रंगनाथ सिंह-
विभिन्न कॉलेजों में पत्रकारिता पाठ्यक्रम के नए बैच शुरू हो रहे हैं। मेरे पास प्रिंट का बहुत थोड़ा और टीवी मीडिया का शून्य अनुभव है। मेरे पास जो अनुभव है वह डिजिटल हिन्दी मीडिया का है। मेरी बात को मेरे अनुभव के दायरे में देखा जाए। वैसे आपको पता ही होगा कि आजकल मीडिया में निकलने वाली 100 में से कम से कम 80 नौकरियाँ डिजिटल मीडिया में निकल रही हैं। मैं यह भी कहना चाहूँगा कि चूँकि मेरा अनुभव दिल्ली की कथित नेशनल मीडिया का है तो मेरी बात को कथित नेशनल मीडिया के दायरे में ही देखा जाए। एनसीआर से बाहर स्थित मीडिया पर मेरी बात सटीक बैठ जाए तो इसे संयोग ही समझें।
हिन्दी पत्रकार बनने के लिए उतावले नौजवानों को यह जरूर ध्यान रखना चाहिए कि मीडिया में कामगारों की रिटायरमेंट की अघोषित उम्र 40 तय कर दी गयी है। इन कामगारों के एडिटर की अघोषित रिटायरमेंट उम्र करीब 50 वर्ष है। 50 से ऊपर मीडिया में वही टिका है हुआ है जिसका काम कम्पनी का लाभ-हानि मैनेज करना है। कहना न होगा, कुछ लोगों में हर हाल में टिके रहने की विलक्षण प्रतिभा होती है, ऐसे लोगों को आप अपवाद समझें।
ऐसा भी न समझें कि मीडिया सेक्टर में हमेशा ठीक 40 या 50 देखते ही गंड़ासा चला दिया जाता है। 40 या 50 कहने का आशय यह है कि हिन्दी डिजिटल मीडिया में आपको 50 साल का कामगार पत्रकार या 60 साल का विशुद्ध एडिटर शायद ही दिखे। कोई दिख रहा है तो उसके पीछे कुछ गैर-पेशेवर कारण होंगे।
मान लीजिए कि 140 करोड़ आबादी में हर साल एक लाख बच्चे मीडिया कोर्स करते हैं तो उनमें एक बच्चा ही शायद 50 पार तक नौकरी में रह पाए और शायद दो बच्चे 40 पार नौकरी में बचे रहे पाएँ। यही वजह है कि मैं नौजवानों से बार-बार कहता हूँ कि आपमें किसी भी तरह की जरा भी प्रतिभा है तो हिन्दी मीडिया को करियर न बनाएँ। अगर बना भी लेते हैं तो ऊपर दिए गए तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही नौकरी करें ताकि 40 के बाद कष्ट में न आएँ।