“सात साल से झेल रहे हैं भड़ास को, निगेटिव, निगेटिव और निगेटिव। कुछ पाँजटिव भी सोचिए।” यह कहना था वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह जी का। एनके ने यह बात कही भड़ास4मीडिया के आठवें स्थापना दिवस पर। इतना ही नहीं उन्होंने फसल बीमा योजना को बहुत लाभकारी बताते हुए कहा कि इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है, कितने लोग हैं जिन्होंने इसके बारे में कुछ लिखा हो। एनके ने कहा कि आप लोग कुछ सकारात्मक भी करिये। ठीक यही बात हमारे पीएम साहब भी कहते हैं। मीडिया नकारात्मक ही दिखाता है। कम से कम एक खबर रोज सकारात्मक दिखाये। अब मोदीजी से उस तरह की उम्मीद नहीं कर सकते लेकिन एनके भाई से ऐसी उम्मीद थी नहीं।
न मेरे पास पत्रकारिता की डिग्री है और न डिप्लोमा। मेरे वरिष्ठ अक्सर कहा करते थे नकारात्मक ही खबर है। वे उदाहरण देते थे कुत्ता आदमी को काट ले यह खबर नहीं। क्योंकि उसका काम काटना है। आदमी कुत्ते को काट ले यह खबर है। भड़ास के आठवें स्थापना वर्ष पर कार्यक्रम की सूचना मिली खुशी हुई, उससे ज्यादा खुशी हुई अच्छे लोगों को सुनने का अवसर मिलने का। आनंद स्वरूप वर्मा को तो देखने की भी इच्छा थी। एकबार फिर कहूंगा कि एनके सिंह ने बहुत निराश किया। उनके कहे को कोई नेता कहता, अखबार का मालिक कहता तो भी बात समझ में आती। एनके जैसे वरिष्ठ और सुलझे (टीवी पर डिबेट के दौरान दिखने के आधार पर) पत्रकार ऐसा कहे तो हंसी आती है।
बहरहाल, शुरुआत में ही उन्होंने भड़ास को सात साल से झेलते रहने की बात कही। लगता है कि वे घर से यह तय करके आये थे कि शुरुआत इसी से करनी है। मुझे लगता है कि उन्होंने भड़ास को ठीक से पढ़ा नहीं है, जाना नहीं है। कुछ अपवाद को छोड़ दें, छोड़ इसलिए दें कि अपवाद उदाहरण नहीं होता तो भड़ास ने शोषित/उत्पीडि़त पत्रकारों के हक की ही बात की है। एनके बता दें कि किस अखबार या चैनल ने माडियाकर्मियों पर हो रहे दमन/ उत्पीड़न की खबरें छापी या अपने यहां दिखायी हो। मजीठिया वेजबोर्ड पर कोर्ट के किसी फैसले की जानकारी अपने पाठकों व दर्शकों को दी हो।
एमसीडी के सफाईकर्मियों को तीन माह से वेतन नहीं मिला इसकी खबर हर चैनल पर थी। सहारा मीडिया के कर्मचारियों को एक साल से बराबर वेतन नहीं मिल रहा था, किसी अखबार (राष्ट्रीय सहारा/समय टीवी) ने भी खबर नहीं छापी और न ही किसी खबरिया चैनल ने दिखाया। पी7 की हड़ताल को किसी ने तवज्जो नहीं दी। भड़ास ने न सिर्फ खबर छापी बल्कि यशवंत जी ने हिस्सा भी लिया। ताजा उदाहरण पत्रकारों के लिए गठित मजीठिया वेजबोर्ड का है। किसी समाचार पत्र (जो मजीठिया की चपेट में आता हो ) ने एक संक्षिप्त खबर भी छापी हो, एनके जी दिखा दें तो मैं उनकी गुलामी करूंगा। अब अगर भड़ास उसे छापता है या मालिकानों की बधिया उधेड़ता है और आप उसे नकारात्मक कहकर उसे झेलना कहते हैं तो आपकी सोच पर तरस आता है।
प्रसंगवश, भड़ास ने विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर करने वालों को सम्मानित किया। इसमें से वे लोग भी हैं जिन्होंने मजीठिया वेजबोर्ड की लड़ाई लड़ी, पत्रकारों को गोलबंद किया। भड़ास ने ऐसे लोगों का सम्मान किया। पत्रकारों को गोलबंद करने के लिए जिन-जिन लोगों ने जो-जो लिखा भड़ास ने उसे छापा, अपने यहां स्थान दिया। अगर भड़ास न छापता तो …? कहने का मतलब यह कि भड़ास का योगदान हम सबसे ज्यादा है। काश इसे एनके भाई भी समझ पाते।
अरुण श्रीवास्तव
arun.srivastava06@gmail.com
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Comments on “आखिर चाहते क्या हैं एनके सिंह?”
nk singh is absolutely right
Dear arun tumhari baat sau Sunar ki ek luhar ki. Yashu the great ki bhadas catalyst kaa kaam Karti hai aur Karti rahaygi
U said like sau Sunar ki ek luhar ki. Yashwant n bhadas are great catalyst. Aap triple refined ho; nk Singh n co are great But bhadas. Is the greatest
भड़ास का योगदान अतुलनीय है …
जहाँ तक बात है एन.के.सिंह साहब की तो, वह थोड़े दार्शनिक टाइप के पत्रकार हैं और संभवतः इसी भावावेश में वह थोड़े आगे बढ़ गए होंगे!
बाकी आदमी और पत्रकार वह भी अच्छे हैं.