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आज हेडलाइन होना चाहिये था …. चार सौ पार की ओर बढ़ती भाजपा, एक और ‘कैच’   

हेडलाइन मैनेजमेंट की क्रोनोलॉजी समझिये तो एक विपक्षी दल के बैंक खाते सील करके, दूसरी पार्टी के कई नेताओं को जेल में रखकर अपने बनाये चुनाव आयुक्तों की देख-रेख में सरकार 400 पार का दावा कर रही है, दक्षिण भारत में स्थिति कमजोर है तो वहां मंत्री ने विवादास्पद भाषण दिया

संजय कुमार सिंह

आज के अखबारों के लिए कल शाम तक कई खबरें हो गई थीं। इतनी कि सुबह मैंने यह कॉलम नहीं लिखा था तो लगा कि कल के लिए ज्यादा खबरें हो जायेंगी या बहुत कुछ छोड़ना पड़ेगा। इसलिए मैंने बाकी सब काम छोड़कर कल का कॉलम देर से ही सही, लिख दिया। आप जानते हैं कि भारतीय स्टेट बैंक ने इलेक्टोरल बांड से संबंधित जानकारी देने के लिए जून तक का समय मांगा था। सुप्रीम कोर्ट के दबाव में भारतीय स्टेट बैंक ने सारे आंकड़े कल दे दिये और अगर कल शाम अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी नहीं हुई होती तो बांड नंबर से खरीदने और भुनाने वालों का मिलान हो गया होता। आज यह एक महत्वपूर्ण खबर होती। इसमें मुद्दा न सिर्फ एसबीआई द्वारा जून तक का समय मांगना होता बल्कि सरकार द्वारा एसबीआई के उपयोग और उसपर दबाव की भी चर्चा होती। एक और बड़ी खबर कांग्रेस के बैंक खाते फ्रीज किये जाने और इसपर प्रेस कांफ्रेंस की थी। चुनाव से पहले प्रमुख विपक्षी दल का खाता फ्रीज किया जाना न सिर्फ अलोकतांत्रिक है बल्कि निष्पक्ष चुनाव के रास्ते में रोड़ा अटकाने जैसा भी है। मेरा मानना है कि कांग्रेस से जुर्माने का पैसा अभी ही वसूलना जरूरी और पूरी तरह जायज भी हो तो भी उसे (कायदे से किसी को भी) समय दिया जाना चाहिये। ऐसे नहीं तो समान्य ब्याज के साथ भी। पर जबरन वसूली के लिए चुनाव के समय खाता फ्रीज करना किसी भी तरह से अलोकतांत्रिक है।  

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वैसे भी, कांग्रेस पार्टी देश छोड़कर भाग नहीं जायेगी। जो देश छोड़कर भाग चुके हैं उनका मामला हम जानते हैं। ऐसे में चुनाव के समय देश के प्रमुख विपक्षी दल से जबरन वसूली सत्ता के दुरुपयोग का मामला नहीं है? इंदिरा गांधी के खिलाफ मामला और फैसला याद ही होगा। दूसरी तरफ, चंडीगढ़ मेयर चुनाव का मामला पुराना नहीं हुआ है कुल 36 वोट थे। आम आदमी पार्टी के आठ वोट अवैध घोषित करके भाजपा को विजयी घोषित कर दिये जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट के रुख और कई फैसलों से भाजपा की राजनीतिक छवि खराब और कमजोर होती जा रही थी। ऐसे में इलेक्टोरल बांड के मामले में एसबीआई पर सख्ती और सारी जानकारी कुछ ही दिन में निकलवा देने से जो हालात बने उसे संभालने के लिए भाजपा ने पीआईबी की फैक्ट चेकिंग यूनिट को अमली जामा पहना दिया। जल्दबाजी में यह क्यों किया गया होगा, आप समझ सकते हैं। इस मामले में बांबे हाईकोर्ट के फैसले के बाद तुरंत अधिसूचना जारी हो जाना और उसे उसी दिन रद्द कर दिया जाना खासा महत्वपूर्ण है।

यह सब तब जब सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन पहले चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के मामले में खिंचाई की थी और सीएए के मामले में भले स्टे नहीं किया है लेकिन उसपर अंतिम सुनवाई की तारीख आम चुनाव के पहले चरण के मतदान से पहले की है। कुल मिलाकर, स्थिति यह हो गई है कि सरकार (और उसके समर्थक) कोई काम करती है, जो करती है उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाती है और वह खारिज हो जाता है। नीचे की अदालतों में नहीं होता है और सुप्रीम कोर्ट को ही करना पड़ता है। यही नहीं, झारखंड के मुख्यमंत्री के मामले में सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ ने सुनवाई ही नहीं की और जब सरकार के खिलाफ कई खबरें थीं तो दूसरे मुख्यमंत्री को गिरफ्तार कर लिया गया। इन्होंने तो गिरफ्तारी से पहले इस्तीफा भी नहीं दिया। जाहिर है, यह हेडलाइन मैनेजमेंट है और दिल्ली के मुख्यमंत्री को फिर राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ रही है। कुल मिलाकर सरकार मनमानी करती दिख रही है और रोक सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में लग रही है या नहीं लग रही है तो सरकार सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का इंतजार नहीं करती, मौका मिलते अपना काम कर देती है। मैंने लिखा था कि सरकार बार-बार जोखिम लेती है और मुंह की खाई।

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इन खबरों के बीच तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि का भी एक दिलचस्प मामला है। अधिक संपत्ति मामले में मद्रास हाई कोर्ट ने डीएमके नेता और तमिलनाडु सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री डीएमके नेता के पोनमुडी को सजा दी थी। इससे पहले वेल्लोर की कोर्ट ने जून 2023 में मंत्री और उनकी पत्नी को बरी कर दिया था। हाईकोर्ट से सजा पाने के बाद पोनमुडी विधायक और मंत्री पद के अयोग्य हो गये थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी तो राज्य सरकार ने उन्हें फिर मंत्री बनाने का निर्णय किया। पर राज्यपाल ने उन्हें शपथ दिलाने से इनकार कर दिया। कल यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट में था और मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने इस मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए केंद्र सरकार से पूछा, “अगर राज्यपाल संविधान का पालन नहीं करते हैं, तो सरकार क्या करती है?” एक मामला चुनाव की घोषणा के बाद सरकारी विभाग द्वारा देश भर में तमाम लोगों को तथाकथित विकसित भारत से संबंधित प्रधानमंत्री का व्हाटसऐप्प संदेश भेजने पर चुनाव आयोग से शिकायत और उसपर आयोग की सख्ती का भी था। खबर थी कि चुनाव आयोग ने उसे रोकने के लिए कहा है। आप समझ सकते हैं कि चुनाव प्रचार पर इसका क्या प्रभाव हो सकता है। आज के अखबारों के लिए यह भी पहले पन्ने की प्रमुख खबर थी।

मेरे हिसाब से अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी का मतलब भाजपा द्वारा हार मान लेना है। अगर चुनाव से पहले गिरफ्तारी उनकी रणनीति नहीं है तो इस समय गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिये थी। मुझे यह रणनीति के तहत हाईकोर्ट से राहत नहीं मिलने पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले किया गया लगता है ताकि आज का हेडलाइन मैनेजमेंट तो हो ही जाये, सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल भी जाये तो हारने पर एक बचाव रहे। यह कहा जा जा सकेगा कि हमने भ्रष्टाटार के खिलाफ सख्ती की और जनता हमारे खिलाफ हो गई। इलेक्टोरल बांड से लगे दाग को हल्का करने की कोशिश है केजरीवाल की गिरफ्तारी। दूसरी ओर कहा जा सकेगा कि सुप्रीम कोर्ट ने हमारे प्रयास में साथ नहीं दिया। मुझे लगता है कि मकसद गिरफ्तारी कम हेडलाइन मैनेजमेंट ज्यादा है और यह भविष्य में भी काम आयेगा। चुनाव की घोषणा के बाद एक मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी अपने आप में बड़ी बात है और इतनी बड़ी बात है कि शायद ही कोई पूछे कि ईडी ने यह गिरफ्तारी प्रधानमंत्री के कहने निर्देश या अनु्मति से की है अथवा चुनाव आयोग से। या नियमों के तहत उसे किसी से पूछने की जरूरत नहीं है और वह किसी को भी गिरफ्तार कर सकता है। मुझे नहीं लगता कि ऐसा होगा। पर जवाब तो चाहिये ही। आइये इस पृष्ठभूमि में आज के अखबार देखें। 

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आज मेरे सभी अखबारों में लीड केजरीवाल की गिरफ्तारी ही है। द हिन्दू और द टेलीग्राफ अपवाद हैं। दोनों ने इलेक्टोरल बांड से भाजपा को सबसे ज्यादा चंदा मिलने की खबर को लीड बनाया है। इंडियन एक्सप्रेस में भी केजरीवाल की गिरफ्तारी ही लीड है पर इलेकोटर बांड पर एक से ज्यादा खबरें हैं। भाजपा की वसूली और इलेक्टोरल बांड की खबर पर आने से पहले बताऊं कि किसी भी अखबार ने केजरीवाल की गिरफ्तारी की खबर के शीर्षक में आखिरकार’ नहीं लगाया है। इसमें अमर उजाला अपवाद है। आखिरकार से गिरफ्तारी और उसके समय को जायज ठहराया जा रहा है जबकि निश्चित रूप से यह राजनीतिक कार्रवाई है और महत्वपूर्ण यह है कि चुनाव आयोग की सहमति से हुई है कि नहीं। अगर चुनाव आयोग की सहमति से हुई है तो आखिरकार का मतलब हो सकता है लेकिन चुनाव घोषित करने के बाद बगैर सहमति गिरफ्तारी होनी ही नहीं चाहिये और इसकी पुष्टि किये बिना आखिरकार का उपयोग अखबार (या शीर्षक लगाने वाले) की ओर से गिरफ्तारी को जायज ठहराने की कोशिश है। ऐसा लगता है जैसे वह इंतजार कर ही रहा था जबकि अभी तक किसी मुख्यमंत्री को गिरफ्तार नहीं किया गया है और चूंकि ठोस सबूत नहीं हैं, मामला साबित नहीं हुआ है।

इसलिए जांच आदि के लिए चुनाव के समय किसी मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी किसी भी तरह सही नहीं हो सकती है। यह आगे पीछे हो सकता है। खासकर तब जब सरकारी देनदारी वाले बहुत सारे लोग विदेश भाग चुके हैं। कांग्रेस का खाता फ्रीज किये जाने पर कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेंस की खबर आज हिन्दुस्तान टाइम्स, नवोदय टाइम्स में पहले पन्ने पर है। प्रेस कांफ्रेंस की खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर है और अमर उजाला में दूसरे पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में। टाइम्स ऑफ इंडिया ने मूल खबर के साथ आयकर विभाग की ओर से दी गई जानकारी को खबर के रूप में छापा है और बताया है कि पार्टी ने इसी महीने आयकर विभाग से कहा है कि (पिछले वित्त वर्ष के अंत में) उसके पास 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा का कॉर्पस और नकद (था) है। यहां यह बता दूं कि इलेक्टोरल बांड की खबर में अखबार ने शीर्षक और हाइलाइट किये अंश में बताया है कि भाजपा को नौ से ज्यादा कंपनियों से 100 करोड़ मिले और मेघा इंजीनियरिंग से सबसे ज्यादा मिले (यहा राशि नहीं है)।

द हिन्दू के अनुसार (लीड के शीर्षक में) यह 584 करोड़ है। इंडियन एक्सप्रेस ने शीर्षक में लिखा है कि भाजपा को सबसे ज्यादा पैसे मिले और 6000 करोड़ रुपए में 10 शिखर के दानदाताओं ने उसे 35 प्रतिशत दिये हैं। अमर उजाला ने इलेक्टोरल बांड की खबर ही नहीं छापी है और नवोदय टाइम्स तथा हिन्दुस्तान टाइम्स जैसे अखबारों ने यही बताया है कि एसबीआई ने जानकारी दे दी। कुल मिलाकर, इलेक्टोरल बांड के जरिये वसूली का मामला लगभग किसी अखबार में नहीं है और ना उसपर कोई स्पष्टीकरण है लेकिन भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा है, कांग्रेस का दिवालियापन नैतिक और बौद्धिक, वित्तीय नहीं है। यही नहीं, भाजपा अध्यक्ष ने यह भी कहा है कि कांग्रेस नेता ऐतिहासिक हार को देखते हुए भड़ास निकाल रहे हैं। नवोदय टाइम्स ने इस खबर को कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेंस के साथ छापा है जिसमें खाता बंद करने को आपराधिक कार्रवाई कहा गया था।

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चंदे के साथ केजरीवाल की गिरफ्तारी की खबर को सबसे अच्छे ढंग से द टेलीग्राफ ने छापा है। अखबार ने इलक्टोरल बांड की खबर को लीड बनाया है और इसकी तुलना मशहूर फिल्म मैक्केन्नाज गोल्ड से की है। इसका हीरो मैक्केन्ना खजाना तलाशता रहता है और उसी संदर्भ में अखबार ने सबसे ज्यादा बांड खरीदने वाले लाटरी किंग सैनटियागो मार्टिन का जिक्र किया है जिन्होंने खजाना लुटाया है। खबर है कि कृणमूल कांग्रेस को भी इसने 540 करोड़ दिये हैं। इसी से पार्टी भाजपा के बाद सबसे ज्यादा पैसे पाने वाली पार्टी बन गई। अखबार कोलकाता है इसलिए यह संदर्भ भी दिलचस्प है। केजरीवाल की गिरफ्तारी की खबर इसके साथ बराबर में है और यहां शीर्षक है, एजेंसियों के लंबे हाथों ने अब केजरीवाल को पकड़ लिया।

कैफे में विस्फोट

इंडियन एक्सप्रेस में आज एक और महत्वपूर्ण खबर है। इसमें बताया गया है कि कर्नाटक पुलिस ने कैसे बैंगलुरू के एक कैफे में बम रखने वाले की पहचान कर ली है और उसकी गिरफ्तारी के प्रयास में है। पुलवामा के बाद 2019 के चुनाव की हवा बदल गई थी। इस मामले में अभी तक कुछ खास विवरण नहीं आया है जबकि उस समय के राज्यपाल मान चुके हैं कि सरकार की लापारवाही से जवान शहीद हुए। दूसरी ओर शहीद जवानों के नाम पर वोट मांग गये और उन्हें पर्याप्त मुआवजा न मिलने की खबरें आती रहीं तो बहुतों ने कहा था कि 2024 के चुनाव से पहले दंगे होंगे (कराये जायेंगे)। इस पृष्ठभूमि में विस्फोट हुआ था और एक केंद्रीय मंत्री तथा भाजपा नेता शोभा करंदलाजे ने इस मामले में कहा था, ‘एक आदमी तमिलनाडु से आता है, वहां ट्रेनिंग लेता है और रामेश्‍वरम कैफे में बम रखता है।’ इसके लिए उनके खिलाफ एफआईआर हुई और उन्होंने माफी मांगी। आपके अखबार में कौन सी खबर है और कौन सी नहीं, देखिये-समझिये और अपने अखबार को जानिये।

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