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वर्धा विवि में फिर सत्ता पर काबिज हुए डॉ. अनिल राय

जनसंचार में संचार की वापसी करना बड़ी जिम्‍मेदारी…  वर्धा विश्‍वविद्यालय में लंबे समय से संचार एवं मीडिया अध्‍ययन केंद्र के निदेशक रहे डॉ. अनिल राय अंकित के कुर्सी से जाने और आने का खेल काफी रोचक रहा। जनसंचार विभाग को नई उंचाई तक ले जाने और जनसंचार विभाग में संचार के रक्‍तचाप को तीव्र करने के लिए कई दिग्गजों के नाम सामने आए लेकिन अंतत: कुलपति महोदय ने अपना भरोसा देश के कृपाशंकर चौबे पर जताया और उनके हाथों में हिंदी विवि के जनसंचार विभाग की कमान सौंप दी गई।

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जनसंचार में संचार की वापसी करना बड़ी जिम्‍मेदारी…  वर्धा विश्‍वविद्यालय में लंबे समय से संचार एवं मीडिया अध्‍ययन केंद्र के निदेशक रहे डॉ. अनिल राय अंकित के कुर्सी से जाने और आने का खेल काफी रोचक रहा। जनसंचार विभाग को नई उंचाई तक ले जाने और जनसंचार विभाग में संचार के रक्‍तचाप को तीव्र करने के लिए कई दिग्गजों के नाम सामने आए लेकिन अंतत: कुलपति महोदय ने अपना भरोसा देश के कृपाशंकर चौबे पर जताया और उनके हाथों में हिंदी विवि के जनसंचार विभाग की कमान सौंप दी गई।

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शुरुआती दिनों में कुलपति के इस बदलाव के बाद विभाग के साथ-साथ विवि के छात्रों में भी खुशी की लहर थी। अब उन्‍हें एक आशा की किरण दिखाई पड़ने लगा था। कहा जाय तो गलत नहीं होगा कि अकादमिक दुनिया हो या पत्रकारिता का व्‍यवहारिक जीवन विभाग के छात्र हर मायने में अव्‍वल रहें है। लेकिन इसमें विभाग या किसी शिक्षक का योगदान न के बराबर रहा। सभी छात्रों ने अपनी मेहनत के दम पर सफलता हासिल की।

अब छात्रों को नए गुरुजी से बहुत कुछ सीखना था। कैंपस प्‍लेसमेंट की आशा थी। सभी छात्र उर्जा से सूर्य की भांति चमक रहे थे लेकिन परिवर्तन तो संसार का नियम है। समय बीतता गया, कई छात्र एमए, एमफिल, पीएचडी कर चले गए लेकिन न तो कैंपस प्‍लेसमेंट हुआ और न ही किसी से उसके भविष्‍य के बारे में कोई सवाल किया गया। ऐसे में उर्जावान छात्रों का भरोसा फिर टूटने लगा। अब सवाल उठना लाजमी था। सवाल के साथ ही खेल शुरू हो गया कोलकाता में रहकर विभाग को नियंत्रण करने की। जिसके बाद तो विभाग के हालात और भी बदत्‍तर हो गए क्‍योंकि यहां कार्यभार दिए गए व्‍यक्ति को एक-एक पत्र निकालने के लिए भी कोलकाता से आदेश लेना पड़ता था। इस स्थिति में विभाग की नींव और भी कमजोर हो गई। जिसे पत्रकारिता के शब्‍दों में संक्रमण काल कहा जाय तो गलत नहीं होगा।

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इसके बाद निराश और हताश, विभाग के कई छात्रों और प्रोफेसरों ने फिर से अनिल राय के सत्‍ता को ही सही बताने की बात शुरू कर दी। मांग के हिसाब से कंपनी उत्पाद भी तैयार करती है। ठीक इसी तरह से हिंदी विवि प्रशासन के द्वारा जनसंचार विभाग के अध्‍यक्ष की जिम्‍मेदारी फिर से डॉ. अनिल राय अंकित के कंधों पर दी गई है। कुछ छात्रों में उत्‍साह की लहर है तो कुछ खेमों में उदासी छाई है। ऐसे में डॉ. राय पर फिर से जनसंचार विभाग में संचार की वापसी की बड़ी जिम्‍मेदारी है।

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0 Comments

  1. Ashish Pratap Singh

    April 17, 2017 at 8:31 am

    Anil Sir ko Dher Sari badhai aur Subhkamnaye..

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