पंकज मिश्रा-
सीधा सा फण्डा है , एक अखबार की कॉस्ट 20 से 25 रु पड़ती है | इसमें पब्लिक 3 से 5 रु ही शेयर करती है | बाकी पैसा आता है सरकारी और प्राइवेट विज्ञापनों से ….. तो भइया खबर तो वही चलेगी जो सरकार चाहेगी या प्राइवेट कारपोरेट्स चाहेंगे |
एक मिसाल देता हूँ , अंदरखाने की यह खबर है कि पिछले साल उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के अखबारों को यह अलिखित निर्देश दिया गया था कि पहले पेज पर मुख्यमंत्री की कम से कम एक तस्वीर जरूर हो |
इस fact को आप खुद चेक कर सकते है , बस आपको अचार संहिता लगने के पहले किसी भी हिंदी दैनिक को randomly select कर के देख लेना है , दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा |
तो बन्धु , Narrative ऐसे बनता है …तस्वीरों को आपके जेहन में पैबस्त कर बाकियों को ओझल किया जाता है , खबरों की हेडिंग ध्रुवीकृत करने वाली , फेक खबर प्लांट होती है , विपक्ष की तिल का ताड बनाना , उनके अंतर्विरोध को हाइलाइट करना …. आखिर कितने लोग यह जान सके कि योगी सरकार के विरुद्ध उनके ही डेढ़ सौ विधायकों ने धरना दिया था , फ़र्ज़ कीजिये यह काम किसी विपक्षी सरकार में हुआ होता तो ….
मदारी डुगडुगी बजा रहा है और हम सब तमाशबीन बने तेलिया मसान की खोपड़ी के चमत्कार पर ताली बजा रहे है |