संजय कुमार सिंह-
राजा का बाजा बजा रहे इंडिया इंक से सवाल
अभी तक कितने पूर्व सैनिकों को नौकरी दी?
अग्निपथ योजना के खिलाफ सोमवार को भारत बंद आहूत किया गया था। हिन्दुस्तान टाइम्स में सिंगल कॉलम में 10 लाइन की खबर से बताया है कि 12 राज्यों की राजधानी पर इसका असर हुआ, (देश की) राजधानी में भी जाम लगा। इसके साथ उतनी ही बड़ी खबर है, सेना ने अधिसूचना जारी की, पंजीकरण जुलाई में शुरू होगा। तीसरी खबर है इंडिया इंक ने कहा अग्निवीरों के लिए रोजगार की अच्छी संभावना है। यह ट्वीट के आधार पर है लेकिन कई लोगों ने यह भी ट्वीट किया वे कई साल से नौकरी की तलाश में हैं पर काम नहीं मिला।
हिन्दुस्तान टाइम्स ने ये छोटी खबरें प्रधानमंत्री के एक बयान के साथ छापी है और उसे चार कॉलम का शीर्षक बनाया है, “सुधार अनुचित लगते हैं पर देश की मदद करते हैं मोदी।” मेरी राय में यह तकनीकी रूप से भले सही हो लेकिन नरेन्द्र मोदी के सुधार या प्रयासों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है और इसलिए इसे इतनी प्रमुखता नहीं दी जानी चाहिए थी। टाइम्स ऑफ इंडिया में भी भारत बंद की खबर सिंगल कॉलम में है। सात लाइन की खबर का शीर्षक है, भारत बंद में 600 ट्रेन रुकीं। बाकी बातें आप दूसरे अखबारों से जानते हैं और सब मिलाकर भी भारत बंद आज के अखबारों में लीड नहीं है यह रेखांकित करने वाली बात है।
द हिन्दू ने लीड का शीर्षक लगाया है, सेना ने कहा, अग्निवीरों का पहला समूह जून 2023 में नौकरी शुरू करेगा। किसान कानून का एक साल में जो हश्र हुआ उसके मद्देनजर आज 21 जून 2022 को यह कहना कि जून 2023 में अग्निवीर नौकरी शुरू कर देंगे निश्चित रूप से खबर नहीं भविष्यवाणी लगती है। फिर भी खबर तो खबर है, सेना ने कहा है तो निश्चित रूप। अखबार ने भारत बंद की खबर दूसरे तीन अखबारों के मुकाबले सबसे लंबी छापी है। हालांकि यह सिंगल कॉलम में ही है और शीर्षक है, “भारत बंद से कुछ क्षेत्रों में जीवन प्रभावित”। द हिन्दू की खबर से लगता है, तपस्या चल रही है शीर्षक की जगह तपस्या सफल रही शीर्षक लगा दिया गया हो।
इन चार अखबारों की गोल-मोल खबरों के मुकाबले द टेलीग्राफ ने वही लिखा है जो खबर है, बंद के दौरान अग्निपथ चल निकला। इसके साथ एक और खबर है, ताली बजा रहे उद्योग के लिए सवाल। अखबार ने बताया है और यह किसी दूसरे अखबार में नहीं है कि सेना के दिग्गजों ने उद्योग के अग्रणी लोगों से पूछा है कि अपने संस्थानों में उन लोगों ने पूर्व में कितने पूर्व सैनिकों को नौकरी दी है। असल में आनंद महिन्द्रा ने ट्वीट कर इस योजना का समर्थन किया है। इसपर, पूर्व नौसेना प्रमुख और 1971 के योद्धा अरुण प्रकाश ने पूछा है, इस नई योजना का इंतजार क्यों क्या महिन्द्रा समूह ने अभी तक सेना से हर साल रिटायर होने वाले हजारों जवानों और अधिकारियों से संपर्क किया है? आपके समूह से कुछ आंकड़े प्राप्त करके अच्छा लगेगा।
उल्लेखनीय है कि सेना से अभी भी लोग कम उम्र में रिटायर होते हैं और दूसरी नौकरी की तलाश में रहते हैं। इनमें हर तरह के लोग हैं और इनकी नौकरी के लिए व्यवस्था पहले से है। फिर भी हजारों योग्य लोग बेरोजगार हैं। सेना की नई योजना इसलिए भी कुछ खास नहीं है पर उद्योग इसका समर्थन कर रहा है तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है। जहां तक टेलीग्राफ की खबर का सवाल है, फ्लैग शीर्षक है, विरोध प्रदर्शनों को नजरअंदाज करते हुए सेना ने योजना के तहत पहले बैच की नियुक्ति के लिए अधिसूचना जारी की। इसके साथ चार कॉलम की एक तस्वीर है। इसका कैप्शन है, सोमवार को भारत बंद के दौरान पटना की खाली सड़कें। फोटो संजय चौधरी द्वारा।
इंडियन एक्सप्रेस ने भी भारत बंद की अपील को नजरअंदाज कर दिया है। यहां पहले पन्ने पर बंद से संबंधित सिंगल कॉलम की भी कोई खबर नहीं है। कोई पहलू नहीं और बंद नाकाम रहा – यह भी नहीं। ऐसे फ्लैग शीर्षक है, सेना ने नियुक्ति के लिए अधिसूचना जारी की। हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक यहां उपशीर्षक है। सेना प्रमुख अपनी योजना का प्रचार कर रहे हैं और बता रहे हैं जरूरत हुई तो चार-पांच साल बाद भी रखेंगे। जैसे नहीं बताते तो लगता कि चार पांच साल बाद जवानों की जरूरत ही नहीं रहेगी। जो भी हो, भारतीय अखबारों का पहला पन्ना भी पढ़ने लायक नहीं होता है। इंडियन एक्सप्रेस में कुछ खबरें जरूर अच्छी होती हैं लेकिन सरकार की पसंद और नापसंद का पूरा ख्याल रखा जाता है।