इलाहाबाद. पंडित देवी दत्त शुक्ल एकमात्र ऐसे पत्रकार थे जिनकी जितनी पकड़ साहित्य में थी उतनी ही अध्यात्म में थी. उन्होंने दो दशक से भी अधिक समय तक सरस्वती पत्रिका का संपादन किया. उनके संपादन में इस पत्रिका ने देश की उस समय की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली पत्रिका होने का गौरव हासिल किया था. शुक्लजी पत्रकारिता ही नहीं, बल्कि अध्यात्म क्षेत्र में कई पुस्तकें लिखी जो शोधार्थियों के शोध का प्रमुख स्रोत हैं. उक्त विचार वरिष्ठ पत्रकार इंद्र कांत मिश्र ने शुक्ल जी की जयंती पर रविवार (एक मई) को अलोपीबाग स्थित चंडीधाम कार्यालय में आयोजित एक परिचर्चा में व्यक्त किये.
श्री मिश्र ने कहा कि आचार्य महाबीर प्रसाद दिवेदी के बाद संपादक पद पर रहकर शुक्ल जी ने साहित्यिक पत्रकारिता को सामाजिकता से जोड़ा और सामाजिक और नैतिक मूल्यों पर आधारित लेखों को वरीयता दी. उन्होंने अध्यात्मिक जगत में सबसे बड़ा कार्य यह किया कि अपने लेख और पुस्तकें प्रकाशित कर तंत्र विद्या का सरलीकरण किया. आमजन को तंत्र साधना का सरलमार्ग दिखाया. तंत्र अनुष्ठान और कर्म पर कई पुस्तकें लिखीं. पंडित शिव नाथ काटजू और शुक्ल जी ने मिलकर 1942 में अध्यात्मिक पत्रिका चंडी का प्रकाशन शुरू किया. आज भी यह पत्रिका तंत्र-मंत्र साधकों में सबसे ज्यादा पसंद की जाती है.
श्री मिश्र ने कहा कि शुक्ल जी ने पत्रकारिता में संपादक के 25 वर्ष नामक पुस्तक लिखकर इसमें अपना अनुभव विस्तार से बताया है. उनकी कुछ खरी खरी नामक पुस्तक तो आज भी खुद को महान घोषित करने वाले सम्पादकों के लिए सबक है. पुस्तक में उन्होंने समाचारों व लेखों में क्लिष्ट शब्दों का उपयोग न करने के लिए आगाह किया है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भारतीय जनता पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष नरेंद्र देव पांडेय ने कहा कि शुक्ल जी ने तंत्र विद्या के बारे में फैली तमाम भ्रांतियों और मिथकों को दूर करने का काम किया. पहले लोग तंत्र क्रिया को बेहद कठिन मानते थे लेकिन शुक्ल जी ने हिंदी में पुस्तकें प्रकाशित कर इसे सरल किया. कार्यक्रम को आचार्य प्रभाकर द्विवेदी ने सम्बोधित करते हुए कहा कि शुक्लजी और उनका दादा पंडित श्री कृष्णा द्विवेदी दोनों मित्र थे और अध्यात्म क़ी चर्चा करते थे. शुक्ल जी के पौत्र ऋतुशील शर्मा ने उनके बारे में कई संस्मरण समय. परिचर्चा के संयोजित व्रतशील शर्मा ने आभार व्यक्त किया.