: किसी संदिग्ध व्यक्ति की गिरफ्तारी के तुरंत बाद मीडिया ब्रीफिंग पर लगनी चाहिए रोक : नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया अराजकता और मीडिया ट्रायल को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। मीडिया वालों की बेशरमी के कारण सुप्रीम कोर्ट ने लगाम लगाने की भी तैयारी की है। आपराधिक मामलों में आरोपियों की मीडिया ट्रायल की बढ़ती प्रवृत्ति को इन आरोपियों के अधिकारों में हस्तक्षेप एवं उनका अपमान करार देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इस बारे में एक मानक तय करने के संकेत दिए हैं।
मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढा, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन की खंडपीठ ने गैर सरकारी पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि यह बहुत ही गंभीर मामला है। वह ऐसे मामलों में सभी पक्षों के हितों और अधिकारों में संतुलन बनाने के लिए कुछ दिशा निर्देश भी जारी कर सकती है। न्यायमूर्ति लोढा ने कहा कि अभियोजन एजेंसियों को किसी संदिग्ध व्यक्ति की गिरफ्तारी के तुरंत बाद मीडिया ब्रीफिंग करने की प्रवृत्ति पर रोक भी लगानी चाहिए, क्योंकि ऐसा करना संदिग्ध व्यक्ति के प्रति दुराग्रह को बढ़ावा देना है।
न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा कि जांच अधिकारियों को जांच के दौरान मीडिया ब्रीफिंग नहीं करनी चाहिए। यह बहुत ही गम्भीर मसला है। यह मुद्दा संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त व्यक्ति के जीने और स्वतंत्रता की आजादी तथा निष्पक्ष सुनवाई के अधिकारों से सीधे जुड़ा है। न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि दंड विधान संहिता (सीआरपीसी) की धारा 161 और 164 के तहत र्दज आरोपी के बयान भी मीडिया को जारी कर दिये जाते हैं। इस अदालत में मुकदमा चलता है उधर समानान्तर मीडिया ट्रायल भी चलती रहती है। न्यायालय ने अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन को इस मामले में न्याय मित्र बनाते हुए उनसे आरोपियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए दूसरे देशों में अपनाए जाने वाले तौर तरीकों का विस्तृत उल्लेख करने को कहा है।