लखनऊ 30 सितम्बर 2015। ग्रेटर नोयडा के दादरी में कथित तौर पर बीफ खाने के आरोप में दंगाई भीड़ द्वारा पचास वर्षीय मुस्लिम व्यक्ति की हत्या और कानपुर के महराजपुर इलाके के जाना गांव में एक मुस्लिम व्यक्ति को पाकिस्तानी आतंकी बताकर पीट-पीट कर मार डालने की घटना को रिहाई मंच ने सपा सरकार द्वारा मुसलमानों के जान माल की सुरक्षा करने में पूरी तरह नाकाम हो जाने का एक और उदाहरण बताया है। मंच ने आरोप लगाया है कि प्रदेश सरकार आगामी विधानसभा चुनावों के लिए हिंदुत्ववादी साम्प्रदायिक आतंकियों के साथ मिलकर सूबे में मुसलमानों के बड़े जनसंहार का माहौल बना रही है। संगठन ने हिंदी के वरिष्ठ कवि और पत्रकार विरेन डंगवाल को श्रद्धांजलि देते हुए कहा है कि फासीवाद और यथा स्थितिवाद के खिलाफ सशक्त कविताएं लिख कर ‘उजले दिनों‘ के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देने वाले कवि से जनआंदोलन हमेशा प्रेरणा हासिल करेंगे।
रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा है कि जिस तरह दादरी में मंदिर के माईक से यह ऐलान करके कि मुहल्ले का निवासी मुहम्मद एखलाक बीफ खाता है, उसके परिवार के ऊपर सौ से ज्यादा साम्प्रदायिक आतंकियों की भीड़ ने हमला किया और 50 वर्षीय एखलाक को ईंट-पथ्थरों से पीट-पीट कर मार डाला वह साफ करता है कि उन्हें अखिलेश सरकार में मुस्लिमों की हत्या करने की खुली छूट मिली हुई है। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव ने पिछले दिनों कहा था कि जिन जगहों पर भी दंगा होगा वहां के एसपी और डीएम के खिलाफ कार्रवाई होगी लेकिन अभी तक गौतम बुद्ध नगर के एसपी और डीएम न सिर्फ बने हुए हैं बल्कि हत्यारों को बचाने की पूरी कोशिश भी कर रहे हैं। जिसकी मिसाल मंदिर के पुजारी ‘बाबाजी‘ को पूछताछ के बाद छोड़ दिया जाना है। जबकि एसएसपी किरन एस ने खुद मीडिया में बयान दिया है कि उन्हें जांच में इस बात के सुबूत मिले हैं कि मंदिर के माईक से पीडि़त परिवार के खिलाफ हमले का आह्वान किया गया था। रिहाई मंच के अध्यक्ष ने पूछा कि जब खुद एसपी अपनी जांच में मंदिर के माईक से हमले के आह्वान की बात कह रहे हैं तो फिर मंदिर के पुजारी जो उसी मंदिर में चैबीसों घंटे रहते हैं को क्यों सिर्फ पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया। उसे हत्या और साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने का आरोपी क्यों नहीं बनाया गया। उन्होंने कहा कि जिस तरह मंदिर के माईक का इस्तेमाल मुसलमानों पर हमले के लिए किया गया ठीक वैसा ही मुजफ्फरनगर साम्प्रदायिक हिंसा के दौरान भी साम्प्रदायिक आतंकियों ने किया था। जो साबित करता है कि मुजफ्फरनगर के हत्यारों के खिलाफ सपा सरकार द्वारा सख्त कार्रवाई करने में नाकाम होने के कारण दंगाईयों के हौसले बुलंद हैं और वो जगह-जगह सरकार की मदद से मुजफ्फरनगर दोहराने की कोशिश में लगे हुए हैं।
रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने कानपुर के महाराजपुर इलाके के जाना गांव में एक बयालिस वर्षिय अज्ञात मुस्लिम व्यक्ति को चोर बता कर पीटने और इस दौरान उसके दर्द से कराहते हुए ‘अल्लाह-अल्लाह‘ कहने के बाद उसे भीड़ द्वारा पाकिस्तानी आतंकवादी घोषित कर पीट-पीट कर मार डालने की घटना को सरकार, राजनीतिक दलों, मीडिया और प्रशासन द्वारा पोषित और संचालित मुस्लिम फोबिया से मानसिक तौर पर बिमार हो चुके हिंदू समाज के बड़े हिस्से द्वारा किया गया घृणित अपराध बताया है। उन्होंने कहा कि साम्प्रदायिक राजनीति ने लोगों को हत्यारों में तब्दील कर दिया है जो ऐसी हत्याओं को राष्ट्रवाद का पर्याय मानते हैं और संघ परिवार का दबाव इतना ज्यादा है कि कोई भी तथाकथित सेक्यूलर दल इन घटनाओं की निंदा करके, घटनास्थल का दौरा करके अपने हिंदू वोट को नाराज नहीं करना चाहता। रिहाई मंच नेता ने कहा कि इस घृणित और अमानवीय घटना में भी पुलिस की भूमिका हत्यारों और अपने महमके के सिपाही को बचाने की ही रही है। इसीलिए जब हिंदू समुदाय के ही कुछ लोगों ने शेखपुरा पुलिस आउटपोस्ट को एक व्यक्ति की पिटाई की सूचना दी तो पुलिस न सिर्फ वहां नहीं गई बल्कि चैकी पर ताला भी लगा दिया और वहां से हट गई। उन्होंने कहा कि कानपुर के एसएसपी शलभ माथुर उस पुलिस कर्मी का पता लगाने के लिए जांच कराने की बात कर रहे हैं जिसे लोगों ने फोन किया था जबकि लोग उस कांसटेबल का नाम ‘पडित जी‘ बता रहे हैं। रिहाई मंच नेता ने कहा कि आखिर एसएसपी जिसे अब तक इस घटना में पुलिस की संदिग्घ भूमिका के कारण हटा दिया जाना चाहिए था, लोगों द्वारा बताए जा रहे शिनाख्त के आधार पर ‘पंडित जी‘ नाम के कांस्टेबल को क्यों नहीं गिरफ्तार करके पूछताछ कर रहे हैं, क्यों वो इस खुले मामले में भी आरोपी की जांच की बात कर रहे हैं। रिहाई मंच नेता ने कहा कि सपा राज में मुसलमानों के लिए उत्तर प्रदेश अब सुरक्षित जगह नहीं रह गई है। प्रदेश पुलिस जगमोहन यादव के नेतृत्व में सपा और भाजपा के मुस्लिम विरोधी गुप्त एजेंडे को लागू करने में लगी हुई है।
उन्होंने कहा कि मुस्लिम विरोधी हिंसा में गठित अनेकों जांच आयोगों और पुलिस महकमे द्वारा खुद भी इस बात को कई बार स्वीकार किया गया है कि पुलिस दंगों के दौरान हिंदुत्वावादी मानसिकता के तहत मुस्लिम विरोधी तत्वों को न केवल खुली छूट देती है बल्कि उसके साथ हिंसा में शामिल भी होती है। इसलिए आज यह जरूरी हो जाता है कि मुसलमानों को सुरक्षा प्रदान करने में फेल साबित हो चुका राज्य मशनरी उनको आत्म रक्षा के लिए हथियार मुहैया कराए और उनके खिलाफ भेद-भाव और हिंसा को रोकने के लिए दलित ऐक्ट की तरह माइनारिटी ऐक्ट बनाए। उन्होंने कहा कि अगर मुजफ्फरनगर में मुसलमानों के पास सरकारी असहले होते तो शायद साम्प्रदायिक हिंसा की घटना हुई ही नहीं होती क्योंकि तब वे हत्यारी समूहों जिनके पास लायसेंसी हथियारों का जखीरा था का मुकाबला कर सकने में सक्षम होते। इसी तरह हाशिमपुरा और मलियाना भी नहीं होता क्योंकि तब वे हत्यारे पीएसी के जवानों का मुकाबल कर सकते थे। उन्हांेने कहा कि समाज के कमजोर तबके को निहथ्ता मरने के लिए छोड़ कर कोई लोकतंत्र नहीं टिक सकता।
प्रेस विज्ञप्ति