यह हिन्दी भाषियों के खिलाफ गुजराती भाजपाइयों और कांग्रेसियों की मिलीभगत क्यों नहीं है? गुजरात से गैर गुजराती गरीबों को खदेड़ने के बाद अब जानिए गुजरात सरकार की योजना। 25 सितंबर की खबर है और हाल में जो हुआ उसकी तैयारी या उसका कार्यान्वयन उसके बाद के इन्हीं दिनों में हुआ होगा। इकनोमिक टाइम्स की एक खबर के मुताबिक गुजरात सरकार कानून बनाकर निर्माण और सेवा क्षेत्र के उद्यमियों के लिए यह जरूरी बनाएगी कि अपने कुल कर्मचारियों में 80 प्रतिशत स्थानीय रखें। मुख्यमंत्री ने यह बात मंगलवार यानी 25 सितंबर 2018 को कही थी। मुख्यमंत्री युवाओं को कांट्रैक्ट लेटर बांटने के लिए आयोजित समारोह में बोल रहे थे। यह समारोह मुख्यमंत्री अप्रेनटिसशिप योजना के तहत आयोजित था।
इसमें उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि गुजरात में औद्योगिक इकाई या सेवा क्षेत्र का कारोबार शुरू करने वाले उद्यमियों को 80 प्रतिशत नौकरी स्थानीय लोगों को देना होगा और सरकार जल्दी ही इस आशय का कानून बनाएगी। विजय रुपानी ने कहा कि इसके अलावा, प्रस्तावित कानून में यह भी आवश्यक होगा कि 25 प्रतिशत मानव शक्ति वहीं की हो जहां नई इकाई लगाई जाए। हालांकि, 25 प्रतिशत का यह कोटा स्थानीय लोगों के लिए 80 प्रतिशत आरक्षण का भाग होगा। खबर में लिखा है कि कांग्रेस नेता खासकर अल्पेश ठाकोर ने चेतावनी दी है कि वे इस मुद्दे पर आंदोलन करेंगे उनका दावा है कि आश्वासन देने के बावजूद कंपनियां राज्य के 85 प्रतिशत लोगों को रोजगार देने के कोटा का उपयोग नहीं कर रहे हैं।
हिन्दी भाषियों को बाहर करने के आंदोलन में कांग्रेस नेता अल्पेश ठाकोर और उनकी ठाकोर सेना का खूब नाम आया है। मुझे नहीं पता असल में क्या हुआ है पर वे गुजरातियों को आरक्षण के अनुसार रोजगार देने की मांग कर रहे हैं जो पहली नजर में मुख्यमंत्री विजय रुपाणी द्वारा गुजरातियों के लिए आरक्षण करने की राजनीति का जवाब हो सकता है। इसमें भाजपा का उनके खिलाफ होना खास बात नहीं है। दिक्कत होती है मीडिया के भाजपाई बन जाने से। स्थिति यह है कि राज्य की मौजूदा नीति के हिसाब से भी सरकार से भिन्न प्रोत्साहन या लाभ लेने वाली औद्योगिक इकाइयों को 85 प्रतिशत स्थानीय लोगों को रखना है। अपने भाषण में मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने कहा है कि उनकी सरकार का लक्ष्य मार्च 2019 तक एक लाख युवाओं के कौशल बेहतर करने का है।
इससे पहले भाई समर अनार्य लिख चुके थे कि कश्मीर में धारा 370 हटाने की बात करने वाली पार्टी गुजरात में गुजरातियों के लिए 80 प्रतिशत आरक्षण करके गुजरात जैसी स्थिति क्यों बना रही है? यही नहीं, समर का सवाल यह भी है कि विकसित गुजराती मानवीय श्रम करने की स्थिति में कैसे आ गए? क्या गुजरात मॉडल की सच्चाई यही है और इस सच्चाई को छिपाने के लिए लोगों को स्थानीय और बाहरी में बांटा जा रहा है और राज्य में रोजगार की कमी के लिए बाहरियों को दोषी ठहराया जा रहा है। समर ने लिखा है कि बच्ची के साथ बलात्कार ध्रुवीकरण शुरू करने का बहाना है। समर ने अपनी खबर के साथ इंडियन एक्सप्रेस की खबर का लिंक दिया है। यानी यह खबर दबी-छिपी नहीं है।
दूसरी ओर, जब हिंसा हो रही थी, लोग भागने को मजबूर थे तो भाजपा औऱ भाजपाई मशीनरी चुप रही। काम हो जाने दिया और अब कांग्रेस को बदनाम करने या दोष उसके सिर मढ़ने की तैयारी चल रही है। ताजा खबर का शीर्षक है, “गुजरात: अपनी ही चाल में घिरे अल्पेश ठाकोर, कांग्रेस ने कहा- सबूत है तो गिरफ्तार करो”।
अब इस खबर में अल्पेश या कांग्रेस की बात भले शीर्षक में डाल दी गई है पर खबर देखिए क्या कहती है, “गुजरात में उत्तर भारतीयों पर हमले में विधायक अल्पेश ठाकोर का नाम आने से कांग्रेस बैकफुट पर है। उत्तर भारत खासतौर से यूपी और बिहार से आए ‘बाहरियों’ के विरोध की शुरुआत अल्पेश ने ही की थी, हालांकि यह चाल उल्टी पड़ने पर अब वह डैमेज कंट्रोल की मुद्रा में हैं। खास बात यह है कि वह कांग्रेस पार्टी के बिहार सह प्रभारी भी हैं। हालात नियंत्रण से बाहर होने के कारण अल्पेश की रणनीति बैकफायर कर गई और अब उनकी पार्टी को शर्मिंदगी झेलनी पड़ रही है।
ऐसे में उनकी पार्टी ही नहीं, दोस्तों – पाटीदार नेता हार्दिक पटेल और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी को भी कहना पड़ा है कि अगर हिंसा के पीछे अल्पेश का हाथ है तो उन्हें गिरफ्तार किया जाना चाहिए। ध्यान दीजिए, टाइम्स न्यूज नेटवर्क लिख रहा है, “कहना पड़ रहा है” जबकि कल्पेश किसी भी तरह दोषी हैं तो गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया? इसका जवाब नहीं है। “कहना पड़ रहा है’ या ‘चुनौती दी जा रही है” – यह कैसे तय होगा? मुझे लगता है अल्पेश और उनकी पार्टी व समर्थक भी राजनीति कर रहे हैं। राजनीति मुख्यमंत्री भी कर रहे हैं? उसपर खबर शांत है। खबर में ठाकोर सेना के महोत ठाकोर पर आरोप और गिरफ्तारी की बात है लेकिन अल्पेश का नाम और कांग्रेस बैक फुट पर है? इसी खबर में आगे कहा गया है, ठाकोर का वीडियो हुआ वायरल। वीडियो में क्या कहा है उसका जिक्र है पर मैं उसका उल्लेख नहीं कर रहा – यह मानते हुए कि अगर कहा है और सबूत है ही तो गिरफ्तारी क्यों नहीं?
यह बिहारियों या हिन्दी भाषियों के खिलाफ गुजराती भाजपाइयों और कांग्रेसियों की मिलीभगत तो नहीं है। इस खबर में बार-बार लिखा गया है कि अल्पेश के बयान से कांग्रेस बैकफुट पर है और उसे “कहना पड़ रहा” है जबकि राजनीति में गिरफ्तारी का अलग मायने होता है। और यह बाकायदा चुनौती क्यों नहीं है यह नवभारत टाइम्स स्पष्ट करेगा?
वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट। संपर्क : [email protected]