जयपुर की निम्स यूनिवर्सिटी छह महीने पहले अपना न्यूज चैनल न्यूज इंडिया, राजस्थान लेकर आई थी। अब सबके समझ में आ गया है कि उसके मीडिया के क्षेत्र में घुसने के पीछे मंशा क्या थी। चरागाह की बेशकीमती जमीन पर अतिक्रमण कर वह उसे हथियाना चाहती थी। मीडिया का प्रेशर बनाकर उसने जेडीए से इस जमीन को हथियाने का प्रस्ताव भी पास करवा लिया। लेकिन तभी यह मामला लोकायुक्त की नजर में आ गया और उन्होंने स्वतः संज्ञान लेकर जेडीए को कठघरे में खड़ा कर दिया।
यह खबर दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका में प्रमुखता से छपी तो निम्स यूनिवर्सिटी के मालिक घबरा गए। तुरत-फुरत में भास्कर को बड़ा विज्ञापन जारी किया तो बाकी मीडिया को भी मैनेज करने के लिए अपने गुर्गो को छोड़ा गया। लेकिन कभी किसी से दुआ-सलाम नहीं रखने वाले प्रबंधन के तब पसीने आ गए जब लोकायुक्त ने सारे मामले की पत्रावली तलब कर ली। इससे पहले भी एक महिला कर्मचारी के यौन उत्पीड़न के मामले में निम्स यूनिवर्सिटी के चैयरमेन फंस चुके हैं। आखिर मीडिया की रौब दिखाकर कब तक ऐसे लोग अपनी इज्ज़त और संपत्तियों को बचाने में सफल होते रहेंगे।
न्यूज इंडिया में अभी तक कर्मचारियों को ऊपर-ऊपर ही तनख्वाह दी जा रही है। जिसका कोई हिसाब-किताब नहीं है। ज्यादातर स्टाफ तो इसके चलते नौकरी छोड़कर जा चुका है और जो बचा है, वह भी दूसरी जगह तलाश रहा है। क्यों नहीं श्रम आयुक्त और आयकर आयुक्त को यह सब गड़बड़ दिखाई दे रही। क्या कोई शिकायत करेगा तब ही उनकी नींद टूटेगी?
भास्कर में छपी न्यूज
निम्स के कब्जे हटाए, अब उसी भूमि के आवंटन का प्रस्ताव क्यों
जयपुर. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (निम्स) यूनिवर्सिटी द्वारा चरागाह पर अतिक्रमण की गई जमीन उसी को आवंटित करने के जेडीए के प्रस्ताव पर लोकायुक्त एसएस कोठारी ने स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लिया है। उन्होंने जेडीसी से पूछा है कि किस आधार पर उन्होंने अतिक्रमण मुक्त कराई गई जमीन पर यूनिवर्सिटी के आवंटन आवेदन पर आवंटन का प्रस्ताव बनाया और इसे सरकार के पास मंजूरी के लिए भेज दिया।
लोकायुक्त को जानकारी मिली है कि निम्स विश्वविद्यालय ने जयपुर-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर चरागाह भूमि का अतिक्रमण कर चार हॉस्टल एवं एक खेल के मैदान का अवैध रूप से निर्माण कर लिया। यूनिवर्सिटी ने चरागाह के खसरा नं. 526, 533 एवं 547 की 41 हैक्टेयर भूमि का कथित रूप से अतिक्रमण कर लिया है। इस भूमि के आवंटन के लिए अनुशंसा भूमि एवं संपत्ति आवंटन समिति (एलपीसी) द्वारा की गई थी। यह भी बताया गया है कि इस विश्वविद्यालय का पंजीकरण राजस्थान पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के अंतर्गत है जबकि नगरीय विकास एवं आवासन नियम, 2011 के अनुसार पंजीकरण सोसाइटीज एक्ट में होना चाहिए।
राजस्थान उच्च न्यायालय की दो-सदस्यीय खंडपीठ ने नवंबर, 2012 में निम्स की अपील खारिज करते हुए निर्णय दिया था कि इस कॉलेज ने बेशकीमती चरागाह भूमि पर अतिक्रमण किया है। इस निर्णय में न्यायमूर्ति एम. रफीक ने 8125 वर्ग मीटर भूमि पर निर्माण को अवैध ठहराया था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि यदि अतिक्रमण के नियमितीकरण की अनुमति दी जाती है तो इससे एक गलत मिसाल बनेगी। यह भी बताया गया है कि उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद जेडीए ने हॉस्टल खाली करवा कर अतिक्रमित भूमि का कब्जा ले लिया था।
लोकायुक्त ने इस मामले में हाईकोर्ट द्वारा जारी आदेश की प्रति और यदि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिशा-निर्देश दिए गए हैं तो उनकी प्रति जेडीसी से सौंपने को कहा है। पूछा है कि क्या हाईकोर्ट के फैसले के बाद जेडीए ने इस अतिक्रमित भूमि का कब्जा ले लिया था और विवादित 8125 वर्गमीटर भूमि के मामले में वर्तमान में क्या स्थिति है। एलपीसी कमेटी की बैठक में किए गए विचार-विमर्श के एजेंडा नोट एवं भूमि आवंटन के यूडीएच नियमों की प्रति भी सौंपने को कहा गया है।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित।