गिरीश मालवीय-
भारत के सबसे पुराने बैंकों में से एक लक्ष्मी विलास बैंक (LVB) को एक विदेशी बैंक DBS (‘डेवलपमेंट बैंक ऑफ़ सिंगापुर’) में विलय कर दिए जाने का मामला बेहद संगीन है !
अगर आपने स्कैम 1992 हर्षद मेहता देखी हो जो कि अब तक की सबसे बेहतरीन वेबसीरीज में से एक है तो आपने उसमे हर्षद मेहता के अलावा एक विदेशी बैंक ‘सिटी बैंक’ के द्वारा किये जा रहे घोटालों को भी देखा होगा. कहते हैं जो पकड़ा गया वो चोर ओर जो बच गया वो सयाना होता है, तो हर्षद मेहता तो पकड़ा गए लेकिन जो सिटी बैंक जैसी विदेशी संस्थाएं जो उस वक्त देश के स्टॉक मार्केट को लगातार अस्थिर कर रही थी वह सिर्फ चेतावनी देकर ओर कुछ प्रतिबंधात्मक आदेश लगा कर छोड़ दी गयी।
क्या आप जानते है कि पीयूष गुप्ता जो इस वक्त DBS बैंक के CEO हैं उन्होंने अपने करियर की शुरूआत वर्ष 1982 में सिटीबैंक के साथ ही की थी। 2009 में DBS के साथ जुड़ने से पहले पीयूष गुप्ता सिटी बैंक के दक्षिण पूर्व एशिया पैसेफिक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी थे।
लक्ष्मी विलास बैंक का मर्जर DBS में करने को लेकर स्वदेशी जागरण मंच के अश्विनी महाजन ने भी बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं अफ़सोस की बात यह है कि इस खबर को हिंदी मीडिया ने बिल्कुल तरजीह नहीं दी है. अपने 60 पन्नो के लेटर में अश्विनी महाजन ने RBI से पूछा हैं कि RBI की पॉलिसी में पारदर्शिता कहा है ? लक्ष्मी विलास जैसे बैंक को विदेशी बैंक में क्यों मिलाया जा रहा है?
क्या यह RBI और भारत सरकार की नई नीति है? यदि ऐसा है, तो इस पर बहस की जानी चाहिए और इसके निहितार्थ की राष्ट्रीय हित में पूरी तरह से जांच की जानी चाहिए!
डीबीएस द्वारा जो 2,500 करोड़ रुपये लक्ष्मी विलास में लगाने की बात की जा रही है वो पैसा डीबीएस इंडिया में आ रहा है, न कि परेशान लक्ष्मी विलास बैंक में।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि DBS को एक तरह से मुफ्त में लक्ष्मी विलास बैंक सौप दिया गया है दरअसल डीबीएस अधिग्रहण के लिए कोई कीमत नहीं चुका रहा है ओर इसके साथ ही इस विदेशी बैंक की पुहंच लक्ष्मी विलास में जमा भारतीय जमाकर्ताओं के 20,000 करोड़ रुपये पर भी हो गयी है।
आपने इसे एक तरह से फ्री में सौप दिया है क्या होगा अगर यह विदेशी बैंक डीबीएस लक्ष्मी विलास बैंक को भविष्य में किसी अन्य विदेशी संस्था या अन्य किसी वित्तिय संस्था को बेच दे?
आखिरकार LVB के मामले में RBI का आकलन का आधार क्या है?