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सुख-दुख

बकरी को जेल भेजना सही तो युवक को जेल भेजना गलत कैसे?

एक युवक द्वारा जबरन सेल्फी लेने की कोशिश करने पर उसे जेल भेजना बुलन्दशहर की डीएम बी. चन्द्रकला के लिए तब गले की फांस बन गया जब उन्होंने एक पत्रकार को हकीकत का आयना दिखाना शुरू किया, और यही उनके लिए “गुनाह” बन गया है। बस फिर क्या था, ऐसे ही मौकों की तलाश में साहित्य के बड़े-बड़े शब्द घोंटकर बैठे तथाकथित पत्रकारों ने कलम निकाली और शुरू कर दिया आरोपों का सिलसिला। इतना ही नहीं, फिर शुरु हुई उनकी आय, संपत्ति और करियर की छानबीन। जाहिर सी बात है, मसाले के बिना मीडिया अधूरी रहती है। फिर मसाला जब किसी अधिकारी, वो भी महिला का हो, तब तो जोर लगाना वाजिब हो जाता है।

<p>एक युवक द्वारा जबरन सेल्फी लेने की कोशिश करने पर उसे जेल भेजना बुलन्दशहर की डीएम बी. चन्द्रकला के लिए तब गले की फांस बन गया जब उन्होंने एक पत्रकार को हकीकत का आयना दिखाना शुरू किया, और यही उनके लिए "गुनाह" बन गया है। बस फिर क्या था, ऐसे ही मौकों की तलाश में साहित्य के बड़े-बड़े शब्द घोंटकर बैठे तथाकथित पत्रकारों ने कलम निकाली और शुरू कर दिया आरोपों का सिलसिला। इतना ही नहीं, फिर शुरु हुई उनकी आय, संपत्ति और करियर की छानबीन। जाहिर सी बात है, मसाले के बिना मीडिया अधूरी रहती है। फिर मसाला जब किसी अधिकारी, वो भी महिला का हो, तब तो जोर लगाना वाजिब हो जाता है।</p>

एक युवक द्वारा जबरन सेल्फी लेने की कोशिश करने पर उसे जेल भेजना बुलन्दशहर की डीएम बी. चन्द्रकला के लिए तब गले की फांस बन गया जब उन्होंने एक पत्रकार को हकीकत का आयना दिखाना शुरू किया, और यही उनके लिए “गुनाह” बन गया है। बस फिर क्या था, ऐसे ही मौकों की तलाश में साहित्य के बड़े-बड़े शब्द घोंटकर बैठे तथाकथित पत्रकारों ने कलम निकाली और शुरू कर दिया आरोपों का सिलसिला। इतना ही नहीं, फिर शुरु हुई उनकी आय, संपत्ति और करियर की छानबीन। जाहिर सी बात है, मसाले के बिना मीडिया अधूरी रहती है। फिर मसाला जब किसी अधिकारी, वो भी महिला का हो, तब तो जोर लगाना वाजिब हो जाता है।

लेकिन क्या इस देश में मर्जी के खिलाफ कोई काम होने पर उसका विरोध करना गुनाह है? अगर है तो कुछ दिन पहले एक बकरी को मजिस्ट्रेट साहब के घर की लॉन की घास चरने पर जेल भेज दिया गया था। वो भी पूरी धाराएं लगाकर क़ानूनी तौर पर। अगर वो पूरी तरह सही था तो फिर तो यह मामला एक महिला से जुड़ा है। इसमें अगर गलती करने वाले को सजा हुई तो यह गलत कैसे?

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सिक्के की तरह इस केस के भी 2 पहलू थे। एक को तो मीडिया ने खबर और वायरल की हुई रिकॉर्डिंग के जरिये सामने ला दिया। पर दूसरे पहलू का क्या? उसे भी सामने लाना बनता है। फिर चाहे साख की इस लड़ाई में नया ट्विस्ट ही क्यों न आ जाये। पत्रकार से अभद्रता से बात की हुई ऑडियो क्लिप इंटरनेट पर वायरल तो हो गई। लेकिन उस क्लिप पर चन्द्रकला की बातों से उनका ही पक्ष मजबूत जान पड़ता है। तो चलिये कौन सही, कौन गलत की इस जंग के दूसरे पहलू पर थोड़ा विचार करते हैं।

अधिकतर पत्रकार फोन जैसी सुविधा का भरपूर फायदा उठाते हैं। भई ठीक भी है पेट्रोल और समय दोनों बच जाता है। उन जनाब ने भी आसान रास्ता इख्तियार किया, और फोन घुमा दिया। अब सवाल यह है कि क्या वह पत्रकार इकलौता पत्रकार था, जो फोन कर रहा था.? यह भी हो सकता है कई पत्रकारों ने ऐसा ही कुछ किया हो। इसीलिये चंद्रकला ने ऐसा रिएक्शन दिया। और क्या वही एक पत्रकार था जिसे ऐसा रिएक्शन दिया? हो सकता है दूसरों को भी मिला हो। हां ये बात जरुर है कि इन महोदय के पास रिकॉर्ड हो गया और अपना हाथ ऊपर रखने इन्होंने उसे वायरल भी कर दिया। इसपर बिना ज्यादा सोचे मीडिया का भरपूर स्पोर्ट भी मिल गया।

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लेकिन हकीकत का क्या? वो तो अभी भी परतों में दबी लग रही है। इसका तो यही मतलब हुआ कि कोई आपसे जबरदस्ती करे तो करने दीजिये क्योंकि मीडिया को मसाला चाहिये। अभी तक विरोध न करने पर ख़बरे बनती थी। इस बार विरोध करने पर बन गई।

आशीष चौकसे
पत्रकार
8120100064

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