योगेश मिश्रा, छत्तीसगढ़
भड़ास को नियमित तौर पर पढ़ने की आदत से अभी कुछ देर पहले ही जब भड़ास का पन्ना खोला, तो पत्रकारिता जगत में अपनी छाप छोड़ने वाले सौमित सिंह की ख़ुदकुशी की ख़बर ने सुन्न कर दिया. सौमित की मौत पर कुछ जाननेवालों का अनुभव भी पढ़ा. एक पत्रकार के द्वारा दुनिया को अवसाद से तंग आकर अलविदा कहने का यह कोई पहला मामला भी नहीं है, बल्कि भारत जैसे देश में, जिसमे अभी हालिया एक सर्वे में पता चला कि पत्रकारिता को दुनिया में सबसे खराब पेशा माना जाता है, वहां पत्रकारों पर हमला करना, उन्हें मारना, जलील करना, आम बात हो चुकी है. जगह का स्तर भले ही अलग अलग हो, पर देहात से लेकर दिल्ली तक पत्रकारों को नीचा दिखाने, उन्हें अपमानित करने, चापलूसी नहीं करने पर अवॉयड करने की घटना आम है. तंंगी तो कुशल और स्वाभिमानी पत्रकारों के साथ चलने वाली सतत प्रक्रिया हो गई है.
राष्ट्रीय स्तर के पत्रकार सौमित के दुखद निधन की ख़बर, सही मायनों में ख़बर से ज्यादा सबक है कि किस तरह स्टैंडर्ड कहे जाने वाले संस्थानों में कुशल पत्रकारों को नीचा करने का गंदा खेल खेला जाता है. किस तरह पत्रकारों को वहां बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है. अगर ऐसा नहीं होता तो बहुत से ख्यातिप्राप्त बैनर में काम कर चुके सौमित को चालीस बसंत के बाद भी हार नहीं मानना पड़ता! ये घटना फिलहाल लखनऊ के रहने वाले पत्रकार सौमित के मुंबई और दिल्ली में काम करने, वहां बसने के दौरान हुई है, पर सवाल बरसों से ज़िंदा होकर हमारे सामने बिना जवाब के खड़े ही हुए हैं.
कई बार जब मैं खुद किसी प्रेस कांफ्रेंस में किन्हीं गिने चुने पत्रकारों के साथ नेताओं, ब्यूरोक्रेट्स के खास व्यवहार, आवभगत को लेकर कई वरिष्ठजनों से “ख़ास” आवभगत के बारे में पूछता हूँ, तो जवाब देने वाला हर वरिष्ठ यही कहता है, कि ये चापलूसी करने के कारण मिलने वाला प्रसाद है, इसीलिए कइयों को खास तोहफा दिया जाता है, बहुत से पत्रकार ऐसे भी हैं, जिनके लिए स्वाभिमान ही बस उनकी पूंजी है, इसके अलावा उनके पास कुछ भी नहीं है, न मकान, ना गाड़ी, ना बड़ा बैनर, ना चकाचौंध, अगर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की ही बात करें, तो यहाँ बहुत से पत्रकार ऐसे हैं, जो सुबह पत्रकार का तमगा टाँगे अपने परिवार को टाटा बाय बाय कहकर घर से निकलते तो हैं, पर उन्हें ये भी डर रहता है कि शाम तक उनकी नौकरी रहेगी भी कि नहीं? और अगर रहेगी भी, तो रात को उनके घर का चूल्हा जलेगा कि नहीं!
रायपुर में ऐसे कई वरिष्ठ पत्रकारों की फौज है, जो पत्रकारिता को ही धर्म मानकर कई दशक से सेवायें दे रहे हैं, जिनके पास सिवाय स्वाभिमान के, अच्छी खबरों को लिखने के और कोई भी सम्पत्ति नहीं है, उनके पास खुदका अदना सा मकान नहीं है, साथ ही कई ऐसे भी पत्रकार हैं, जिन्हे प्राइवेट जॉब करने वाले से पत्रकार बनने में कुछ ही बरस हुए हैं, पर आज उनके पास चारपहिया, आलीशान मकान राजधानी की ज़मीन में तने हुए हैं, इसे बताना इसलिए भी ज़रूरी है क्यूंकि पत्रकारों की आर्थिक तंगी का सिलसिला हर जगह पसरा हुआ है, आज सौमित जी इस दुनिया से दूर चले गए हैं, हो सकता है आनेवाले दिनों में ऐसी घटनाएं फिर से हमें कुछ दिनों के लिए शोक सन्तिप्त कर दें, पर दुःख की बात यही है, सवाल यही है कि आखिर ऐसे दुखद सिलसिले कब तक चलते रहेंगे, कब तक पत्रकार कहलवाने कि आदत वाले हमारी बिरादरी के साथी तंगी के दौर से गुजरते रहेंगे, ये वक्त अब हाथ मलने के सिलसिले से आगे जाकर हाथ मिलाने तक ले जाना होगा, ताकि कलमवीर कमज़ोर न हों, कदम यूँ पीछे न करते रहें.
लेखक योगेश मिश्रा कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता व जनसंचार विवि रायपुर में एमफिल के नियमित छात्र हैं और न्यूज़ फ्लैश नामक सैटेलाइट चैनल में स्टेट हेड, छग के पद पर कार्यरत हैं. ईमेल- [email protected] मोबाईल- 8827103000, 9329905333