सामाजिक कार्यकर्ता डॉ नूतन ठाकुर ने डॉ. शकुंतला मिश्रा विश्वविद्यालय, लखनऊ द्वारा सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को मानद उपाधि दिए जाने को हितों का टकराव बताते हुए उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को प्रत्यावेदन भेजा है.
डॉ ठाकुर ने अपने प्रत्यावेदन में कहा है कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना डॉ. शकुंतला मिश्रा पुनर्वास विश्वविद्यालय अधिनियम 2009 द्वारा की गयी थी. इस अधिनियम की धारा 9 में विश्वविद्यालय की साधारण सभा की स्थापना की गयी है जो विश्वविद्यालय की सर्वोच्च संस्था के रूप में कुलपति की नियुक्ति करती है. धारा 9(2) के अनुसार मुख्यमंत्री साधारण सभा के अध्यक्ष होते हैं.
डॉ ठाकुर के अनुसार चूँकि मुलायम सिंह को उसी विश्वविद्यालय द्वारा मानद उपाधि दी जा रही है जहां उनके पुत्र और प्रदेश के मुख्यमंत्री पदेन सर्वोच्च अधिकारी हैं, अतः यह हितों का टकराव होने के साथ प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के भी विपरीत है.
उन्होंने प्रदेश के राज्यपाल को विश्वविद्यालय के विजिटर के रूप में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए इस मानद उपाधि के सम्बन्ध में पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है.
सेवा में,
मा. राज्यपाल,
उत्तर प्रदेश,
राज भवन,
लखनऊ।
विषय- श्री मुलायम सिंह यादव, पूर्व रक्षा मंत्री, भारत सरकार तथा पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश को डॉ शकुंतला मिश्रा विश्वविद्यालय, लखनऊ द्वारा प्रदत्त मानद उपाधि विषयक
महोदय,
निवेदन है कि मैं डॉ. नूतन ठाकुर इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ बेंच में कार्यरत अधिवक्ता हूँ. मैं इसके साथ लोक जीवन में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के क्षेत्र में भी कार्य करती हूँ. विभिन्न समाचार पत्रों से यह बात सामने आई है कि आप द्वारा आज डॉ शकुंतला मिश्रा विश्वविद्यालय, लखनऊ के उपाधि-वितरण समारोह में अन्य लोगों के साथ श्री मुलायम सिंह यादव, पूर्व रक्षा मंत्री, भारत सरकार तथा पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश को मानद उपाधि प्रदान की जाएगी.
सादर निवेदन करुँगी कि प्रथम द्रष्टया यह हितों के टकराव (clash of interest) के बुनियादी प्रशासनिक सिद्धांत के विपरीत जान पड़ता है. साथ ही यह किसी व्यक्ति को अपने प्रकरण में निर्णयकर्ता नहीं होना चाहिए के प्राकृतिक न्याय के प्रथम सिद्धांत के स्पष्टत विरोध में भी दिखता है.
इसका कारण यह है कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना उत्तर प्रदेश शासन द्वारा डॉ. शकुंतला मिश्रा पुनर्वास विश्वविद्यालय अधिनियम 2009 के माध्यम से की गयी थी. इस अधिनियम की धारा 9 में विश्वविद्यालय की साधारण सभा (General Body) की स्थापना की गयी है जो विश्वविद्यालय की सर्वोच्च संस्था के रूप में कुलपति की नियुक्ति करता है. धारा 9(1) के अनुसार इस साधारण सभा के कतिपय पदेन और कुछ नामित सदस्य होते हैं. पदेन सदस्यों में अन्य लोगों के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं. धारा 9(2) के अनुसार मुख्यमंत्री इस साधारण सभा के अध्यक्ष और विश्वविद्यालय के कुलपति इसके सचिव होते हैं.
इस अधिनियम की धारा 11 साधारण सभा की शक्तियों को परिभाषित करती है जिसमे अन्य शक्तियों के अलावा विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति का अधिकार सहित अन्य सभी कार्यों के लिए विश्वविद्यालय के सर्वोच्च नीति-नियंता के अधिकार भी शामिल है. अधिनियम की धारा 8 के अनुसार साधारण सभा विश्वविद्यालय की सर्वोच्च संस्था है जिसके अधीन कार्यकारिणी सभा, अकादमिक सभा तथा अन्य समस्त संस्थाएं आती हैं.
मेरी जानकारी के अनुसार किसी भी व्यक्ति को मानद उपाधि विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी सभा द्वारा अकादमिक सभा से विचार-विमर्श के उपरांत दी जाती है, किन्तु यह बात द्रष्टव्य हो कि कार्यकारिणी सभा तथा अकादमिक सभा दोनों ही साधारण सभा के अधीन कार्य करते हैं. कार्यकारिणी सभा तथा अकादमिक सभा दोनों के अध्यक्ष कुलपति होते हैं. कुलपति की नियुक्ति साधारण सभा द्वारा की जाती है जिसके अध्यक्ष प्रदेश के मुख्यमंत्री होते हैं. इस रूप में हम पाते हैं कि कार्यकारिणी सभा तथा अकादमिक सभा पर प्रदेश के मुख्यमंत्री का स्पष्ट और सीधा नियंत्रण और अधिकार होता है.
श्री मुलायम सिंह यादव देश और प्रदेश के विभिन्न उच्चतर संवैधानिक पदों पर रहे, कई बार भारत सरकार के मंत्री रहे, कई बार प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री रहे, कई वर्षों से सामाजिक सेवा में अत्यंत सक्रियता, कुशलता और सफलता के साथ लगे हुए हैं. उनके सामाजिक, राजनैतिक, अकादमिक योग्यता और कुशलता पर मेरे स्तर से कोई भी टिप्पणी की ही नहीं जा सकती. उनका लम्बा राजनैतिक, सामाजिक और सार्वजनिक जीवन अनेकानेक उपलब्धियों से भरा पड़ा है किन्तु इसके साथ यह भी सत्य है कि मुलायम सिंह यादव वर्तमान मुख्यमंत्री के पिता हैं.
अतः यहाँ एक ऐसी स्थिति बन गयी है जिसमे श्री मुलायम सिंह को उस विश्वविद्यालय द्वारा मानद उपाधि देने का कार्य हो रहा है जिसकी सर्वोच्च संस्था के सर्वोच्च प्राधिकारी (साधारण सभा के अध्यक्ष) स्वयं मानद उपाधि पाने वाले व्यक्ति के पिता हैं. जाहिर है कि यह हितों के टकराव (clash of interest) के बुनियादी प्रशासनिक सिद्धांत के विपरीत है. साथ ही यह प्रदेश के मुख्यमंत्री के साधारण सभा के अध्यक्ष के रूप में कार्यकारिणी सभा और अकादमिक सभा के अध्यक्ष (अर्थात कुलपति) के नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी और नियंता होने के नाते एक ऐसी स्थिति में ले आते हैं जिसमे वे अपने निजी प्रकरण (अपने पिता को मानद उपाधि दिए जाने) के मामले में निर्णयकर्ता बन रहे हैं जो प्राकृतिक न्याय के प्रथम सिद्धांत के भी स्पष्टतया विरोध में है.
अतः उपरोक्त स्थितियों में आपसे निवेदन है कि कृपया विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 7 में विश्वविद्यालय के विजिटर के रूप में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए इस मानद उपाधि के सम्बन्ध में हितों के टकराव (clash of interest) के बुनियादी प्रशासनिक सिद्धांत, प्राकृतिक न्याय के प्रथम सिद्धांत तथा अन्य गुण-दोष को दृष्टिगत रखते हुए नियमानुसार पुनर्विचार करने की कृपा करें.
Lt No- NT/MSY/SMU
Dated- 30/09/2014
Regards,
(डॉ नूतन ठाकुर),
5/426, विराम खंड,
गोमतीनगर, लखनऊ
# 94155-34525
[email protected]