सचमुच मीडिया से माननीयों का रिश्ता भी बड़ा अजीब है। मीडिया को ले हमारे माननीयों का रवैया न निगलते बने, न उगलते वाली है। सुबह किसी सेमिनार में प्रेस की स्वतंत्रता पर लंबा व्याख्यान दिया और शाम को उस मीडिया पर बरसने लगे। कभी फटकार तो कभी पुचकार।
क्या आपकी नजर में ऐसा कोई सप्ताह बीता है, जिस दौरान किसी बड़े आदमी ने मीडिया को गालियां न दी हों या यह न कहा हो कि मेरा आशय यह नहीं था। मेरी बातों का गलत मतलब निकाला गया अथवा तथ्यों को तोड़ – मरोड़ कर पेश किया गया। कुछ दिनों की चिल्ल पों और फिर सब कुछ सामान्य गति से चलने लगता है।
दरअसल प्रेस – पुलिस औऱ पॉलिटिक्स का क्षेत्र ही ऐसा है कि यहां आप चाहे जितना जुते रहें , लेकिन आपके हिस्से आएंगी तो सिर्फ गालियां ही। इनके बिना किसी का काम भी नहीं चलता लेकिन गरियाने से भी लोग नहीं चूकते। पहले जो चाहे कह डालो और जब बवाल मचने लगे तो सारा ठीकरा मीडिया के सिर फोड़ कर अपनी राह निकल लो। हस्ती फिल्म जगत की हो या राजनीति अथवा खेल की दुनिया की। सभी पहले प्रेस की पालकी पर सवार होकर सफर पर निकलेंगे और फिर मंजिल पर पहुंच कर उसी को कोसेंगे।
मेरे एक मित्र की बड़ी खासियत यह थी कि शाम ढलने के बाद वे दूसरी दुनिया में चले जाते थे औऱ दूसरी खासियत यह कि जिस किसी के प्रति उनके मन में रंज होता, उसे पहले भरी सभा में बेइज्जत कर बैठते लेकिन अपमान की आग में जलता हुआ भुक्तभोगी बेचारा सुबह नींद से जाग भी नहीं पाता था कि वही महानुभाव सामने खींसे निपोरते हुए खड़े मिलते थे कि… भैया… रात की मेरी बात का बुरा नहीं मानना… दरअसल कल कुछ ज्यादा ही चढ़ गई थी… वर्ना मैं तो आपको बड़े भाई का दर्जा देता हूं … अब बेचारे भुक्तभोगी की हालत जबरा मारै पर रोवय न देवे वाली हो जाती ।
बचपन में मैने एक मोहल्ले के ऐसे दादा को देखा है जो किसी से नाराज होने पर पहले उसकी जम कर पिटाई कर पूरे मोहल्ले पर धौंस जमाता और फिर मामला कुछ ठंडा होने पर उसे किसी होटल में बैठा कर जम कर नाश्ता करवाता। अंधेरी दुनिया के एक माफिया डॉन की खासियत यह थी कि किसी से नाराज होने पर पहले वह उसे बुला कर सब के सामने बुरी तरह से डांटता। गंभीर परिणाम की चेतावनी भी दे डालता लेकिन मामला कुछ ठंडा पड़ने पर अकेले में उससे मिल कर यह जरूर कहता कि वह उसकी बातों का बुरा न माने। दरअसल, कई शिकायतें मिली थीं, जिसके चलते उस रोज वह उस पर बिगड़ बैठा लेकिन उसके दिल में कुछ नहीं है।
किसी भी तरह की जरूरत हो तो वह उससे बेखटके मिल या बोल सकता है। मीडिया का भी कुछ ऐसे ही भुक्तभोगियों जैसा हाल है। बेचारा जिसे सिर पर उठा कर ऊंचाई तक पहुंचाता है, उसी से गालियां खाता है। तिस पर गालियां देने वाले की तिकड़में उसे अलग परेशान करती हैं। प्रत्यक्ष बातचीत में प्रेस की स्वतंत्रता पर लंबा व्याख्यान लेकिन अलग परिस्थितियों में अलग ही रूप। समझ में नहीं आता कि जनाब किस तरफ हैं। यह हाल राजधानी से लेकर शहर – कस्बों तक में समान रूप से देखने में मिलता है। दायरा बढ़ने के चलते छोटे शहरों में भी आजकल माननीय मीडिया का इस्तेमाल करने के साथ उसे जब – तब गरियाते भी रहते हैं। बिल्कुल पल में तोला – पल में माशा वाली हालत है। कभी कलमकारों को गले लगाएंगे तो बदली परिस्थिति में उसे दुत्कारने से भी बाज नहीं आएंगे। लगता है, मीडिया को इसी तरह माननीयों व सेलिब्रिटियों की गालियां खाते हुए अपनी राह चलते रहना पड़ेगा।
तारकेश कुमार ओझा संपर्क : 09434453934