Piyush Babele : अभी अभी जानकारी मिली कि हमारे पुराने मित्र कौशलेंद्र प्रपन्ना का निधन हो गया है. कौशलेंद्र एक प्रतिष्ठित कंपनी में शिक्षा के कामकाज से जुड़े थे. पिछले दिनों उन्होंने दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था पर एक लेख लिखा था जो एक प्रतिष्ठित अखबार में छपा था. इस लेख के बाद उनकी कंपनी ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया.
सिर्फ निकाला ही नहीं बेइज्जत करके निकाला इस घटना से उनके जैसे संवेदनशील आदमी को हार्ट अटैक आ गया . वह पिछले कई दिन से एक अस्पताल में भर्ती थे. जब उन्हें लेख लिखने के कारण नौकरी से निकाले जाने की खबर एक प्रतिष्ठित वेब पोर्टल पर चलाई गई तो प्रतिष्ठित कंपनी ने अपनी ताकत लगाकर वह खबर हटवा दी और आज कौशलेंद्र दुनिया छोड़कर चले गये.
मुझे नहीं पता कि उनकी मृत्यु उन प्रतिष्ठित पत्रकार की हत्या की तरह मीडिया की सुर्खियां बन पाएगी या नहीं लेकिन मेरी नजर में कौशलेंद्र अभिव्यक्ति की आजादी के लिए शहीद हो गए हैं. हम एक भयानक वक्त में जी रहे हैं और जो इस वक्त को भयानक कहने की हिम्मत कर रहे हैं वे मर रहे हैं.
Priya Darshan : यह जानकर बिल्कुल स्तब्ध हूं कि मित्र कौशलेंद्र प्रपन्न को दिल का दौरा पड़ा है और वह जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे हैं। यह बात और स्तब्ध करती है कि उनको टेक महिंद्रा ने नौकरी से सिर्फ इस बात के लिए निकाल दिया कि उन्होंने एक लेख लिखा था जिसमें सरकार की शिक्षा नीति के बारे में कुछ आलोचनात्मक टिप्पणियां थीं। जबकि शिक्षा के प्रश्नों पर काम कर रहे कौशलेंद्र जैसे संजीदा लोग कम हैं। टेक महिंद्रा के लिए उन्होंने बहुत सारे अनूठे काम किए थे और उनकी परियोजनाओं से हिंदी के लेखकों को जोड़ा था। उनके क़रीबी लोग बता रहे हैं कि यह लेख लिखने पर उनको बहुत अपमानित किया गया था।
कौशलेंद्र और उनके बड़े भाई राघवेंद्र को मैं दो दशक से भी ज्यादा लंबे समय से जानता रहा हूं। ‘जनसत्ता’ में जिन दिनों मैं संपादकीय पृष्ठ देखा करता था उन दिनों बहुत सारे युवा छात्र-छात्राएं मेरे पास आया जाया करते थे। इनमें राघवेंद्र और कौशलेंद्र के अलावा नीलिमा चौहान और विजयेन्द्र भी थे जो अब मसीजीवी कहलाते हैं और ऋतुबाला भी जो बाद में राघवेंद्र की पत्नी बनीं।
इन सब से मोटे तौर पर मेरे संबंध बने रहें। लेकिन कौशलेंद्र से एक अलग तरह का नाता रहा। कौशलेंद्र अक्सर इतनी आत्मीयता के साथ मेरा लिखा हुआ पढ़ते रहे, अलग-अलग अवसरों पर मुझसे मिलते रहे कि मैं संकोच में पड़ जाता था। शिक्षा को लेकर वे बहुत गंभीरता से काम कर रहे थे। एक बार संभवतः कहानी पढ़ाने के ढंग को लेकर मैं भी उनकी किसी परियोजना में शामिल हुआ था।
लेकिन कौशलेंद्र के साथ जो कुछ हुआ, उसके बाद मैंने तय किया है टेक महिंद्रा के किसी आयोजन में मैं नहीं जाऊंगा। मुझे लगता है तमाम संवेदनशील और संजीदा लोगों को टेक महिंद्रा का बहिष्कार करना चाहिए।
फिलहाल कौशलेंद्र की सेहत सुधरने का इंतज़ार है। भरोसा करें कि इस दबाव के आगे वह घुटने नहीं टेकेंगे, फिर से खड़े होंगे और अपनी लड़ाई नए सिरे से लड़ेंगे।
पत्रकार पीयूष बबेले और प्रियदर्शन की फेसबुक वॉल से.
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