वाराणसी । लगातार शिक्षा का अधिकार यानि आरटीई एक्ट का उल्लंघन करने व गरीब बच्चों को शिक्षा से वंचित करने के षड्यंत्र के खिलाफ वाराणसी के बजरडीहा वार्ड के दो अभिभावक संजय सेठ व प्रेम सेठ की इलाहाबाद हाईकोर्ट मे संयुक्त याचिका दाखिल किया जिसकी अगली सुनवाई 28 मई को है।
इस बीच, बेसिक शिक्षा निदेशक विभाग लखनऊ ने स्कूलों की मैपिंग के लिए आदेश जारी कर दिया है। 28 मई से 5 जून तक नए स्कूल की मैपिंग का कार्य होगा। 6 जून से 20 जून तक ऑनलाइन आवेदन होगा। 21 से 24 जून तक आवेदन का सत्यापन होगा। 25 जून को लाटरी निकालने की प्रक्रिया अपनाई जाएगी। विभाग से जानकारी मिली है कि यह प्रक्रिया शहर के सभी वार्डों में होगी। बहरहाल आनलाईन प्रवेश प्रक्रिया आरंभ होने से गरीबों के बच्चों को निजी स्कूलों में पढऩे में लगी रोक हटने से गरीब बच्चों के अभिभावको को निश्चय ही इससे राहत मिलेगी।
गौरतलब हो कि शिवपुर निवासी जन अधिकार मंच के अध्यक्ष अनिल कुमार मौर्य ने 18 अप्रैल 2018 को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग नई दिल्ली को मेल के जरिए पत्र भेजकर शिकायत दर्ज कराई थी। पत्र में उन्होने आरोप लगाया था कि निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत निजी स्कूल में गरीब बच्चों हेतु आरक्षित 25 प्रतिशत सीट में घोटाला किया गया है। वाराणसी जिल में आरटीई एक्ट के तहत 26 फरवरी से ऑनलाइन आवेदन लेना शुरू किया जिसमें बड़े पैमाने पर अनियमितता की गयी है। प्रत्येक वार्ड में वास्तविक रूप से जितने स्कूल हैं उतने स्कूल का नाम वार्डवार वेबसाइट पर नहीं डाला गया है ताकि कम से कम बच्चों का निःशुल्क नामांकन हो। वार्डवार जिन स्कूल का नाम सम्बंधित वार्ड में होना चाहिये, उसके उलट दूसरे वार्ड में स्कूल का नाम डाल दिया गया।
किसी दूसरे वार्ड का रहने वाला व्यक्ति किसी दूसरे वार्ड में आवेदन करता है तो इस आधार पर उसका आवेदन जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा निरस्त कर दिया गया। RTE के तहत आस पड़ोस के एक किलो मीटर के दायरे में आने वाले किसी भी स्कूल का नाम विकल्प के रूप में चयन किया जा सकता है। इस प्रकार से संसद में पारित कानून में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने अपने से फेरबदल कर दिया। सड़क पार करने पर वार्ड बदल जाते हैं, इस प्रकार से इनकी यह मंशा है कि बच्चों का कम से कम नामांकन हो।
बेसिक शिक्षा अधिकारी के रिकॉर्ड के अनुसार वाराणसी के 26 वार्ड में कोई स्कूल नहीं है जबकि सच्चाई है कि वार्ड 26 में 4 स्कूल हैं और इनमें से 3 वार्ड के स्कूल में पिछले वर्ष आरटीई के तहत बच्चों का नामांकन हुआ था| वर्ष 2017 में जिन बच्चों का विभिन्न स्कूलों में आवंटन हुआ था उनमें से 21 स्कूल का इस वर्ष की सुरक्षित सीट से तुलना करने पर ज्ञात हुआ कि 331 सीट शिक्षा विभाग ने इन स्कूल को लाभ पहुँचाने के लिए कम कर दिए।
प्रथम व द्वितीय चरण की जो लाटरी निकाली गयी हैं उसमे पंजीकरण संख्या के अनुसार पहले पंजीकरण कराये लोगों का चयन न कर उसके बाद वाले का पंजीकरण संख्या का लाटरी में नाम आ गया है जबकि लाटरी निकाले जाने का जो मानक है उसके अनुसार या तो स्कूल का आवंटन होगा या निरस्त होगा। इस प्रकार से निजी स्कूल को लाभ पहुंचाने के लिए शिक्षा विभाग ने बहुत बड़े पैमाने पर धांधली की है।
बाल अधिकार संरक्षण आयोग इस मामले का संज्ञान लेते हुए वाराणसी के हजारों गरीब वंचित बच्चों की शिक्षा के लिए चिंतित है। यह बच्चे आरटीई के तहत प्राईवेट स्कूलों में पढ़ना चाहते हैं। इन स्कूलों में आरटीई के तहत आवेदन के बाद उन्हें प्राइवेट स्कूलों में दाखिले के दौरान परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। बाल आयोग में इस तरह की कई शिकायत, याचिका मिली है। इसमें कुछ अभिभावकों, सामाजिक संगठनों ने अपनी परेशानी साझा की है।
आयोग ने आरटीई के तहत होने वाले दाखिलों की सूची तलब की है ताकि व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की दिशा में पुख्ता काम किया जा सके। दाखिले का सच जानने के लिए आयोग ने वाराणसी जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्र को नोटिस जारी कर 20 दिनों के अंदर रिपोर्ट तलब किया है।
सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता ने बताया कि पब्लिक स्कूलों की मनमानी पर सरकार चाहे तो रोक लगा सकती है। संविधान के तहत सरकार को ऐसे मामलों में शासनादेश जारी करने का पूरा अधिकार है। श्री गुप्ता बताते हैं कि एनसीपीसीआर कानून की धारा 13, 14 और 15 के तहत राज्य बाल संरक्षण अधिकार आयोग को जांच करने, किसी भी अधिकारी को तलब करने, दस्तावेज मांगने, सबूत हासिल करने, किसी भी कार्यालय या अदालत से भी दस्तावेज मांगने का अधिकार है। आयोग बाल अधिकारों के उल्लंघन, बाल संरक्षण कानून लागू न करने की स्थिति में और बच्चों को राहत पहुंचाने के मकसद से एनसीपीसीआर कानून की धारा 13 (जे) के तहत स्वयं जांच कर सकता है।
रिपोर्ट- राज कुमार गुप्ता, वाराणसी
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