प्रतीक्षा पांडेय-
हालांकि इस बात को 30 की उम्र छूते ही स्वीकार लिया था कि अब देर रात तक जगा नहीं जाता, अधिक तेल-मसाले वाला खाना खाया नहीं जाता और नए दोस्त बनाने का जी नहीं करता. और बढ़ती उम्र की कुंठा छुपाते हुए इसी बात को अतिरिक्त गर्व से खुद से कम उम्र के लोगों से कहा भी गया. “हुंह, किड्स”, कई कम उम्र के लोगों से मैंने हिकारत से कहा.
फिर याद आता है कि पिछली जनरेशन के लोग जब हमसे कहा करते थे, “गाने तो हमारे समय में बना करते थे, आजकल तो बस शोर होता है”, तो हम किस तरह उन्हें ओल्डीज समझते हुए नकार देते थे. आज खुद से 10 साल छोटे लोगों के मुकाबले खुद से 10 साल बड़े लोगों से अधिक मेंटल कनेक्शन महसूस होता है.
कागज़ पर प्रमोशन लगना बड़ा सुखद लगता है. लेकिन फ्रेशर्स को हैंग आउट करते देखना और खुद को उस सर्कल और उनकी बातों से दूर पाना थोड़ा दर्द लेकर तो आता ही है. जब हमने नौकरी शुरू की थी तब जिस तरह सीनियर हमें देखते थे उस तरह आज हम जूनियर्स को देखा करते हैं और पाते हैं कि उन्हें देखने की नज़र में एक कुंठा है जो युवा कहलाने की हसरत से जुड़ी हुई है. 30+ इज नॉट यंग, आप चाहे खुद को कुछ भी समझा लें. ज़माने पर राज 21 साल का फ्रेशर ही कर रहा है. आपको भले ही दुनिया-जहान का ज्ञान हो लेकिन उसे सोशल मीडिया एल्गो आपसे कहीं बेहतर समझ आता है और यहीं हमारी हार हो जाती है.
उम्र एक बहुत बड़ा डिवाइडर है. जो धर्म, जाति और जेंडर के डिवाइडर जितना बड़ा और टॉक्सिक नहीं है लेकिन ज़रा त्रासद तो है ही. अपने फ्रेंड सर्कल के हमउम्र लोगों से बाहर निकल ज़रा खुद से यंग लोगों के बीच बैठो तो महसूस होता है कि आप एक अंग्रेज़ किस्म की कॉकटेल पार्टी में गलती से आ गए हिंदी पट्टी के भोले बसंत हैं. वे न हमारी तरह बात करते हैं, न हमारी तरह खाते हैं और न ही उनकी स्मृति हमारी तरह काम करती है. 10-10 साल के बच्चों को चॉपस्टिक से खटाखट खाते देखिए, आपको लगेगा कि आप पूरे जीवन ऑमलेट को कांटे-छुरी से खाना सीख न पाए और बच्चे के-ड्रामा देख-देख क्या-क्या सीख गए. मेरे जीवन का डर है कि मेरे भविष्य के ह्रदय में कोई भक्क से चली हुई चॉपस्टिक एक दिन तगड़ा घाव करेगी.
दिवाली के दिन जितनी देर हमारे बड़े ये कन्फर्म करने में बिता देते हैं कि पूजा का मुहूर्त कितने बजे से है, जितनी देर हम ‘पटाखे फोड़ना कितना सही और कितना गलत’ की डिबेट में उलझे रहते हैं, उतनी देर में जेन-ज़ी एथनिक ड्रेस में दीयों के साथ इन्स्टाग्रैम पर तीन रीलें अपलोड कर चुका होता है, तीन अलग अलग गानों के साथ.
इन्स्टाग्रैम, जिसे बाय द वे, सिर्फ ‘द ग्रैम’ पुकारा जाता है, उसपर ‘बेबी काम डाउन’ वाला गीत जब कुछ महीने पहले वायरल हुआ तो मैंने उसे एकाध कीवर्ड की मदद से यूट्यूब पर खोजा. जब उसे लिरिक्स के साथ देखा तो पाया कि पूरे गीत में वो वो वो वो वो नो नो नो नो लो लो लो लो के अलावा कुछ भी नहीं है और युवा पीढ़ी को भरसक जज किया. फिर लगा कि अपनी उम्र में लिंकिन पार्क का ‘इन दी एंड’ रैप पन्नों पर लिख लिखकर याद करने वाली हमारी पीढ़ी ने भी क्या ही उखाड़ लिया और ह्रदय को ‘लॉकडाउन’ में डाल देने वाले इस गाने की टैब को बंद कर दिया.
लेकिन जीवन की कितनी ही टैब आप बंद कर लेंगे. 10 साल के ब्रेक के बाद ऐसा लगता है कि फिर से सीखने का वक़्त आ चुका है. हे जेन-ज़ी, मुझे अपनी शरण में ले लो. मुझे चॉपस्टिक से नहीं मरना.