सुशांत झा-
मैं वीपी सिंह को हिंदुओं के सामाजिक-आर्थिक एकीकरण में एक बड़ा योगदान देने वाला मानता हूँ, डॉ आंबेडकर से थोड़ा ही कम। लोग वीपी सिंह के मंडल को बीजेपी के कमंडल की काट मानते हैं, जबकि मैं इससे उलट राय रखता हूँ। तात्कालिक रूप से दो-चार सालों के लिए जरूर बीजेपी का हिंदुत्व रथ इससे प्रभावित हुआ, लेकिन ऐसा महज कुछ सालों के लिए हुआ। मंडल आयोग ने हिंदुत्व और उसकी राजनीति को मजबूत किया, उसे स्पष्ट और ज्यादा समावेशी बनाया।
हो सकता है कि वीपी सिंह न होते तो भी मंडल रिपोर्ट पाँच दस साल बाद कोई लागू कर देता, हो सकता है कांग्रेस या बीजेपी ही ऐसा कर देती, लेकिन वीपी सिंह ने भले ही राजनीतिक मजबूरी में ऐसा किया हो, वो एक बड़ा कदम था। उन्होंने अपने किसी साक्षात्कार में कहा था कि मुझे मैदान में एक ही गोल दागने का अवसर मिला, लेकिन वो ऐतिहासिक था।
अगर वीपी सिंह न होते, तो हो सकता है नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री न होते! वीपी सिंह ने नेहरू परिवार के राजनीतिक पतन को तीव्र किया। वीपी सिंह ने पिछड़ी जातियों में राजपूतो की स्वीकार्यता को लगभग अमर कर दिया। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में योगी आदित्यनाथ का कई अन्य पहचानों के साथ राजपूत भी होना, महज संयोग नहीं है कि उनके नेतृत्व में भाजपा ऐतिहासिक रूप से दुबारा चुनकर आ गई!
सवर्ण जातियों में ब्राह्मण और कायस्थ(खासकर संख्या बल की वजह से ब्राह्मण) सरकारी तंत्र पर अपने वर्चस्व से वीपी सिंह से नाराज थे, और कई मायनों में अभी तक हैं। उसका एक कारण तो यूपी और उत्तर भारत की राजनीति में ब्राह्मण-राजपूत प्रतिद्वंदिता भी रही। लेकिन ब्राह्मणों के एक हिस्से को भी मंडल से फायदा हुआ। दीर्घकालिक सोच के हिसाब से देखें, तो मंडल ने जो समाजिक और आर्थिक कैमिस्ट्री में बदलाव किया, उससे गरीब ब्राह्मणों को भी कई स्तरों पर फायदा हुआ।
मंडल ने देश में निजीकरण और वैश्वीकरण की रफ्तार को तेज किया जिससे अर्थव्यवस्था को फायदा हुआ। उसका सबसे ज्यादा फायदा सवर्ण जातियों खासकर बनियों, ब्राह्मणों और कायस्थों को हुआ।
ऐसा नहीं है कि वीपी सिंह हमेशा से ऐसे थे। उनके मुख्यमंत्रित्व काल में जब चंबल से ठाकुर डकैत गिरोहों की जगह पिछड़ी जातियों के गिरोह पनपने लगे तो उन्होंने डाकू उन्मूलन अभियान छेड़ दिया था और मुलायम सिंह ने इसका विरोध किया था। मुलायम-वीपी का झगड़ा उसी दौर का है और बाद में मुलायम द्वारा आडवाणी की गिरफ्तारी को रोकने के लिए वीपी ने आडवाणी को लालू के हाथों गिरफ्तार करवा दिया। लेकिन ये तो राजनीतिक चतुराई है जिसकी उम्मीद किसी राजनेता से की जानी चाहिए।
उन्होंने मंडल की रिपोर्ट लागू करने की घोषणा कर ऐसा काम कर दिया जिसका परिणाम हजारों साल तक रहता है। जो काम बुद्ध-महावीर और नानक नहीं कर पाए, वह काम मंडल ने किया।
आज आईआईटी में, एम्स में, मेडिकल कॉलेजों में, मसूरी की एकेडमी में अगर हजारों पिछड़े युवा सवर्णों के साथ ट्रेनिंग ले रहे हैं, तो इसमें बड़ा रोल वीपी सिंह का है। वहाँ जो बेहिचक और स्वीकार्यता के साथ अंतरजातीय विवाह हो रहे हैं, उसमें भी थोड़ा रोल वीपी सिंह का है। इसका स्केल कितना बड़ा है, इसकी महज कल्पना की जा सकती है।
मैं इसीलिए, वीपी सिंह को हिंदू एकीकरण का एक नायक मानता हूँ। बीजेपी अगर खुद को हिंदू हित रक्षक पार्टी कहती है तो उसे वीपी सिंह और डॉ लोहिया दोनों को भारत रत्न देना चाहिए।