असरार ख़ान-
भारत के सबसे निष्पक्ष और स्वतंत्र पत्रकारों को सबसे ज्यादा पैसा देने वाले अखबार के मालिक सुब्रत रॉय को सादर नमन …
सहारा इंडिया परिवार के संस्थापक सुब्रत रॉय अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उन्होंने इतने लोगों को रोजगार दिया और राष्ट्रीय सहारा जैसा निष्पक्ष अखबार प्रकाशित करके पत्रकारिता की एक नई मिसाल पैदा कर दिया जहां काम करने वालों को उचित सेलरी और स्वतंत्र पत्रकारों या लेख इत्यादि लिखने वालों को हिंदी जगत के सारे अखबारों से ज्यादा पैसा मिला …वे भ्रष्टाचार के मामले में कई साल तक जेल में भी रहे… एक अदना से लेकर जहाज़ से उड़ने वाले सभी उनसे जुड़े रहे …
1992 से 1993 के दरम्यान 1 साल तक मैंने राष्ट्रीय सहारा में स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर अखबार के कई अलग अलग विभागों में लिखा …
मैंने दिल्ली से छपने वाले तकरीबन सभी अखबारों में स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर भी काम किया लेकिन सबसे ज्यादा पैसा सहारा में मिला …
1992 में जब एक अखबार से मुख्य उपसंपादक / फीचर संपादक की नौकरी से इस्तीफा देकर बाहर निकला तो नए अखबार में ज्वाइनिंग से पहले ही झगड़ा हो गया इसलिए तत्काल नौकरी का विचार छोड़कर स्वत्रंत पत्रकार बन गया …
तब हमारी सेलरी 32 सौ के आसपास थी लेकिन सहारा में मेरी पत्नी ने भी उर्दू साहित्य एवं कला व विश्व इतिहास पर लिखा तो सब मिलाकर मैं उस जमाने में 1 माह के अंदर 10 हजार रुपए कमाया जो एक रिकॉर्ड था ..खैर इतना पैसा इसलिए मिलता रहा क्योंकि सहारा में छपने वाली आर्टिकल को जनसत्ता और नवभारत टाइम्स हिंदुस्तान दिनमान इत्यादि से बहुत ज्यादा पैसा मिलता था …