में या तो आरक्षण पूरी तरह समाप्त हो जायेगा या 90 फीसद तक हो जायेगा। वैसे भी नरेंद्र मोदी सरकार ने नौकरशाही में निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की लेटरल एंट्री दी है उससे स्पष्ट है कि आरक्षण पिछले दरवाजे से खत्म करने का प्रयास शुरू हो चुका है। रेलवे से लेकरबीएसएनएल तक जिस प्रकार निजीकरण का प्रयास हो रहा है उसमें सबसे ज़्यादा नुकसान आरक्षण को होना तय है । इंदिरा साहनी मामले के बाद देश भर में आरक्षण की अधकतम सीमा 50 फीसद थी और जो राज्य सरकारें आंदोलनों के दबाव में इसकी सीमा बढ़ाने का प्रयास करती थीं उस पर उनके राज्य के हाईकोर्ट रोक लगा देते थे पर इस बीच कानून में संशोधन के बिना जिस तरह न्यायपालिका ने लचीला रुख अपना लिया है वह आश्चर्यजनक है।
ताजा मामला महाराष्ट्र का है जहां बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस रंजीत मोरे और भारती डांगरे की पीठ ने मराठा आरक्षण को संवैधानिक तौर पर वैध करार दिया है। यह मुद्दा राज्य में लंबे समय से विवाद और बहस का विषय रहा है। हालांकि हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 16 फीसदी रिजर्वेशन की बजाय इसे शिक्षा में 12 फीसदी और नौकरियों में 13 पर्सेंट तक करने को मंजूरी दी है।गौरतलब है कि महाराष्ट्र में जून 2014 में तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने मराठों को नौकरी और शिक्षा में 16 फीसद आरक्षण देने का अध्यादेश लागू कर दिया था।इसके बाद बीजेपी-शिव सेना गठबंधन सत्ता में आई जिसने इस अध्यादेश को कानून का रुप दे दिया।लेकिन नवंबर 2014 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण पर रोक लगा दी। इतना ही नहीं महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग और केन्द्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने यहां मराठों को पिछड़ा मानने से ही इनकार कर दिया था। इस मराठा आरक्षण के बाद महाराष्ट्र में कुल आरक्षण प्रभावी रूप से बढ़कर 52फीसद से 68 फीसद हो गया।
मराठा आरक्षण को मंजूरी देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि विशेष परिस्थितियों में 50 फीसदी कोटे की इस सीमा को पार किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि यदि विशेष परिस्थिति हो तो 50 फीसदी की सीमा को पार किया जा सकता है। हमें लगता है कि जस्टिस एम.बी गायकवाड़ आयोग ऐसा दिखाने में सफल रहा है।’ मराठा कोटे को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि बैकवर्ड क्लास कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में यह साबित किया है कि मराठा सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े हैं। इसके अलावा सरकारी नौकरियों में भी उनका प्रतिनिधित्व कम है।
इसी तरह वर्ष 2007 में राजस्थान में वसुंधरा सरकार ने विशेष पिछड़ा वर्ग का गठन किया था और गुर्जर समेत चार जातियों को अलग से पांच फीसदी आरक्षण दे दिया था।राजस्थान में पहले से 49 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा था और एसबीसी कोटे में पांच फीसदी आरक्षण देने से आरक्षण की सीमा 54 फीसदी हो गयी जिसकी वजह से वर्ष 2008 में राजस्थान हाईकोर्ट ने इसपर रोक लगा दी।
वर्ष 2010, 2011, 2012 में हरियाणा में जाट आंदोलन के बाद पिछले साल फरवरी में भी जाटों ने हिंसक आंदोलन किया जिसके बाद खट्टर सरकार ने जाट समेत छह जातियों को शैक्षणिक आधार पर 10 फीसद आरक्षण देने का कानून बनाया।साथ ही सरकारी नौकरियों में भी छह से लेकर दस प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की लेकिन पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने भी इस पर रोक लगा दी।हाईकोर्ट ने जाट आरक्षण कोटा का मामला हरियाणा पिछड़ा वर्ग आयोग को भेज दिया है।
दरअसल न्यायपालिका का आरक्षण को लेकर लचीलापन केंद्र सरकार द्वारा गरीब सवर्णों को दस फीसद आरक्षण देने के साथ ही दिखने लगा है। उच्चतम न्यायालय ने 10 फीसद आर्थिक आरक्षण पर कोई रोक नहीं लगायी और इस पर अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि इस संबंध में कोई अंतरिम आदेश जारी नहीं करेंगे. उन्होंने कहा कि हम इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजकर न्यायिक परीक्षण करने पर अगली तारीख को विचार करेंगे। ये तय करेंगे की इसे संविधान पीठ के पास भेजा जाए या नहीं। मोदी सरकार ने संसद में संविधान के 124वां संशोधन करके सवर्णों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की है। इसके तहत सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है।
आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देने के मामले में केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि संशोधनों ने संविधान की मूल संरचना या उच्चतम न्यायालय के 1992 के फैसले का उल्लंघन नहीं किया है। इंदिरा साहनी मामले मेंदिए गए निर्णय के आधार पर आरक्षण पर पचास प्रतिशत की सीमा केवल अनुच्छेद 15 (4), 15 (5) और 16 (4) के तहत किए गए आरक्षण पर लागू होता है और अनुच्छेद 15 (6) पर लागू नहीं होता है। सरकार ने कहा कि यह कदम आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आयोग की सिफारिशों के बाद किया गया था। इसके अध्यक्षता मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) एस.आर. सिन्हा थे। संविधान के 103 वां संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर किया है।
मराठा आरक्षण के इस फैसले के बाद कई अन्य राज्यों में भी आरक्षण को लेकर एक बार फिर आंदोलन हो सकता है। राजस्थान सरकार एक बार फिर से गुर्जर कोटा की पहल कर सकती है और हरियाणा में इसी तरह जाट आरक्षण का मुद्दा फिर जिंदा हो सकता है।
कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.