Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

मर्सिडीज़, लैंड रोवर, Lamborghini और एस्टन मार्टिन के इन आँकड़ों पर नज़र डालिये… क्या भारत वाक़ई आगे की तरफ़ भाग रहा है?

महक सिंह तरार-

ये देखिये फिर तय करिये की आप रोते धोते रहने वाले पैसीमिस्ट, क़बीलाई, वामपन्थी या हर बात में षड्यंत्र ढूँढने वाली संशयवादी कैटेगरी में होना चाहते है या व्यावहारिक, आशावान, सकारात्मक, अभिनववादी, श्रमसाध्य व्यवसायी कैटेगरी में होना चाहेंगे जो जीवन में अपनी पसंदीदा ख़ुशियाँ पाने में लगे है!

Advertisement. Scroll to continue reading.

-मर्सिडीज़ ने पिछले साल भारत में आजतक की सबसे ज़्यादा कार बेची – 15822! इस साल उस संख्या पर कंपनी पहले ही पहुँच चुकी।

-लैंड रोवर की डिफेंडर कार आती है सवा करोड़ से साढ़े चार करोड़ तक। कंपनी ने आधे साल में ही पिछले साल की सेल से डबल सेल कर ली है।

-Lamborghini कार क़रीब सवा चार करोड़ से आठ करोड़ के बीच आती है। उसने 2022 में कुल कार बेची – 9233 जिसमें से 92 बिकी इंडिया में। ख़ास बात ये की इस साल का टारगेट कंपनी ने पहली तिमाही में ही बेच लिया है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

-पर्सनल ज़रूरत अनुसार सुपर लक्ज़री कार बना कर देने वाली ब्रिटिश कार कंपनी एस्टन मार्टिन को भारत से बिना एजेंसी खोले भी बहुत ऑर्डर मिल रहे है जबकि उसकी कार ऑन रोड छह करोड़ से ऊपर पड़ती है।

मतलब कहने का ये की तमाम समस्याओं के बावजूद पहले से ज़्यादा लोग आगे देख रहे है व आगे बढ़ भी रहे है। ये काल्पनिक मोटिवेशन की बात नहीं कर रहा बल्कि जो आपके चारों तरफ़ घट रहा है उसकी एक झांकी ये भी है।

पहली कैटेगरी वाले लोग हर समय किसी ना किसी पर उँगली उठाये अपनी जगह रोते धोते रहेंगे। अगर ख़ुद को बर्बाद होने से बचाना है तो इनसे दूरी बना के रखे। जैसे ख़राब पानी पीने के काम ना भी आये मगर आग बुझाने के काम आ सकता है तो इनकी भी कुछ प्रतिशत बातें सही होती है। पर दुनिया में इस कैटेगरी वाले लोगो का योगदान व्यावहारिक, आशावान, सकारात्मक, अभिनववादी, श्रमसाध्य व्यवसायी लोगो के योगदान का सौवाँ हिस्सा भी नहीं होता। इसलिये इनका साथ बहुत कम मात्रा में भी घातक है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मैं बेवजह की सकारात्मकता को नहीं कहता, वास्तविक रहिये। मगर साथ साथ ख़ुद के चारों तरफ़ नज़रें दोडायें व इन सकारात्मकता सोखने वाली जोक से ख़ुद को बचाये क्यूँकि नकारा लोगो की शिकायतें ना पहले कभी ख़त्म हुई है ना ही आगे ख़त्म होंगी।

अपने चारों और ख़ुद से बेकार लोगो का ज़मावडा मत बनाइये जो आपकी जय जयकार करते हो। बाक़ी आपकी मर्ज़ी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ऐसी लग्जरी चीजे खरीदने वाले कुल कितने होंगे पूरे देश मे?
जब सारी परिस्थितियां ऐसे लोगो के लिए ही तैयार होती हो तो यह सब कुछ करना मेरी राय अनुसार कोई सकारात्मकता नही है।
सही सकारात्मकता तो उन 85 करोड लोगो का फ्री अनाज बंद हो और वो खुद अपने लिए कमाने वाले बन जाये तभी पैदा होगी।
पिछले काफी समय से अक्सर यही बात हो रही कि देश मे अमीर-गरीब के बीच की खाई बहुत गहरी हो गई है। –सलिल जोशी

लक्जरी कुछ सौ /हजार कार बिक्री के इन आंकड़ों पर क्या कमेंट किया जाय मैं समझ नहीं पा रहा? अर्थव्यवस्था की कौनसी ऐसी सूचना है जो आपको नहीं मालूम? यदि इन कारों की बिक्री के डाटा की गहराई में जाएंगे तो पता लगेगा कि डेढ़ करोड़, तीन करोड़, छह करोड़ की कार खरीदने वाले भी व्यक्ति वही सेम है। यानी जिसने डेढ़ करोड़ वाली खरीदी है उसीने तीन करोड़ वाली और उसीने छह करोड़ वाली भी खरीदी है। ये कारें जिन लोगों के गैराज में है वे पर्सनल ऐयरोप्लेन्स के भी मालिक हैं और शायद उनको इनकी सवारी करने का भी मौका कभी कभार ही मिलता होगा। आप मुझे नकारात्मक श्रेणी में ही रखें। अपनी जायज बात को मनवाने के लिए साल भर तक दिल्ली के बॉर्डर पर पड़े रहने को मजबूर कर देने वाले इस काल में मै लाख चाहकर भी सकारात्मक नहीं हो पा रहा। –प्रेम प्रकाश गुप्ता

Advertisement. Scroll to continue reading.

आपके आसपास कितने लोगो ने ये गाड़िया खरीदी और कितने लोग फ्री अनाज की लाइन में है वो देखना चाहिए। किसान मर रहे है। सैनिक चार साल में रिटायर हो रहे हैं। उन सब से आंखे मूंद ले। मैं राजस्थान बीकानेर से हूं 8 लाख से ऊपर आबादी बीकानेर शहर की है। बीकानेर में इस तरह की गाड़ियां सिर्फ दो लोगों के पास है एक बीकानेर के राज घराना जिसकी राजकुमारी यहां तीन बार से विधायक है अबकी बार भी चुनाव में खड़ी है 100 करोड़ की प्रॉपर्टी उसने अपने नामांकन पत्र में दिखाइ है उसके पास गाड़ियों का पूरा काफिला है दूसरा है बीकानेर के प्रतिष्ठित उद्योगपति शिव रतन अग्रवाल बीकाजी ग्रुप के मालिक एक करोड़ की गाड़ियां सिर्फ इन्हीं दो लोगों के पास है। एक उदाहरण और एक उदाहरण और मेरे बहन और छोटे भाई बेंगलुरु रहते हैं बहनोई के पास 12 लाख के स्कोडा है भांजी के लिए अभी एक 8 लाख की गाड़ी ली दो गाड़ियां हो गई । पैसा आया एक 35 लाख की गाड़ी और ले ली विचार यही था कि 12 लाख की स्कोडा बेच देंगे लेकिन उसको भी रख लिया हो सकता है थोड़े टाइम बाद एक करोड़ की गाड़ियां भी ले लेंगे लेकिन ले तो वही रहे हैं जिनके पास ऑलरेडी महंगी गाड़ियां है। हमने खुद ने कोरोना काल में गांव में मकान बनाया जबकि बीकानेर में मकान है लेकिन उस समय गांव में उसे टाइम सिर्फ दो लोगों ने ही बनाया था। आपने जो उदाहरण दिए वह 140 करोड लोगों में से 2% भी नहीं होंगे यह भी मैं मानता हूं कि समाज में एक छोटा उच्च मध्यम वर्ग है पैसे वाला। लेकिन ज्यादातर नहीं है। –दिनेश जलंधरा

आपकी यह पोस्ट पूरी तरह एकपक्षीय है, कैसे? चमचमाती इन कारों को खरीदने वाला वर्ग कौन है? जिसके पास वैध-अवैध तरीकों से खूब पैसा आ गया है। क्या इन आंकड़ों में वृद्धि की वजह वह वर्ग नहीं हो सकता जो सत्ताधारियों की निकटता से ड्रग्स, संसाधनों की लूट-खसोट, कालाधन, जुलूसों-रैलियों में गरीबों को मामूली भाड़े या मुफ्त में घूमने-फिरने के प्रलोभन पर ले जाने वाले ठेकेदारी आदि के कारोबार से रातों-रात धनपति बन गए हैं। हमारे गांव में जिनके पास स्कूटर तक नहीं था, वे सत्ताधारियों की निकटता से आज बोलेरो व क्वालिस में हगने-मूतने तक बाहर जा रहे हैं। दूसरी ओर सरकार ही 56 इंची सीना तान कर शोर मचा रही है कि उसकी कृपा से देश के 80 करोड़ यानी कुल आबादी के आधे से ज्यादा लोग खाना खा पा रहे हैं। इन नौ-दस सालों में ग्लोबल हंगर इंडेक्स में हम कितना नीचे गिर गए हैं, यह पूरी दुनिया जानती है। थोड़ा इस पर भी विचार करना होगा कि आज देश में जिस अकूत मात्रा में अफगानिस्तान से नशीली दवाएं लाकर देश के कोने-कोने में सप्लाइ की जा रही हैं इससे साफ पता चलता है कि देश को तत्कालीन दुनिया में सबसे बड़े ड्रग माफिया पाब्लो एस्कोबार एमीलियो का कोलंबिया बनाया जा रहा है। कहीं ये करोड़ों रुपए मूल्य वाली कारों को खरीदने वाले उसी ड्रग्स का रैकेट तो नहीं चलाते? सोचना तो यह चाहिए कि यह धन आ कहां से रहा है। मैं Prem Prakash Gupta जी से पूरी तरह सहमत हूं। –श्याम सिंह रावत

Advertisement. Scroll to continue reading.

ये पोस्ट वामपंथ लिखे बिना भी की जा सकती थी. पोस्ट पढ़ कर ऐसे ले रहा हैं जैसे सुधीर तिहाड़ी अपने शो ब्लैक एंड वाइट की स्क्रिप्ट पढ़ रहा हो. बहुत ही हल्की पोस्ट. मै वामपंथ को सिर्फ पैसे के नज़रिए से नहीं देखता. मुझे यही एक पंथ लगता हैं जो आखिरी कतार के व्यक्ति के लिए खडा होता हैं. जिस देश में 80 करोड़ लोगों की ये हालत हैं की 5 किलो राशन फ्री देना पड़े वहा आप कुछ गाड़ियो की बिक्री के आंकड़े दिखा के आप पॉजिटिव होना चाहते हो तो वो आपकी मर्ज़ी हैं. मैं नही हो सकता श्रीमान. -राहुल आर्या

कमाने के तरीके बदल गये हैं अब लोग पहले से ज्यादा कमा रहे हैं लेकिन जहां पहले सौ लोग कमाते थे वहां अब बीस लोग कमा रहे हैं अस्सी लोगों का काम विज्ञान खा गया। वे अस्सी लोग अब दूसरे धंधों में हाथ आजमा रहे हैं। –सुमित राठी

Advertisement. Scroll to continue reading.

इनमें कोई कार शायद ही किसी किसान ,सामान्य व्यापारी ,कारोबारी ,उद्योग पति या नौकरी पेशा ने खरीदी होगी !मेरे छोटे भाई की तरह मेहनत की कमाई करने वाला कोई भी सामान्य नागरिक इन कारों को खरीदने का सखहस नहीं जुटा पाएगा ! इ डी ओ आई टी डिपार्टमैंट के लिए छोटे भाई का दिया हुआ यह बढिया सुराग साबित हो सकता है !ये विभाग मिलकर ईमानदारी से इन कारों के मालिकों की जांच करलें जो देश का आधा काला धन और भ्रष्टाचार गिरफ्त में आ सकता है !लेकिन हमें पता है एसा कभी नहीं होगा क्योंकि हमें पता है कि ये दोनों तो इन्ही कार वालों की पिछली सीट पर पिछवाडा टेककर अगले दो पांवों पर लम्बी सी जीभ बाहर लटकाए मालिक के ईशारे की इंतजार में किसी पर भी झपटने और उसे दबोच लेने को मुस्तैद दिखाई देते हैं ! –वीरेश तरार

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास तक खबर सूचनाएं जानकारियां मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group_one

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement