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सुख-दुख

काका इन दिनों ख़ुद का अख़बार निकालने पर पूरी गंभीरता से काम कर रहे थे!

यूसुफ़ किरमानी-

अलविदा काका… अमर उजाला में मेरे संपादक रहे पत्रकार रामेश्वर पांडे उर्फ़ काका नहीं रहे। आज सुबह लखनऊ में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।

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काका इन दिनों सत्य संगम अखबार के संपादक थे।

अभी पिछले महीने उनका वाट्सऐप मैसेज आया – लखनऊ कब आ रहे हो। आने पर ज़रूर मिलो।

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उनका स्नेह मुझे बराबर मिला। अतुल माहेश्वरी जी ने जब मेरा चयन अमर उजाला में किया तो उन्होंने सबसे पहले राजेश रापरिया सर और काका से परिचय कराया। हम लोग पंजाब प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे।

अमर उजाला के बाद काका जिन जिन संस्थानों में गए, मुझे अवसर देने के लिए बुलाते रहे। यही उनका स्नेह था। उन्हें परख थी। मैं जानता हूँ कि अमर उजाला में उन्होंने ढेरों पत्रकारों को संवारा। स्नेह दिया। अमर उजाला में काका और मुझे काम करने की ज़बरदस्त आज़ादी हासिल थी।

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काश, काका से आख़िरी मुलाक़ात हो पाती। यह तड़प रहेगी।

अलविदा काका। आप बहुत अच्छे इंसान और सबसे बड़ी बात सेकुलर थे। किसी तरह का भेदभाव नहीं करते थे।

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मौत का एक दिन तय है। सभी को आनी है। फिर भी कुछ मौतें एक ख़ला छोड़ जाती हैं।


यशवंत सिंह-

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रामेश्वर पांडेय जी को जानने समझने का मौक़ा अमर उजाला जालंधर की लांचिंग के दौरान मिला था। हम कुछ लोग पर्यवेक्षण के लिए भेजे गये थे। रामेश्वर पांडेय जी, राजीव सिंह जी, श्रीकान्त अस्थाना जी , विजय विनीत जी और मैं एक साथ रहते थे। पकाना ख़ाना साथ साथ। रामेश्वर पांडेय जी को सब लोग प्यार से काका कहते। उन्हें नज़दीक से जानने समझने का यहीं मौक़ा मिला था। हज़ार से ज्यादा लोगों को उन्होंने नौकरियाँ दीं। उन्हें ग़ुस्सा करते नहीं देखा। ग़ुस्सा करते भी तो दिखावटी। अगले ही पल मुस्कुराने हंसने लगते। उनमें कुछ ऐसा था जो लोगों को उनकी तरफ़ आकर्षित करता था। उन्होंने गरिमामय जीवन जिया। ताउम्र शालीन बने रहे। श्रद्धांजलि!


नवेद शिकोह-

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सुपर ब्रांड पत्रकार रामेश्वर पांडेय “काका” का निधन… यूपी के टॉप अखबारों में पत्रकार, संपादक और फिर संपादकों के भी हेड रहे रामेश्वर पांडेय “काका” का निधन हो गया। वो पिछले कुछ महीने से बीमार चल रहे थे। पीजीआई में उनका इलाज भी चला। लखनऊ की पत्रकारिता का देशभर में नाम रौशन करने वाले काका अमर उजाला और दैनिक जागरण और अन्य प्रमुख अखबारों में लम्बे समय तक संपादक रहे। यूपी के अलावा अन्य राज्यों में भी उनकी पोस्टिंग रही। रिटायर होने के बाद वो लखनऊ के वॉइस ऑफ लखनऊ में भी संपादक रहे। स्वास्थ्य ठीक ना होने के कारण कुछ माह पहले उन्होंने वॉइस ऑफ लखनऊ छोड़ दिया था।

काका ने भविष्य में अपना खुद का अखबार निकालने के लिए मेरी सलाह और मदद मांगी थी। हम लोगों ने इस सपने को साकार करने के लिए कई बार बैठकें की। “सत्य संगम” नाम का अखबार उन्होंने शुरू भी कर दिया। काका बहुत मन से इस अखबार के न्यूज कंटेंट, सम्पादकीय और लेआउट को बेहतर बनाने पर काम कर रहे थे। आगे इस अखबार को मार्केट में ले जाने की तैयारी चल रही थी। लेकिन भगवान को शायद ये मंज़ूर नहीं था कि जिसने अमर उजाला और दैनिक जागरण जैसे अखबारों को आगे बढ़ाया वो अपने ही अखबार को आगे नहीं बढ़ा पाए।
श्रद्धांजलि

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राघवेंद्र दुबे-

काका ( रामेश्वर पान्डेय ) नहीं रहे

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भाषाई पत्रकारिता के दिग्दर्शक व्यक्तित्व काका को विनम्र श्रद्धांजलि । सब कुछ जस का तस चलते रहने के ठीक बांएं खड़े , सतत संघर्षरत काका के बारे में ‘ नहीं रहे ‘ सुनना , यकीन नहीं होता । उनका और हम सब उनके मित्रों का तो ‘ जिंदगी की जीत में ‘ हमेशा यकीन रहा । हमारी हार कैसे हो गयी ।

काका से अपने गहन भावात्मक लगाव का तो इजहार कभी नहीं किया , उनसे लड़ना हमेशा अच्छा लगा । क्या शख्स थे वह , जिनसे शरारतन असहमत होना और लड़ना अच्छा लगता हो । अभी कई फैसलाकुन बहसें बाकी थीं । लगता है काका अब एक दूसरे को छीलती और आत्ममूल्यांकन वाली बहसों से बचना चाह रहे थे । उनमें इस साहस का क्रमिक क्षरण ही हो सकता है उनके देहावसान की वजह हो । काका का जाना सुनकर बहुत आघात लगा – बहसें और सामने मेज पर पैमाना दोनों छोड़कर निकल लेना ।

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तडि़त कुमार , कमलेश तिवारी , देवेन्द्र सिंह , विनय श्रीकर , इस गोरखपुरिया कड़ी के जयप्रकाश शाही तो 2 फरवरी 1998 को ही चले गये , आज काका भी नहीं रहे ।

तड़ित कुमार , विनय श्रीकर, स्व. जय प्रकाश शाही और स्व. रामेश्वर पांडेय सभी मार्क्सिस्ट ( वाम ) एक्टिविस्ट रहे । कवि और पत्रकार दोनों व्यक्तित्व इनमें लहरा कर पका । मार्क्सवादी बौद्धिक, कवि और वरिष्ठ पत्रकार रामेश्वर पांडेय काका को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि ।

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  • राघवेंद्र दुबे भाऊ
    मोबाइल 7355590280
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