राकेश कायस्थ-
आज मन एकदम खाली है। छोटे भाई की तरह आत्मीय और सम्मानित सहकर्मी रहा वैभव वर्धन कैंसर से अपनी लड़ाई हार गया। कोविड के बाद से ही बुरी ख़बरों का एक चक्र सा चल रहा है। ना जाने कितने करीबी दोस्त एक-एक करके बिछड़ गये।
वैभव साल 2002 के आसपास आजतक आया था और देखते-देखते एक बेहतरीन लाइव प्रोड्यूसर बन गया था। शिफ्ट इंचार्ज उसके होने से इत्मीनान महसूस करते थे। धड़ाधड़ आती ख़बरों की आपाधापी और न्यूज़ रूम में मची खलबली के बीच वैभव हँसते हुए एंकर को कमांड देता था।
लंबे वाक्य बोलने के आदी और पीसीआर कमांड की अनदेखी करने के कुख्यात एंकर्स से भी बड़े प्यार से काम करवा लेता था। उसकी एक आदत थी। बात करते-करते एकदम करीब आ जाता था और कई बार आत्मीयता से गले लग जाता था। एक बहुत अलग किस्म की मासूमियत और सबके लिए एक जैसा निश्छल प्रेम था, उसमें।
वैभव के बीमार होने की ख़बर बाद से ही उसके साथ काम कर चुके ना जाने कितने लोग सक्रिय हो गये थे। कोई होम्योपैथी से लेकर यूनानी तक अलग-अलग पद्धतियों में उसके इलाज की संभावनाएं ढूढ रहा था, तो कोई हाल लेने के लिए बार-बार दिल्ली से चंड़ीगढ़ के चक्कर काट रहा था। नियति ने वैभव को हमसे छीन लिया लेकिन वो प्रेम और सम्मान कोई नहीं छीन सकता जो उसने अपने सहकर्मियों से हासिल किया था।
मुंबई के दो बम धमाके, संकट मोचन मंदिर का ब्लास्ट, 2004 का लोकसभा चुनाव, मुंबई की बाढ़, कितनी मौके याद करूं जब वैभव बिना रूके, बिना थके लाइव ऑपरेशन संभालता रहा। वैभव की विदाई का दर्द बहुत गहरा है, कहूँ तो क्या कहूँ।
ख़बरों की दुनिया के अनसंग हीरो को मेरा सलाम। तुम हमेशा साथियों के दिलों में धड़कते रहोगे।
अनुराग द्वारी-
कद बेहद लंबा फड़कती भुजाओं के साथ धड़धड़ाते बोलना, बात बात में गले लगा लेना ये सब वैभव भैय्या की आदत में शुमार था … कॉलेज में वाद विवाद प्रतियोगिता थी … सबने पहले ही डरा दिया कि वैभव के रहते मुश्किल होगी …
हमने भी हुंकार भरी कि छठी से ही ग्रैजुएट्स के साथ भिड़ रहा हूं … बस हमने भी धड़ाधड़ कर बात रखी और जीत गये … मुझे याद है शाम को सेवॉय कॉम्प्लेक्स के फ्लैट में उन्होंने गले लगाया और फिर हमेशा के लिये उनका हो गया …
दिल्ली में उनसे मुलाकात होती रही लेकिन फिर दिल्ली और मुंबई के फासले ने रिश्तों की डोर को थोड़ा लंबा कर दिया … फोन पर कभी कभार बात हुई, एक दफे मिला भी … चंद महीनों पहले कैंसर की खबर मिली आज उनके जाने की…
कई बार वो याद आए … माखनलाल कैंपस में, सात नंबर स्टॉप पर … भैय्या यूं नहीं जाना था …