Shishir Soni : राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनते ही वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी को हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्विद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया। मप्र में कांग्रेस सरकार आते ही माखन लाल पत्रकारिता माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय का कुलपति वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी को बनाया गया। पुराने कुलपति वरिष्ठ पत्रकार जगदीश उपासने ने कांग्रेस की सरकार आने पर इस्तीफा दे दिया था।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बनते ही कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विवि के लिए वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का नाम मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्यपाल अनुसुईया उइके के पास अनुशंसा को भेजा। राज्यपाल ने उर्मिलेश के नाम पर असहमति जता दी। राज्यपाल की ओर से सर्च कमेटी द्वारा अनुशंसित छह नामों में से एक नाम जगदीश उपासने की अनुशंसा की, इस नाम पर मुख्यमंत्री ने सहमति नहीं दी।
फिर राज्यपाल का दावा है कि मुख्यमंत्री से परामर्श के बाद बलदेव भाई शर्मा की नियुक्ति कर दी गई। नेशनल बुक ट्रस्ट का अध्यक्ष रहे बलदेव भाई शर्मा को संघ का करीबी माना जाता है। मुख्यमंत्री बिदक गए। लेकिन राज्यपाल ने कहा इस संबंध में उन्होंने बिलासपुर के दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति की मौजूदगी में सीएम से निवेदन किया था कि काफी विलंब हो रहा है कोई तीसरा नाम आप सुझाएं।
मुख्यमंत्री ने राज्यपाल से कहा, आप उसी में से किसी नाम पर मुहर लगा दें। राज्यपाल ने बलदेव भाई के नाम पर मुहर लगा दिया। उसके बाद छत्तीसगढ़ सरकार में कोहराम मच गया।राज्यपाल का कहना है कि कुलपति के लिए पठन-पाठन में अनुभव जरूरी है, वे किस विचारधारा से ये हैं ये कोई मापदंड नहीं होना चाहिए।
प्रोफेसर कुलदीप चंद अग्निहोत्री, कुलपति, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विवि , ओम थानवी, कुलपति हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जनसंचार विवि और डा. के. सुब्रह्न्यम, पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक, सदस्य राज्य योजना आयोग, की तीन सदस्यीय सर्च कमेटी ने कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विवि के लिए जिन छह वरिष्ठ पत्रकारों का चयन किया था उनमें पहले नंबर पर बलदेव भाई शर्मा का नाम ही था। जब कि सबसे अंतिम यानि छठे स्थान पर उर्मिलेश का नाम था। इनके अलावा दिलीप मंडल, जगदीश उपासने, लॉ कुमार मिश्रा,डा. मुकेश कुमार का नाम शुमार था। इनमें जगदीश उपासने और बलदेव भाई को भाजपा के करीबी माना जाता है जब कि शेष को कांग्रेस के करीबी।
इससे ये समझ आता है कि आखिर क्यों पत्रकारों का बड़ा हिस्सा पत्रकारिता करने के बजाए इधर या उधर के पक्षकार बन जाते हैं। शायद इसीलिए कि संबंधित पक्ष की सरकार आए तो उनका नंबर किसी बड़े पद पर लग जाए ! जाहिर है उस समय आप पत्रकार कितने बड़े हैं, या अनुभव क्या है..उससे ज्यादा सियासतदानों के समक्ष मायने ये रखेगा कि आप संबंधित सरकार के विचारधारा के पोषक, वाहक और प्रचारक हैं कि नहीं ? कई पत्रकार इतनी बेशर्मी से दल विशेष का पक्ष इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में रखते हैं कि उस दल के प्रवक्ता भी शरमा जाएं। इससे पत्रकारिता का बड़ा नुकसान हुआ है।
पाठकों या दर्शकों को वो नहीं परोसा जा रहा है जो हकीकत है बल्कि उन पाठकों या दर्शकों को अपने विचार और विमर्श में फंसा कर भरमाया जा रहा है। कई बार अपने आकाओं को खुश करने झूठा विमर्श पैदा किया जा रहा है। इससे से आजिज होकर सही और उपयुक्त समाचार की भूख लिए आमलाेग, पाठक, दर्शक मेनस्ट्रीम मीडिया की बजाय धीरे धीरे सोशल मीडिया की ओर रुख कर रहे हैं। मेनस्ट्रीम मीडिया की क्रेडिबिलिटी पर गहरा आघात लग रहा है।
दैनिक भास्कर समेत कई अखबार के लिए दिल्ली में वरिष्ठ पद पर काम कर चुके पत्रकार शिशिर सोनी की एफबी वॉल से.
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